जीवन मंत्र

नूनन सिंड्रोम यानी अविकसित शरीर के साथ पैदा होना....

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नूनन सिंड्रोम यानी अविकसित शरीर के साथ पैदा होना....
कुछ दिनों पहले एक अंतर्राष्ट्रीय खबर सुर्खियों में थी कि योरोप में एक लड़की ने मुकदमा किया कि जब वह गर्भ में थी तो देख-रेख कर रहे डॉक्टर ने उसकी मां को गर्भपात की सलाह नहीं दी जिससे वह अविकसित शरीर के साथ जन्मी और अब भयावह जीवन जी रही है। अदालत ने मुकदमा सुना और डॉक्टर को दोषी मानते हुए कई करोड़ का जुर्माना करके लड़की को मुआवजा दिलवाया। यह लड़की नूनन सिंड्रोम के साथ पैदा हुयी थी जो डॉक्टर की गलती से हुआ क्योंकि आज ऐसी मेडिकल सुविधायें उपलब्ध हैं जिनसे पता चल जाता है कि गर्भस्थ शिशु पूरी तरह स्वस्थ है या नहीं। Noonan syndrome underdeveloped body नूनन सिंड्रोम जेनेटिक रोग है जिसकी वजह शरीर के विभिन्न हिस्सों का सामान्य विकास नहीं हो पाता परिणाम एब्नार्मल फेसियल फीचर, छोटा कद, हृदय रोग,  नंपुसकता व शारीरिक विकास में देरी के रूप में सामने आता है। लक्षण क्या उभरते हैं? नूनन सिंड्रोम में आमतौर पर ये लक्षण उभरते हैं- अजीबोगरीब चेहरा: पीड़ित के नैन-नक्श सामान्य नहीं होते, इनकी आंखें चौड़ी नीचे की ओर झुकीं, कान छोटे पीछे की ओर मुड़े तथा नाक पिचकी होती है। नाक और मुंह के बीच गहरी नाली तथा ऊपरी होंठ चौड़ापन लिये हुए व नाक के किनारे से मुंह के कोने तक चलने वाली क्रीज उम्र के साथ गहरी हो जाती है। दांत टेढ़े-मेड़े, तालू अत्यधिक धनुषाकार, निचला जबड़ा छोटा, बड़ा सिर, हेयरलाइन बहुत पीछे व चेहरा टेढ़ा तथा भावहीन होता है, उम्र के साथ त्वचा पतली हो जाती है। बचपन में ये लक्षण कम लेकिन उम्र बढ़ने के साथ ज्यादा स्पष्ट हो जाते हैं। दिल की बीमारी: नूनन सिंड्रोम के ज्यादातर मरीज किसी न किसी हृदय रोग के साथ पैदा होते हैं जैसे खराब वाल्व, हृदय की मांसपेशिया थिक होना, दिल में छेद, एरिदमिया, पुलमोनरी आर्टरी स्टेनोसिस और अरोटिक करेक्टेशन। इन्हीं जन्मजात हृदय दोषों का असर चेहरे तथा शरीर के अन्य भागों के विकास पर पड़ता है जिससे फेसियल फीचर अविकसित रह जाते हैं। असामान्य ग्रोथ: पीड़ित के शरीर में ग्रोथ हार्मोन के अपर्याप्त स्तर से शारीरिक विकास प्रभावित होता  है जैसे- जन्म के समय वजन सामान्य लेकिन उम्र बढ़ने के साथ विकास धीमा। तालू और जबड़े के ठीक से विकसित न हो पाने से खाना खाने में परेशानी के कारण कुपोषण या मोटापा। हड्डियों की परिपक्वता में देरी से किशोरावस्था में होने वाला विकास धीमा व किशोरावस्था के बाद भी जारी, वयस्कता तक कुछ लोगों का कद सामान्य लेकिन ज्यादातर का छोटा इत्यादि। मस्कुलोस्केलेटल समस्यायें: असामान्य रूप से धँसी (पेक्टस एक्वावेटम) या उभरी छाती (पेक्टस कैरिनटम) के साथ वाइड-सेट निपल्स, छोटी गर्दन, गर्दन की त्वचा में अतिरिक्त सिलवटें (जालीदार त्वचा), रीढ़ में टेढ़ापन इत्यादि। सीखने की अयोग्यता: नूनन सिंड्रोम ग्रस्त अधिकांश लोग दिमागी रूप से ठीक