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बेशर्म जमाने में नए मीडिया का धमाल

Byसंजय सिंह,
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बेशर्म जमाने में नए मीडिया का धमाल
मुख्यधारा की मीडिया से आपको शायद अभी तक यह पता नहीं चला होगा कि लड़कियां अब खुले आम धमकी देती हैं कि वे रेप का आरोप लगा देंगी, सुनी तो उनकी ही जाएगी और जिन्दगी भर जेल में चक्की पीसेगा। इस गलतफहमी में या इस कानून के दम पर कई लड़किया शादी से पहले किसी को फंसाती हैं, उससे उसकी संपत्ति ऐंठती हैं और फिर किसी से शादी कर लेती हैं। जो मारा गया उसकी कोई पूछ नहीं। (importance of social media) लेखक- संजय सिंह इसमें कोई दो राय नहीं है कि मीडिया इस समय अपने सबसे बेशर्म दौर से गुजर रहा है। बहुत पुरानी बात नहीं है जब मीडिया का मतलब अखबार और कुछ गिनी चुनी पत्रिकाएं ही हुआ करती थीं। आज तक रेडियो, मन की बात से आगे नहीं बढ़ पाया हैं हालांकि, वह अलग रोना है। संचार क्रांति के परिणामस्वरूप मीडिया को भी बदलना था और वीडियो या टेलीविजन वाला मीडिया प्रिंट मीडिया की तरह आदर्श नहीं था। बुद्धू बक्सा पैसे कमाने में लग गया और इसकी साख बनाने में कुछ ने अपनी जान तक गवां दी लेकिन बुद्धू बक्से ने जो समाज बनाया उसका असर अब पूरी तरह दिख रहा है। यहां तक तो सामान्य है पर मीडिया खासकर टेलीविजन मीडिया ने जो समाज बनाया है उसे अब वह खुद नहीं दिखाता है या दिखा पा रहा है। या दिखाने लायक नहीं मानता है। कोई भी स्थिति सराहनीय नहीं है। आप कह सकते हैं कि आज के हमारे समाज के लिए अकेले मीडिया जिम्मेदार नहीं है और समाज राजनीति से अछूता नहीं हो सकता है। फिर भी समाज और राजनीति की हालत के लिए मीडिया को ही जिम्मेदार माना जाएगा और यह स्थिति इतनी दिलचस्प या चिन्ताजनक है कि मीडिया अपने ही बनाए समाज के हरेक पहलू को नहीं दिखा पा रहा है। और बात इतनी ही नहीं है कि वह समाज का सही चित्रण नहीं कर रहा है बल्कि उसे नहीं दिखा रहा है जिसे दिखाना नहीं चाहता है। इसमें यह तथ्य भी है कि मीडिया अपने भविष्य के प्रतिद्वंद्वी की सफलता पर टिप्पणी तो नहीं कर रहे है उसकी खबर भी नहीं दे रहा है। शायद उसे खतरे का आभास हो। वास्तविक स्थिति चाहे जो हो, यूट्यूब पर मीडिया के लोगों की सफलता की चर्चा मीडिया में नहीं होना चौंकाता है। अब यह लगभग सार्वजनिक हो चुका है कि मीडिया ने बहुत ही योजनाबद्ध ढंग से हमारे समाज को बनाया-बदला और इस बदले हुए समाज को ही आदर्श बनाने के फेर में उसने सच का साथ छोड़ दिया है। मीडिया ने यह सब अपने प्रभाव और काम से किया होता तो शायद यह स्वीकार कर पाता कि उसने जो सोचा था वह सही नहीं थी या वैसा नहीं हुआ। लेकिन मीडिया का मकसद शायद पैसा कमाना था और पैसे कमाने की होड़ में मीडिया ने वह सब छोड़ दिया जो उसका काम था। इन्हीं कामों में एक काम है सच्चाई बताना। सच्चाई यह है कि खबरें अब यू ट्यूब पर ज्यादा अच्छी होती हैं पर लाखों करोड़ों में चैनल शुरू होता था और एक ही प्रोग्राम बार-बार चलता रहता था। india digital