जीवन मंत्र

किडनी इंफेक्शन में लापरवाही जानलेवा

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किडनी इंफेक्शन में लापरवाही जानलेवा
इसमें ई-कोलाई नामक बैक्टीरिया गुदा से यूरीनरी ट्रैक और फिर मूत्राशय (ब्लैडर) से होते हुए गुर्दों (एक या दोनों) को संक्रमित कर देता है, मेडिकल साइंस में इसे पायलोनेफ्राइटिस कहते हैं। इलाज से पूरी तरह ठीक हो जाता है लेकिन इलाज में कोताही से किडनी खराब होने के साथ सेप्सिस जैसे जानलेवा संक्रमण हो जाते हैं। यह किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन 65 वर्ष से ऊपर वाले इसकी चपेट में आसानी से आ जाते हैं। मेदान्ता-द मेडीसिटी (हरियाणा) के नेफ्रोलॉजी (किडनी एंड यूरोलॉजी इंस्टीट्यूट)  विभाग के सीनियर कन्सल्टेंट डॉ. दिनेश कुमार यादव से किडनी इंफेक्शन के बारे में बात करते हुए यह पता चला है कि यह शरीर तोड़ने वाली पीड़ादायी जानलेवा बीमारी है, इसमें ई-कोलाई नामक बैक्टीरिया गुदा से यूरीनरी ट्रैक और फिर मूत्राशय (ब्लैडर) से होते हुए गुर्दों (एक या दोनों) को संक्रमित कर देता है, मेडिकल साइंस में इसे पायलोनेफ्राइटिस कहते हैं। इलाज से पूरी तरह ठीक हो जाता है लेकिन इलाज में कोताही से किडनी खराब होने के साथ सेप्सिस जैसे जानलेवा संक्रमण हो जाते हैं। यह किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन 65 वर्ष से ऊपर वाले इसकी चपेट में आसानी से आ जाते हैं। पुरूषों की तुलना में महिलाओं को किडनी इंफेक्शन का रिस्क छह गुना अधिक होता है, ऐसा महिलाओं का मूत्रमार्ग (यूरीनरी ट्रैक) छोटा होने के कारण है, जिससे बैक्टीरिया किडनी तक आसानी से पहुंच जाता है। अधिक यौन सक्रियता के कारण युवा महिलाओं में किडनी इंफेक्शन का ख़तरा ज्यादा होता है। छोटे बच्चे इसकी चपेट में जल्द आ जाते हैं विशेष रूप से वे जो मूत्र पथ की असामान्यता यानी वेसिको-यूरेटिक रिफ्लक्स के साथ पैदा हुए हो यानी जिनमें मूत्राशय से गुर्दे तक मूत्र का उल्टा बहाव होता है। लक्षण क्या उभरते हैं? इसके लक्षण आमतौर पर कुछ घंटों में उभरने लगते हैं जैसे पीठ के निचले हिस्से और जननांगों के आस-पास दर्द, बगल में एक तरफ दर्द, हाई फीवर, कंपकंपी, ठंड लगना, कमजोर या थका महसूस करना, भूख में कमी, मतली, उल्टी और दस्त। गम्भीर अवस्था में पेशाब के दौरान दर्द या जलन, बार-बार या तुरंत पेशाब आना, पेशाब करने में असमर्थता, मूत्र में खून या बदबू और लोअर एब्डोमिन में दर्द। बच्चों में ये ऊर्जा की कमी, चिड़चिड़ापन, भूख मरना, उल्टी, धीमी ग्रोथ, पेट दर्द, पीलिया, मूत्र में खून-अप्रिय गंध, बिस्तर पर पेशाब करने के रूप में उभरते हैं। कारण क्या है किडनी इंफेक्शन का? इसका मुख्य कारण है ई-कोलाई बैक्टीरिया का किडनी में प्रवेश। आमतौर पर यह बड़ी आंत में रहता है और गुदा से निकलकर मूत्रमार्ग के सिरे से मूत्र पथ होता हुआ ऊपर की ओर बढ़ता है,  यह पहले मूत्राशय और फिर किडनी को संक्रमित कर देता है। ऐसा तब होता है जब शौचालय जाने के बाद नितम्ब साफ करते समय गंदा पानी या टॉयलेट पेपर जननांगों के संपर्क में आ जाये। ऐसा सेक्स के दौरान भी होता है, जो लोग एनाल सेक्स करते हैं उन्हें इसकी सम्भावना अधिक होती है। कमजोर इम्युनिटी वालों में किडनी संक्रमण, कवक या त्वचा संक्रमित करने वाले बैक्टीरिया से हो जाता है लेकिन यह रेयर है। किडनी स्टोन, प्रोस्टेट बढ़ना, प्रोस्टेटाइटिस, कब्ज, यूरीनरी ट्रैक में असामान्यता, रीढ़ की हड्डी में लगी चोट जो मूत्राशय को पूरी तरह खाली नहीं होने देती, डॉयबिटीज, मूत्र कैथेटर, प्रेगनेन्सी में