होते हैं लेकिन कुछ में सीखने-समझने, सुनने-देखने की क्षमता कमजोर,  भावनात्मक और व्यवहारिक मुद्दों की कम समझ जैसे लक्षण नजर आते हैं। आंखों की समस्यायें: नूनन सिंड्रोम का एक सामान्य संकेत आंखों और पलकों की असामान्यताएं हैं जैसे- क्रॉस-आई (स्ट्रैबिस्मस), मायोपिया, हाइपरोपिया,निस्टागमस और मोतियाबिंद। सुनने में समस्याएं: नूनन सिंड्रोम से तंत्रिका संबंधी मुद्दों या आंतरिक कान की हड्डियों में संरचनात्मक असामान्यताओं के कारण पीड़ित की सुनने की शक्ति प्रभावित होती है। ब्लीडिंग: कम प्लेटलेट्स होने से चोट लगने पर अत्यधिक रक्तस्राव का रिस्क रहता है। लिम्फेटिक कंडीशन: पीड़ित की लिम्फेटिक प्रणाली में समस्यायें हो जाती हैं जिससे संक्रमण से लड़ने व शरीर से अतिरिक्त तरल पदार्थ निकलने में दिक्कत होती है। इसकी वजह से आमतौर पर हाथों के पीछे या पैरों के ऊपर, दिल और फेफड़ों के आस-पास अतिरिक्त तरल पदार्थ (लिम्फेडेमा) जमा हो जाता है। ये समस्यायें जन्म से पहले या बाद कभी भी हो सकती हैं।   जननांगों पर असर: नूनन सिंड्रोम ग्रस्त पुरुषों के अंडकोषों में क्रिप्टोर्चिडिज्म बीमारी हो जाती है जिससे नपुंसकता का रिस्क बढ़ता है, लड़के-लड़कियों के यौवन में देरी होती है। इसके कारण किडनी की संरचना बदल सकती है। त्वचा पर असर:  नूनन सिंड्रोम से त्वचा का रंग और टेक्सचर बदलने लगता है, व्यक्ति के बाल मोटे, घुंघराले या फिर हल्के हो जाते हैं। Read also काला-अंधा वर्ष 2040… और वजह? कारण क्या हैं इसके? यह बीमारी जेनेटिक है, इसमें म्यूटेशन से खराब हुए जीन की प्रति माता-पिता से बच्चे में आ जाती है। कुछ मामलों में यह माता-पिता से न आकर बच्चे में नये जीन म्यूटेशन से होती है। म्यूटेशन एक या एक से अधिक जीनों में हो सकता है। इससे शरीर का प्रोटीन उत्पादन प्रभावित होता है। हमारे जीन शरीर में ऊतकों के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं, प्रोटीन की निरंतर सक्रियता से कोशिका वृद्धि और विभाजन की सामान्य प्रक्रिया बाधित हो जाती है। क्या कॉम्प्लीकेशन हो सकते हैं? नूनन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चों को ऑर्गनाइजेशनल और सामाजिक विषय समझने में कठिनाई होती है जिसका असर ऐजूकेशन पर पड़ता है और बच्चे की सीखने और शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशेष प्रबन्ध करने पड़ते हैं। इन्हें हमेशा ब्लीडिंग का रिस्क रहता है, चाहे सामान्य चोट हो, डेन्टल सर्जरी या फिर कोई अन्य। ऐसे लोगों के हृदय और फेफड़ों के आसपास फ्लूड जमा होने से जान पर बन आती है। किडनी में संरचनात्मक दोष होने से यूटीआई का जोखिम बढ़ता है। अंडकोषों में खराबी के कारण शुक्राणुओं में कमी से प्रजनन सम्बन्धी समस्याएं हो जाती हैं। ल्यूकेमिया कैंसर तथा अन्य प्रकार के ट्यूमर विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है। पुष्टि कैसे? इसकी प्राथमिक पुष्टि लक्षणों से लेकिन कम्पलीट पुष्टि के लिये मॉलीकुलर जेनेटिक टेस्टिंग की जरूरत होती है। यदि बच्चे