
भोपाल। जिस तरह एक को छुपाने के लिए हजार झूठ बोलना पड़ता है और अंत में झूठ सामने आ ही जाता है कुछ इसी तरह का हो रहा है पंचायती राज चुनाव में जिसके सरलीकृत करने की जितनी कोशिश की गई चुनाव उतना ही उलझता जा रहा है बुधवार को राज्य निर्वाचन आयोग के नए आदेश और भी संशय की स्थिति बन गई है जिसमें कहा गया है की जिन पदों पर चुनाव हो रहा है वहां मतदान तो होगा लेकिन मतगणना नहीं होगी। Panchayati Raj Election Voting
दरअसल पंचायती राज के चुनाव में यह व्यवस्था है कि मतदान केंद्र पर ही पंच सरपंच की मतगणना मतदान समाप्त होने के बाद तुरंत की जाएगी इसी तरह जनपद पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य की विकासखंड मुख्यालय पर मतों की गणना की जाती है लेकिन राज्य निर्वाचन आयोग ने समस्त पदों की मतगणना और निर्वाचन परिणाम की घोषणा सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का हवाला देते हुए आगामी आदेश तक तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दी हैं और इनके परिणाम की घोषणा में आयोग प्रथक से आगे कभी आदेश जारी करेगा यहां तक कि यदि किसी पद पर निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति बनती है तब भी रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा निर्वाचन घोषित नहीं किया जाएगा और ना ही निर्वाचन का प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के इस नए आदेश के बाद एक बार फिर ग्रामीण क्षेत्रों में असमंजस की स्थिति बन गई है क्योंकि ऐसे ही परिस्थिति में एक समय 1991 में पंचायती राज के चुनाव हुए थे और बाद में कैंसिल हो गए थे।
उस समय सीधे मतदान के जरिए जिला पंचायत अध्यक्ष का भी चुनाव हो रहा था और अधिकांश जगह वोट भी पढ़ चुके थे इस कारण इस समय जो भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में है वह आधे अधूरे मन से चुनाव लड़ रहा है क्योंकि उसे अभी भी संशय है कहीं भविष्य में यह चुनाव निरस्त ना हो जाए परिणाम पर तो वैसे ही रोक लग गई है।
बहरहाल प्रदेश के दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग त्रिस्तरीय पंचायती राज चुनाव में जो संशय के बादल छाए हैं उन्हें दूर नहीं कर पा रहा है एक तरफ जहां ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित सभी पदों पर मतदान रुका हुआ है वहीं दूसरी ओर सामान्य सीटों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीटों पर मतदान हो रहा है और परिणाम तभी आएगा जब ओबीसी वर्ग की आरक्षित सीटों पर भी मतदान हो जाएगा और तब फिर सभी परिणाम एक साथ घोषित किए जाएंगे।
इस बीच इतने कानूनी पेंच पंचायती राज के चुनाव में आ गए हैं की कोई भी कोर्ट में जाकर कोई और आदेश भी ला सकता है यही कारण है कि पूरे चुनावी माहौल में असमंजस का वातावरण बन गया है जिसके कारण चुनाव में दबाव प्रभाव और स्वभाव का उपयोग करके उम्मीदवारों को मैदान से हटाने की कोशिशें भी आधे अधूरे मन से हो रही है क्योंकि इन चुनाव का साफ रास्ता किसी को दिखाई नहीं दे रहा है।
विधानसभा में मंगलवार को दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस के प्रतिनिधियों ने इस संबंध में आम सहमति बनाने पर जोर दिया था मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ के बीच यह बातचीत भी हुई थी कि यदि जरूरत हुई तो दोनों एक साथ न्यायालय चलेंगे और रास्ता निकालेंगे लेकिन इस संबंध में अभी कोई बात आगे नहीं बढ़ी है।
बुधवार की सुबह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ में इस संबंध में सत्ता पक्ष में क्या प्रगति की इसकी जानकारी भी चाहिए थी लेकिन इस बीच दोपहर बाद मध्यप्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के इस नए आदेश से नई तरह की परिस्थितियां निर्मित हो गई है जिसमें पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर बाकी सभी पर मतदान तो होगा लेकिन मतगणना नहीं होगी और यह कब होगी यह कहा नहीं जा सकता इसी यक्ष प्रश्न का उत्तर खोजने में पंच परमेश्वर की नींद उड़ गई है।