हुए शारीरिक बदलाव इसके अप्रत्यक्ष कारण हैं। डॉक्टर को कब दिखाना है? यदि बुखार के साथ पेट, पीठ के निचले हिस्से या जननांग में लगातार दर्द या पेशाब के सामान्य क्रम में बदलाव दिखाई दे तो डॉक्टर को दिखायें। किडनी इंफेक्शन के अधिकांश मामलों में किडनी को संक्रमण से होने वाले नुकसान से बचाने और रक्त प्रवाह में संक्रमण फैलने से रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स के साथ तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है। यदि पहले से कोई स्वास्थ्य संबंधी तकलीफ़ या प्रेगनेन्सी है तो इलाज के लिये अस्पताल में भर्ती हों, क्योंकि वहां नसों में ड्रिप के माध्यम से एंटीबायोटिक्स आसानी से दिये जा सकते हैं जो इलाज का सबसे प्रभावी तरीका है और मरीज दो सप्ताह में पूरी तरह स्वस्थ महसूस करने लगते हैं। इलाज में देरी से रक्त विषाक्तता (सेप्सिस) और किडनी में मवाद यानी एब्सस जैसी जटिलतायें हो जाती हैं। क्या जटिलताए हो सकती हैं? यदि किडनी इंफेक्शऩ का जल्द इलाज शुरू हो जाये तो यह बिना किसी कॉम्प्लीकेशन के ठीक हो जाता है। 65 वर्ष से अधिक आयु वालों, बच्चों, गर्भवती महिलाओं, डॉयबिटीज और स्किल सेल एनीमिया पीड़ितों, किडनी ट्रांसप्लांट और कमजोर इम्युनिटी वालों को कॉम्प्लीकेशन का रिस्क रहता है। ऐसे लोग जब किसी भी बीमारी के इलाज के लिये अस्पताल में भर्ती हो तो विशेष सावधानी बरतें क्योंकि अस्पताल में किडनी इंफेक्शन के चांस सबसे अधिक होते हैं। एब्सस या (किडनी में पस): यह रेयर लेकिन गंभीर कॉम्प्लीकेशन है। इसमें किडनी के अंदरूनी टिश्यूज में मवाद बन जाता है। डॉयबिटिक लोगों को इसका अधिक रिस्क है, यह गंभीर कंडीशन है इसमें किडनी इंफेक्शन का बैक्टीरिया रक्त प्रवाह के जरिये शरीर के अन्य हिस्सों में फैल सकता है जो बहुत घातक है। छोटे एब्सस का इलाज ड्रिप के माध्यम से एंटीबायोटिक्स देकर किया जाता है लेकिन बड़े एब्सस के लिए सर्जरी की जरूरत पड़ती है, इसमें किडनी में सुई डालकर मवाद निकालना शामिल है। सेप्सिस (रक्त–विषाक्तता):  किडनी का काम है खून साफ करना, यदि इस प्रक्रिया में किडनी इंफेक्शन का बैक्टीरिया ब्लड सप्लाई में चला जाये तो पूरे शरीर में फैल जायेगा और सभी अंग इसकी चपेट में आ जायेंगे। सेप्सिस होने पर ब्लड प्रेशर गिरने के साथ खड़े होने पर चक्कर आते हैं, पसीने के साथ कंपकंपी, हाई फीवर, सांस फूलना, तेज धड़कन के साथ त्वचा पीली पड़ने लगती है। याद रखें सेप्सिस एक मेडिकल इमरजेन्सी है जिसमें आईसीयू और उच्च-शक्ति के एंटीबायोटिक्स की जरूरत पड़ती है। यदि पीड़ित डॉयबिटिक है और मेटाफॉर्मिन या एंजियोटेंसिन-कनवर्टिंग जैसी दवायें ले रहा है तो ठीक होने तक इन्हें बंद करना पड़ता है अन्यथा किडनी फेल होने का रिस्क रहता है। ईपीएन संक्रमण: एम्फीसिमेटस पायलोनेफ्राइटिस (ईपीएन) जानलेवा है, इसमें संक्रमण के कारण बैक्टीरिया के किडनी के अंदर विषाक्त गैस छोड़ने से किडनी टिश्यू तेजी से नष्ट होने लगते हैं। ईपीएन का असली कारण अभी तक अस्पष्ट है, लेकिन डॉयबिटीज के ज्यादातर मामलों इस संक्रमण को देखा गया है। यह मेडिकल इमरजेंसी है इसमें सर्जरी से किडनी के संक्रमित भाग को काटकर निकाल देते हैं और ज्यादा गम्भीर मामलों में संक्रमित किडनी ही निकालनी पड़ती है। किडनी फेलियर: गम्भीर मामलों में किडनी फेल हो जाती है कारण संक्रमण से किडनी में हुयी स्थायी क्षति। ऐसी स्थिति में डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। पुष्टि कैसे होती है? इसकी पुष्टि के लिये मेडिकल हिस्ट्री, लक्षणों और शारीरिक