nayaindia pitch controversy cricket टेस्ट क्रिकेट: पिच पर खेलना या पिच से खेलना?
सर्वजन पेंशन योजना
खेल समाचार

टेस्ट क्रिकेट: पिच पर खेलना या पिच से खेलना?

Share

“क्रिकेट एक भारतीय खेल था जिसकी खोज गलती से अंग्रेजों ने की।“ भारत में क्रिकेट के जुनून को देखते हुए चर्चित समाजशास्त्री आशीष नंदी का यह मानना रहा है। इतिहासकारों ने जो भी लिखा हो, अपन आशीष नंदी से इस पर बहस नहीं करेंगे। अपन मानते हैं केवल भारत ही नहीं बल्कि जिसको भी जीवन से प्रेम है उसको क्रिकेट खेल से भी प्रेम जरूर रहा होगा। भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता, किसी भी अन्य लोकप्रियता पर भारी पड़ती है। आप जानते ही हैं आस्ट्रेलिया का भारत दौरा चल रहा है। विश्व टेस्ट विजेता होने की होड़ लगी है। पिच पर स्पिन-स्पिन का खेल चल रहा है।

नागपुर और दिल्ली में टेस्ट तीन-तीन दिन में निपटने के बाद इंदौर में चल रहा तीसरा टेस्ट भी तीसरे दिन से आगे चलता नहीं दिख रहा है। बाकि जैसा जीवन के लिए कहा जाता हैं वैसे ही क्रिकेट के बारे में कुछ भी कहना जीवन और क्रिकेट दोनों की नासमझी ही होगी। कई साल पहले तक तो छह दिन के टेस्ट में एक दिन आराम का भी होता था। फिर बिना कोई आराम के पांच दिन के टेस्ट होने लगे। और अब केवल जीतने के लिए तीन-तीन दिन के टेस्ट मैच हो रहे हैं। यानी पिच ऐसी बनायी जाने लगी की अपने स्पिन गेंदबाजों को ही मदद मिले। जबकि जीवन की तरह क्रिकेट की पिच धीरे-धीरे ही मुश्किल होती जानी चाहिए। लेकिन अगर पहले दिन ही गेंद उपर-नीचे और तेजी से घूमने लगे तो दोनों टीम के बल्लेबाजों के साथ अन्याय ही माना जाएगा।

अगर याद करें तो पहली बार ऐसा सन् 1988 में वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ चेन्नई टेस्ट में हुआ था। रवि शास्त्री भारत के कप्तान थे। उन्हीं ने चेन्नई पिच को सूखा रखवाकर कमजोर तैयार करवाया था। पहले ही टेस्ट में नरेन्द्र हिरवानी ने 18 विकेट ले कर विश्व कीर्तिमान बनाया था। अपनी क्रिकेट को बेदी, चन्द्रा, प्रसन्ना और वेंकट की स्पिन चौकड़ी से जाना जाता रहा। घरेलू पिच बिना घास की बेहद धीमी और कम उछाल वाली रही हैं। समझा और देखा जाए तो घरेलू पिच स्पिन गेंदबाजी के भी अनुकूल नहीं रही हैं। क्योंकि स्पिन से खतरे के लिए भी पिच पर उछाल और तेजी चाहिए। वो तो बेदी और प्रसन्ना विदेश में बल्लेबाजों को हवा में चकमा देते थे, तो चन्द्रा और वेंकट घरेलू पिच पर अपनी गति से करामात दिखाते थे। मान्यता रही है कि स्पिन गेंदबाजी कुछ इंचों का ही मामला है ; वो जो अपने कानों के बीच में है।

चेन्नई में शास्त्री का अविष्कार सफल रहा। अपने स्पिन गेंदबाजों को खूब रास आया। फिर तो 1990 के दशक में हर विदेशी टीम को घर पर भारत ने धोया और हराया। पिच को सूखा छोड़ कर, कमजोरी में तैयार करने से अपने स्पिन गेंदबाज सफल होते रहे। भारत को उसकी घरेलू पिच पर हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन लगने लगा था। इन्हीं पिचों पर अपनी तेजी से कुंबले ने तंग किया, हरभजन ने हैरान किया और अब अश्विन चमका रहे हैं। लेकिन फिर सन् 2012 में भारत आयी इंग्लैंड के स्पिन गेंदबाज मॉंटी पानेसर और ग्राहम स्वॉन ने दो टेस्ट और श्रृंखला जीत कर सभी को हैरान कर दिया। समझ आया कि इंग्लैंड और भारत की स्पिन गेंदबाजी की गति में फर्क था जिसके कारण इंग्लैंड के बल्लेबाज भारत से ज्यादा अच्छा खेल पाए।

भारत की पिच क्योंकि धीमी, कम उछाल और स्पिन बेहद धीरे होती हैं इसलिए बल्लेबाजों को कदमों का इस्तेमाल करने की सीख दी जाती रही है। अब कदमों को नापने, जकड़ने के लिए स्पिन गेंद की गति में तेजी लायी जाने लगी। पिच को सूखा, आधा तैयार या लगभग अखाड़ा छोड़ा जाने लगा। इन पिचों पर भी डीआरएस के कारण एलबीडब्ल्यू ज्यादा होने लगे। घरेलू पिच पर शेर बने अपने क्रिकेट खिलाड़ी फिर भी विदेशी पिच पर हारते ही रहे। लेकिन समय फिर बदला। अपने तेज गेंदबाज भी विदेश में सफल होने लगे। विदेश में जीतने की शुरूआत होने पर घर पर भी जीत का लालच प्रकृति से खिलवाड़ का बहाना बना।

विज्ञान और तकनीक के दुरुपयोग से जो खिलवाड़ मानव अपने जीवन में कर रहा है वही खिलवाड़ क्रिकेट में जीत के लालच का कारण बन गया है। पिच पर खेलिए, पिच से नहीं। कतई, यह क्रिकेट नहीं है।

Tags :

By संदीप जोशी

स्वतंत्र खेल लेखन। साथ ही राजनीति, समाज, समसामयिक विषयों पर भी नियमित लेखन। नयाइंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

five × 5 =

और पढ़ें

Naya India स्क्रॉल करें