मध्य प्रदेश

जीत का श्रेय लेने और हार का ठीकरा फोड़ने की होड़

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जीत का श्रेय लेने और हार का ठीकरा फोड़ने की होड़
भोपाल। प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती राज और नगरी निकाय चुनाव के बहाने दोनों ही प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस मैं शिकवा शिकायतों और स्वागत अभिनंदन का दौर चल रहा है जिसमें अपने प्रतिद्वंद्वियों पर हार का ठीकरा फोड़ने अपने चहेतों को जीत का श्रेय दिया जा रहा है। पार्टी नेतृत्व भी स्थानीय स्तर पर कार्रवाई करने की बात कह कर मामला वहीं पर रफा-दफा करना चाहता है। Panchayati Raj Urban Body Elections दरअसल, प्रदेश में 2023 के विधानसभा के आम चुनाव के पहले हुए त्रिस्तरीय पंचायती राज और नगरी निकाय के चुनाव को एक तरह से सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। यही कारण है। दोनों दलों ने अपनी पूरी ताकत इन चुनावों में जो कि और कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को बार-बार चुनाव जीतने के लिए आगाह किया मोर्चे पर लगाया और प्रभारी बनाकर जीत का दायित्व भी सौंपा लेकिन इसके बावजूद जहां-जहां भाजपा हारी है और जहां - जहां कांग्रेस हारी है वहां के बारे में सवाल - जवाब लेने के पहले ही जिम्मेदार लोग शिकायतें करने लगे हैं और जहां जीत मिली है वहां स्वागत अभिनंदन चल रहा है लेकिन इस बहाने स्थानीय स्तर पर जिन नेताओं के बीच प्रतिद्वंदिता चलती है उनके खिलाफ बयानबाजी और शिकायतें हो रही है जिससे 2023 के लिए अभी से रास्ता साफ किया जा सके। बहरहाल, अभी नगर परिषद नगर पालिका और नगर निगम के अध्यक्षों के चुनाव चल रहे हैं और दोनों ही दल भाजपा और कांग्रेस अंतिम दौर में पूरा जोर लगा रहे हैं कि इन पदों पर भी जीत हासिल की जा सके लेकिन जहां पर त्रिस्तरीय पंचायती राज और नगरीय निकाय के जो भी चुनाव संपन्न हो चुके हैं। वहां पर एक तरफ जहां शिकवा शिकायतें चल रही है। वहीं दूसरी तरफ पार्टी अपने स्तर पर भी पता कर रही है कि किसने कहा पर गड़बड़ी की है। खासकर जिन लोगों को स्थानीय स्तर पर जिम्मेवारी सौंपी गई थी। वहां पर उनका रोल किस प्रकार का रहा। मसलन, पार्टी के जिला अध्यक्ष और संगठन के ओर से बनाए गए प्रभारियों को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे सभी नेताओं के बीच तालमेल बिठाते हुए चुनाव जितवाये और अधिकांश जगह ऐसा हुआ भी जहां पार्टी को उम्मीद नहीं थी वहां भी चुनाव जीते गए प्रभारी मंत्रियों ने अपने प्रभार के जिलों में पंचायती राज के चुनाव को जीतने में पूरा जोर लगाया और गृह जिले में नगरी निकाय के चुनाव में भी कोई कसर नहीं छोड़ी उसके बावजूद कुछ क्षेत्र ऐसे भी रहे जहां सत्तारूढ़ दल भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। पार्टी छह नगर निगम पर और 10 जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव हारी है जबकि कांग्रेस 11 नगर निगम और 41 जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव हारी है। Read also यह भी पढ़ें: ये न्याय है या मज़ाक ? दोनों ही दलों में समीक्षा चल रही है और बहुत कम स्थान ऐसे हैं जहां पर नेताओं ने कोई गड़बड़ी की हो अन्यथा माहौल और मैनेजमेंट के चुनाव में जहां भी सत्ताधारी दल द्वारा बेहतर मैनेजमेंट किया गया वहां पार्टी को जीत मिली है। कहीं-कहीं बेहतर मैनेजमेंट के बाद भी पार्टी चुनाव नहीं जीत पाई। जैसे कटनी महापौर के चुनाव में पार्टी प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और पूर्व मंत्री संजय पाठक ने पूरा जोर लगाया इसके बावजूद भाजपा के ही बागी को जीत मिली चंबल विंध्य और महाकौशल में पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन बाद में जिला पंचायत चुनाव में पार्टी नेता और अधिक ताकत से सक्रिय हुए और जीत हासिल की। कुल मिलाकर जीत और हार के कारण पूरी तरह से समीक्षा के बाद ही सामने आ जाएंगे अभी नगरी निकाय में अध्यक्षों के चुनाव चल रहे हैं लेकिन इसके पहले ही जीत का श्रेय लेने और हार का ठीकरा फोड़ने की होड दोनों ही दलों में चल रही है। Panchayati Raj Urban Body Elections
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