freedom twitter अब स्थिति उलट सी गई है। कोई भी अपना यूट्यूब चैनल शुरू कर सकता है और प्रोग्राम बनाना इतना आसान या सस्ता है कि एक ही चीज बार-बार दिखाने की जरूरत नहीं है। लेकिन दर्शक देखना चाहें तो किसी भी समय देखने के लिए उपलब्ध है। संचार क्रांति और तकनीक का मिलाजुला असर है। मीडिया की नौकरी से परेशान और निराश बहुत सारे लोग यू ट्यूब पर अच्छा काम कर रहे हैं। बात सामान्य मनोरंजन की हो या खबरों की, गंभीर-रहस्यमयी जानकारियों की हो या पाकविधियों की। हजारों लोग अपनी बहुत सामान्य प्रतिभा से लेकर असामान्य श्रम के दम पर बहुत अच्छा कर रहे हैं। मुख्य धारा की मीडिया में इसकी चर्चा नहीं के बराबार है। दरअसल उसका फॉर्मेट ही ऐसा है कि वहां करोड़पतियों की जरूरत नहीं है। इसलिए वहां हर तरह के लोग भिन्न स्तर पर अलग कारों से धमाल मचाए हुए हैं। कुछ लोगों को देखकर और उनकी प्रस्तुतियों से भी लगता है कि कमाई अच्छी है। इसलिए गोदी मीडिया की काट गोदी में है बस उसे रूप और आकार लेने दीजिए। यू-ट्यूब और सोशल मीडिया चैनल पर आने वाले एक्जपोज और हेल्पिंग वीडियो तो कमाल कर रहे हैं। 90 के दशक में जब हमलोग पत्रकारिता में नए थे तो लगता था कि कुछ गलत कैसे हो सकता है और गलत देखकर चुप कैसे रहा जा सकता है। लिहाजा सब-कुछ अखबारों में होता था। हमलोगों ने ऐसी कई खबरें की हैं। फिर टेलीविजन पर अपराध सीरियल आने लगे। अब यू-ट्यूब पर ऐसे-ऐसे अपराध की चर्चा होती है जिसे आपने सुना ही नहीं होगा। कुछ वीडियो निर्माता लोगों की खूब सहायता करते हैं। इन्हें देखकर लगता है कि पुलिस कहां है और कानून का राज किसलिए होता है। मुख्यधारा की मीडिया से आपको शायद अभी तक यह पता नहीं चला होगा कि लड़कियां अब खुले आम धमकी देती हैं कि वे रेप का आरोप लगा देंगी, सुनी तो उनकी ही जाएगी और जिन्दगी भर जेल में चक्की पीसेगा। इस गलतफहमी में या इस कानून के दम पर कई लड़किया शादी से पहले किसी को फंसाती हैं, उससे उसकी संपत्ति ऐंठती हैं और फिर किसी से शादी कर लेती हैं। जो मारा गया उसकी कोई पूछ नहीं। ऐसा सिर्फ लड़किया नहीं करती हैं। लड़के भी दो-दो लड़कियां घुमाते हैं। मजे करते हैं और किसी बहाने से निकल लेते हैं। इसमें भावनाओं का जो होता है उसका वीडियो बताता है कि हमारा समाज कहां पहुंच चुका है। इन खतरनाक लड़कों और लड़कियों को एक्सपोज करने के लिए वहां भी लड़कों और लड़कियों दोनों की टीम है। सब अच्छा काम कर रही हैं। कुछ अपवाद जरूर हैं। कुछ को परेशान (पुलिस द्वारा) किए जाने के वीडियो भी दिखे। लेकिन जो वीडियो बनाए हैं उसके मुकाबले यह सब कुछ नहीं है। कुल मिलाकर यह एक नया उभरता काम है और असंगठित तो है ही उसका प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया है। ऐसा में कुछ लोग गलती कर जाते हैं। जरूरत है इन लोगों को संरक्षण और सहायता के साथ प्रोत्साहन देने की। सरकार से तो उसकी उम्मीद नहीं ही है, मीडिया के साथियों को मीडिया की सहायता मिलने लगे तो कम नहीं होगा।  
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