मध्य प्रदेश

मोदी जी गोवा का मुक्ति अभियान के अंतराष्ट्रीय परिणाम थे...!

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मोदी जी गोवा का मुक्ति अभियान के अंतराष्ट्रीय परिणाम थे...!
भोपाल। 1961 के दिसंबर 17 को भारत सरकार ने गोवा को मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया। थल और सागर की ओर से भारतीय सेनो की टुकडि़यों ने मेजर जनरल के. पी. कैनडेथ की अगुवाई में भोर में अपना अभियान शुरु किया था। जो 48 घंटे में पूरा कर लिया गया। 18 दिसंबर को पंजीम में जनरल कैनडेथ ने मिलिट्री गवर्नर के रूप में 1500 वर्ग मिल क्षेत्रफल वाले पुर्तगाली उपनिवेश को आज़ाद करा कर भारतीय गणराज्य में मिला लिया। 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कहा था कि अगर सरदार पटेल की तरह जूनागढ़ और हैदराबाद का फौजी रूप से विलय कर लिया होता तो देश को 15 वर्ष तक गोवा को परतंत्र नहीं रहना पड़ता! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अध्ययन अधूरा ही रहता हैं अथवा वे जान बूझ कर तथ्यों को या तो गायब कर देते हैं अथवा उनको भूल जाते हैं ! मोदी जी ने पंडित जवाहर लाला नेहरू पर अंतराष्ट्रीय सरोकारों को ध्यान में रखने और राष्ट्रिय सरोकारों की अनदेखी करने का आरोप संसद में लगाया ! जो कि दो अर्थो में दुर्भाग्यपूर्ण रही। प्रथम उन्हें यह नहीं मालूम कि पुर्तगाल नैटो सैन्य संधि का सदस्य था। जिसका अर्थ होता हैं की अमेरिका के नेत्रत्व में बने इस सैनिक संगठन की शर्त ही है एक देश की प्रभुता पर हमला सभी सदस्यों पर हमला है ! इस संगठन के सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और यूरोपीय देश जर्मनी आदि थे। ऐसी स्थिति में मोदी जी राष्ट्रियता का 15 वर्ष पूर्व गोवा को अधिकार में लेने का अर्थ होता दुनिया के बड़े राष्ट्रों की सैन्य ताकतों को चुनौती देना ! क्या एक नवोदित स्वतंत्र राष्ट्र ऐसी मूर्खतापूर्ण राष्ट्रीय हरकत कर सकता था ? उत्तर होगा नहीं। बल्कि पंडित नेहरू ने इस अभियान के लिए उचित समय चुना। 1961 के दिसंबर माह में सोवियत रूस के राष्ट्रपति बोरिस वोरोशिलोव दिल्ली की यात्रा पर आए हुए थे। 17 दिसंबर को वे दिल्ली में ही थे। जब दुनिया को भारतीय सैन्य कारवाई की जानकारी हुई, और नाटो सैनिक संगठनों के राष्ट्रों को खबर हुई कि उसके सदस्य देश पुर्तगाल की संप्रभुता वाले उपनिवेश गोवा को भारतीय सेनाओं ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया तब अमरीका, ब्रिटेन फ्रांस और पुर्तगाल ने -इस कारवाई का सैनिक प्रतिरोध करने का विचार किया। नवोदित राष्ट्र के सामने भयंकर चुनौती थी। तब रूसी राष्ट्रपति बोरिस वोरोशिलोव ने दिल्ली से एक बयान जारी करके भारतीय कारवाई को जायज बताया। Read also कांग्रेस पर हमले का बड़ा मतलब शीत युद्ध के उस काल में रूस के राष्ट्रपति की यह चुनौती ने अमेरिका और अन्य यूरोपीय राष्ट्रों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि भारत पर सैन्य कारवाई का मतलब रूस से भी भिड़ना होगा। अनेक यूरोपीय राष्ट्रों को सामने अपनी सीमा पर तैनात रूसी टैंकों का भय लगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोकसभा में यह कहना कि अगर नेहरू जी राष्ट्रवादी सोच से निर्णय लेते तो गोवा को 15 साल की गुलामी नहीं भोगनी पढ़नी पड़ती! आज़ादी के समय रियासतों के विलय को विदेशी उपनिवेशों मसलन गोवा - दमन - डीयू और पाओण्डिचेरी के बराबर नहीं रखा जा सकता ना तो कानूनी रूप से और ना ही संप्रभुता की दृष्टि से। लगता है गोवा के विलय के मामले की सम्पूर्ण जानकारी विदेश मंत्री जटा शंकर अरे जय शंकर जी ने मोदी जी के भाषण की जानकारी नहीं रही होगी। अन्यथा विदेश सेवा का एक पूर्व अधिकारी इतनी गलत तथ्य सार्वजनिक रूप से लोकसभा में नहीं कहने देता। गोवा के मामले में हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी कारवाई नहीं संभव हैं क्यूंकि यह विदेश नीति और अंतराष्ट्रीय कूट नीति का मामला हैं। आज यूक्रेन और रूस में तनाव की जो स्थिति है और नैटो तथा रूस की सेनाएं जिस प्रकार युद्ध को आमंत्रण देती दिख रही हैं, वैसा ही कुछ माहौल होता मोदी जी, तब क्या भारत इस ताक़त और शक्ति का मुक़ाबला कर सकेंगे ? अभी अपने दोस्त शी ज़ीन पिंग की लद्दाख की सीमाओं पर रोक भर ले। अंतराष्ट्रीय मुद्दा बन गया तो एक तिब्बत और बन जाएगा। श्रीमान कुछ जानकारी लेकर बयान दिया करे मदारी जैसे बयान से देश की समस्याएं हल नहीं होती।
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