जांच के बाद मूत्र परीक्षण, ब्लड टेस्ट, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड और आइसोटोप स्कैन की जरूरत पड़ती है। इलाज क्या है इसका? किडनी इंफेक्शन वाले अधिकांश लोगों का इलाज 7 से 14 दिन के एंटीबॉयोटिक कोर्स और दर्दनाशक दवाओं से घर पर किया जा सकता है। गर्भवती महिलाओं को छोड़कर अधिकांश को सिप्रोफ्लोक्सासिन या को-एमोक्सिकलाव जैसे एंटीबॉयोटिक दिये जाते हैं। गर्भवती महिलाओं को 14-दिन तक सीफेलक्सिन नामक एंटीबायोटिक दी जाती है। आम तौर पर, उपचार शुरू होने के तुरंत बाद बेहतर महसूस होना शुरू हो जाता है और दो सप्ताह बाद पीड़ित पूरी तरह ठीक महसूस करने लगता है। इलाज के दौरान पर्याप्त आराम करें क्योंकि किडनी इंफेक्शन शारीरिक रूप से थकाने वाली बीमारी है,  काम पर लौटने या पर्याप्त फिट होने में दो सप्ताह तक लग सकते हैं। यदि उपचार शुरू होने के 24 घंटे बाद सुधार का संकेत न  दिखे, तो डॉक्टर से संपर्क करें। अस्पताल की जरूरत कब? वैसे तो किडनी इंफेक्शन का इलाज घर पर हो जाता है लेकिन कुछ स्थितियों में अस्पताल की जरूरत होती है जैसे- गंभीर रूप से निर्जलित होना, दवायें लेने में असमर्थता,  तेज धड़कन, बेसुधी, प्रेगनेन्सी, तेज बुखार, एंटीबायोटिक्स लेने  के 24 घंटे बाद भी लक्षणों में सुधार न होना, कमजोर इम्यूनिटी, यूरीनरी ट्रैक में किडनी स्टोन या कैथेटर लगा होना, डॉयबिटीज, 65 साल से अधिक आयु, पॉलीसिस्टिक किडनी डिसीस या किसी अन्य बीमारी से पीड़ित होने पर। बच्चों में किडनी इंफेक्शन होने पर घर के बजाय अस्पताल में इलाज को प्राथमिकता दें, जिससे ड्रिप के माध्यम से तरल पदार्थ और एंटीबॉयोटिक्स दिये जा सकें और दवाओं का असर देखने के लिये नियमित रूप से रक्त और मूत्र परीक्षण हों। ड्रिप से एंटीबायोटिक्स बंद करने के बाद इनकी लाइट डोज  टेबलेट के माध्यम से दी जाती है, ज्यादातर को तीन से सात दिनों में छुट्टी मिल जाती है। किडनी इंफेक्शन से बचाव मूत्राशय (ब्लैडर) और मूत्रमार्ग (यूरीनरी ट्रैक) को बैक्टीरिया मुक्त रखकर किडनी इंफेक्शन की संभावनाओं को कम कर सकते हैं वह भी अत्यन्त सरल उपायों से, जैसे बहुत सारा तरल पदार्थ पीना और जननांग की अच्छी स्वच्छता रखने की आदत डालना। इसका मुख्य कारण है यूरीनरी ट्रैक इंफेक्शन यानी यूटीआई, इसे रोकने के लिये रोजाना कम से कम तीन लीटर पानी पियें। क्रैनबेरी जूस पीना यूरीनरी ट्रैक इंफेक्शन रोकने में मदद करता है, लेकिन ब्लड थिनर और एंटी क्लॉटिंग दवायें लेने वालों के लिये क्रैनबेरी जूस वर्जित है। पेशाब की अनुभूति होने पर तुरन्त बाथरूम जायें, शौचालय जाने के बाद सामने से पीछे की ओर पोंछें, सम्भोग से पहले जननांगों को अच्छी तरह से धोने की आदत डालें, सम्भोग के बाद पेशाब जरूर करें, यदि आप महिला हैं, तो टॉयलेट सीट पर बिना बैठे इस्तेमाल करने से बचें क्योंकि इससे ब्लैडर पूरी तरह खाली नहीं होता और उसमें मूत्र रह जाता है। कब्ज, मूत्र पथ संक्रमण (यूटीआई)  की संभावनायें बढ़ाता है, इसलिए तत्काल कब्ज का इलाज करायें। इसके लिये रोजाना 20-30 ग्राम फाइबर आहार में डालें, खूब पानी पियें और थोड़े समय के लिए एनीमा का उपयोग करें। यदि 14 दिनों में कब्ज ठीक न हो तो डॉक्टर को दिखाएँ। मूत्र पथ संक्रमण (यूटीआई) होने पर शुक्राणुनाशक कंडोम के इस्तेमाल से बचें, क्योंकि शुक्राणुनाशक रसायन बैक्टीरिया ग्रोथ बढ़ा देते हैं। इसी तरह परफ्यूम्ड कंडोम यूरीनरी ट्रैक में इरीटेशन पैदा करते हैं जो संक्रमण के लिये ज्यादा संवेदनशील है।
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