में हृदय सम्बन्धी समस्यायें हैं तो हृदय रोग विशेषज्ञ विशेषज्ञ को इसका सबसे पहले संदेह होता है,  हृदय रोग के साथ फेसियल लक्षण काफी हद तक इसकी पुष्टि कर देते हैं। इलाज कैसे? हालांकि नूनन सिंड्रोम के लिये जिम्मेदार जीन म्यूटेशन को ठीक करने का कोई तरीका नहीं है, लेकिन मेडिकल साइंस की प्रगति से इसके लक्षणों और जटिलताओं कम करके काफी हद तक सामान्य जीवन जी सकते हैं। इसका इलाज लक्षणों के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर है, इसमें डॉक्टरों की एक पूरी टीम शामिल होती है। यदि व्यक्ति को दिल सम्बन्धी समस्यायें हैं तो सबसे पहले उन्हीं का इलाज किया जाता है, जिससे अन्य समस्यायें काफी हद तक ठीक हो जाती हैं। यदि बच्चे की ग्रोथ ठीक नहीं है तो हारमोन थेरेपी की जरूरत पड़ती है, इससे छोटे कद को काफी हद तक सामान्य कर सकते हैं। इसी तरह से ईएनटी स्पेशलिस्ट दृष्टि और सुनने सम्बन्धी समस्यायों का इलाज करते हैं। ब्लीडिंग से बचने के लिये ब्लड क्लॉटिंग दवायें खानी पड़ सकती हैं। जननांगों सम्बन्धी दोष ठीक करने के लिये हारमोन थेरेपी के साथ सर्जरी की जरूरत पड़ती है। रिस्क फैक्टर जिन बच्चों के माता-पिता नूनन सिंड्रोम ग्रस्त होते हैं या दोषपूर्ण जीन (ऑटोसोमल) वहन करते हैं, उनमें इसकी संभावना 50 प्रतिशत, जिन मामलों में यह नये म्यूटेशन (डीनोवो) के रूप में विकसित होती है में सम्भावना 5 प्रतिशत होती है। यह याद रखें कि विरासत में मिली बीमारी के लक्षण ज्यादा गम्भीर होते हैं जबकि नये म्यूटेशन में लक्षण हल्के और वयस्क होने तक बहुत कम रह जाते हैं। कैसे बचें इससे? नूनन सिंड्रोम के कई मामले अनायास होते हैं, इसलिए इसे रोकने का कोई ज्ञात तरीका नहीं है। यदि इसकी फैमिली हिस्ट्री है, तो बच्चे पैदा करने से पहले अपने डॉक्टर से आनुवंशिक परामर्श लें। मॉलीकुलर जेनेटिक टेस्टिंग से नूनन सिंड्रोम का पता लगाया जा सकता है, इसका जल्द पता चलने पर निरंतर और व्यापक देखभाल से हृदय रोग से जुड़ी जटिलताओं को कम किया जा सकता है। नूनन सिंड्रोम के प्रति नजरिया यदि नूनन सिंड्रोम की फैमिली हिस्ट्री है तो प्रसव पूर्व जांच अनिवार्य है, जांच में गर्भस्थ शिशु के इससे ग्रस्त होने पर यदि डॉक्टर गर्भपात की सलाह दे तो चुपचाप मान लें। यदि बच्चा होने के बाद इसका पता चले तो इलाज में देरी न करें, शुरू में नूनन सिंड्रोम के लक्षण हल्के हो सकते हैं इसलिये पुष्टि के लिये तुरन्त डॉक्टर से मिलें। पुष्टि के बाद डॉक्टर के निर्देशानुसार इलाज करायें। हो सकता है आपको कई अलग-अलग डॉक्टरों के पास जाना पड़े तो इसमें कोताही न बरतें क्योंकि अलग-अलग बीमारियों का इलाज अलग-अलग डॉक्टर करते हैं। आज इंटरनेट पर ऐसे बच्चों के लिये अनेक सहायता समूह मौजूद हैं आप उनकी मदद ले सकते हैं। ऐसे बच्चों और उनके माता-पिता को भावनात्मक सहयोग की जरूरत होती है इसलिये उनका मनोबल बढ़ायें और दिलासा दें कि उनका बच्चा दवाओं से काफी हद तक सामान्य हो जायेगा।
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