
दिल्ली सरकार पर आरोप है कि नई आबकारी नीति में नियमों की अनदेखी के चलते शराब की दुकानों के टेंडर दिए गए हैं। उपराज्यपाल की सिफ़ारिश के बाद आनन-फ़ानन में दिल्ली सरकार ने पुरानी व्यवस्था को लागू करने का निर्णय लिया है। फ़िलहाल यह पुरानी व्यवस्था 6 महीने के लिए ही लागू की जाएगी। इन 6 महीनों में दिल्ली सरकार एक नई नीति लाने की योजना बनाएगी। इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली सरकार ने जैसा अनुमान लगाया था वैसा नहीं हुआ। new liquor policy delhi
‘रहें मुबारक पीने वाले, खुली रहे यह मधुशाला’ सुप्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन की बहुचर्चित कविता की इस पंक्ति से शायद दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल को प्रोत्साहन मिला होगा। तभी उन्होंने दिल्ली की आबकारी नीति में कुछ बड़े फेरबदल किए। नतीजा यह हुआ कि दिल्ली एनसीआर में शराब की क़ीमतों और बिक्री में दिल्ली अव्वल नम्बर पर है। परंतु पिछले कुछ दिनों से दिल्ली की आबकारी नीति के चलते दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल में विवाद की स्थिति आ गई है। दिल्ली की शराब की दुकानों पर लागू हुई नई आबकारी नीति 31 जुलाई 2022 को समाप्त होनी थी। इसके बाद इस नई नीति को दोबारा लागू किया जाता उससे पहले ही ये नीति विवादित हो गई। new liquor policy delhi
अगर केजरीवाल सरकार की मानें तो 2021-22 में लागू की गई इस नीति के तहत सभी सरकारी दुकानों को बन्द कर प्राइवेट दुकानों को नीलामी की प्रक्रिया के तहत आवंटित करना तय हुआ। दिल्ली सरकार का दावा था कि इस नई नीति से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी। आबकारी विभाग का ख़ज़ाना भी बढ़ेगा। नई नीति के तहत दिल्ली में 850 से ज़्यादा शराब की दुकानें नहीं खुलनी थीं। पुरानी व्यवस्था में इन्हीं 850 दुकानों से सरकार को करीब 6 हजार करोड़ रुपये का राजस्व मिलता था। नई नीति के तहत इन्हीं 850 दुकानों के निजी क्षेत्र में जाने से सरकार का राजस्व डेढ़ गुना बढ़ कर 9.30 हज़ार करोड़ हो जाता।
पर ज्योंहि इस पर सियासी विवाद उठा तो दिल्ली सरकार इस नीति को लेकर बैकफुट पर दिखाई देने लगी। इसके पीछे कारण दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा नई आबकारी नीति के कार्यान्वयन की सीबीआई जांच की सिफारिश है। दिल्ली सरकार पर आरोप है कि नई आबकारी नीति में नियमों की अनदेखी के चलते शराब की दुकानों के टेंडर दिए गए हैं। उपराज्यपाल की सिफ़ारिश के बाद आनन-फ़ानन में दिल्ली सरकार ने पुरानी व्यवस्था को लागू करने का निर्णय लिया है। फ़िलहाल यह पुरानी व्यवस्था 6 महीने के लिए ही लागू की जाएगी। इन 6 महीनों में दिल्ली सरकार एक नई नीति लाने की योजना बनाएगी। इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली सरकार ने जैसा अनुमान लगाया था वैसा नहीं हुआ।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब केजरीवाल द्वारा लिए गए निर्णय विवादों में न आए हों। विपक्ष को इन विवादों के पीछे अनुभवहीनता की झलक दिखाई देती आई है। फिर वो चाहे मुफ़्त में बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएँ हों या महिलाओं को बसों में मुफ़्त यात्रा हो। विपक्ष केजरीवाल को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ती। केजरीवाल सरकार द्वारा लिए गए कुछ निर्णय अव्यावहारिक ज़रूर रहे हैं। लेकिन कई निर्णय ऐसे भी हैं जिनमें कुछ विभागों में जनता की सहूलियत सालों से चले आ रहे भ्रष्टाचार पर भारी पड़ी। इनमें ज़्यादा विवाद नहीं उठे क्योंकि ज़्यादातर लोगों को इन नीतियों से लाभ ही मिला।
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मिसाल के तौर पर ड्राइविंग लाइसेंस के नवीकरण का घर बैठे ही हो जाना एक अच्छा कदम है। परंतु इसके साथ ही केजरीवाल सरकार द्वारा दिल्ली की सड़कों को यूरोप की तर्ज़ पर सजाने के निर्णय से मौजूदा सड़कों की चौड़ाई कम की गई जिससे नागरिकों को आए दिन काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सड़कों पर जाम बढ़ गए है। बिना वजह लाखों का क़ीमती ईंधन ज़ाया जाने लगा। मौजूदा सड़कों की मरम्मत और रख-रखाव कर इन्हीं को दुरुस्त बनाया जा सकता था। परंतु जल्दबाज़ी के निर्णय से जनता को जो कष्ट झेलने पड़ते हैं उनका विचार किए बिना नई नीतियों को लागू कर दिया जाता है।
शराब की दुकानों के विषय में दिल्ली सरकार की नई आबकारी नीति का लाना, फिर वापस पुरानी नीति पर जाना, इसी बात का संकेत है कि केजरीवाल सरकार के अफ़सर जनता के कर के पैसे को ऐसी योजनाओं पर बर्बाद कर रहे हैं। यदि ध्यान से देखा जाए तो दिल्ली में शराब की बिक्री को लेकर बार-बार बदलाव के कारण उपभोक्ताओं को दिल्ली से सटे एनसीआर इलाक़ों में जा कर शराब ख़रीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इससे सरकार के राजस्व में भी घाटा हो रहा है।
ग़ौरतलब है कि 2021-22 की नई आबकारी नीति को 31 मार्च 2022 के बाद दो बार दो-दो महीने के लिए बढ़ाया गया था। यदि ऐसा हुआ था तो इसका यही मतलब हुआ कि यह नीति ठीक थी। दिल्ली सरकार के उप-मुख्य मंत्री मनीष सिसोदिया के अनुसार शराब की तय 850 दुकानों में से केवल 468 दुकानें ही चल रही थीं। सिसोदिया ने केंद्र में भाजपा की सरकार पर आरोप लगाया है कि उनके द्वारा इन दुकानदारों को भी ईडी और सीबीआई का भय दिखा कर बन्द करवाया जा रहा है। इस सब से दिल्ली में शराब की क़िल्लत पैदा हो जाएगी। नतीजतन तस्करी वाली शराब और नकली शराब के धंधे में इज़ाफ़ा होगा। जो भी हो दिल्ली में शराब के शौक़ीन लोगों को या तो महंगी शराब के सहारे रहना होगा या पड़ौस के शहरों से शराब ले कर पीना होगा। शायद बच्चन साहब ने सही ही कहा ‘रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला’ !