अप्रैल में रिटायर होने वाले 55 राज्यसभा सदस्यों में से15 भाजपा के और 13 कांग्रेस के हैं| दोनों को तीन-चार सीटों का नुक्सान होगा ,जबकि तृणमूल कांग्रेस और वाईआरएस कांग्रेस की सीटें बढ़ेंगी। कांग्रेस को असम, आंध्र ,तेलंगाना , उड़ीसा , मेघालय , हिमाचल से आठ सीटों का नुक्सान है , जिस की भरपाई इन राज्यों से नहीं हो सकती। कांग्रेस को उम्मींद थी कि राजस्थान से -2, गुजरात से-1 और मध्य प्रदेश से भी 1 सीट ज्यादा मिलने के कारण 4 सीटों की भरपाई हो जाएगी। इस तरह उसके सिर्फ 4 सदस्य घटेंगे , मौजूदा 46 से घट कर 42 हो जाएंगे। लेकिन मध्य प्रदेश और गुजरात ने राज्यसभा के चुनाव दिलचस्प बना दिए हैं| संख्या बल के हिसाब से इन दोनों राज्यों से कांग्रेस को एक एक रिटायर होने वाले सदस्यों के बदले दो-दो सीटों पर जीत होनी चाहिए थी। कर्नाटक की तरह ही भाजपा ने मध्यप्रदेश और गुजरात के कांग्रेस विधायकों से भी इस्तीफे दिला कर अपनी सदस्य संख्या बरकरार रखने की कोशिश को सफल बना लिया है। मध्यप्रदेश से भाजपा के दो सदस्य रिटायर हो रहे हैं और भाजपा की कोशिश है कि वह दोनों सीटें दुबारा जीत कर आए जबकि कांग्रेस अपने एक सदस्य के बदले दो सीटें जीतने की स्थिति में थी जिसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने 22 विधायकों के साथ पाला बदल कर नामुमकिन बना दिया है|
अब भाजपा मध्यप्रदेश में अपने दो सदस्य वापस ले आएगी। इसी तरह गुजरात में कांग्रेस अपने एक रिटायर सदस्य के मुकाबले दो सीटें जीतने की स्थिति में थी , उसे सिर्फ एक विधायक की जरूरत थी , जिग्नेश मवानी ने समर्थन दे भी दिया था। लेकिन भाजपा ने कांग्रेस के पांच विधायकों के तो इस्तीफे करवा दिए हैं , कुछ और भी हो सकते हैं। यानी गुजरात में भी भाजपा अपनी तीनों सीटें बरकरार रखने की स्थिति में आ जाएगी।मध्य प्रदेश के बागी कांग्रेसी विधायकों के कारण कांग्रेस को राज्यसभा की एक सीट का नुक्सान तो होगा ही , उसकी सरकार भी जा रही है। राज्यपाल ने 16 मार्च को बहुमत साबित करने को कहा है , कमल नाथ कोरोना वायरस का बहाना बना कर बहुमत साबित करने से बचने की रणनीति बना रही है। संकेत हैं कि वह बहुमत साबित नहीं करेंगे और राज्यपाल बर्खास्तगी की सिफारिश कर देंगे।
कांग्रेस के बागियों को सम्भालने का ठेका भाजपा की कर्नाटक सरकार ने उठाया हुआ थातो सोनिया गांधी ने उन्हें बाँध कर रखने का ठेका अपनी राजस्थान सरकार को दिया है। बेचारे अशोक गहलोत कभी मध्य प्रदेश के कांग्रेसी विधायकों को होटलों में ठहराने की व्यवस्था में जुटते हैं, तो कभी गुजरात के विधायकों को सम्भालने की जिम्मेदारी निभाते हैं। इससे पहले महाराष्ट्र के विधायकों की देखभाल भी उन्हें करनी पड़ी थी।दल बदल क़ानून पूरी तरह विफल हो गया है| फर्क सिर्फ यह पड़ा है कि पहले विधायक सांसद कुछ लाख में मिल जाते थे अब कुछ करोड़ खर्च करने पड़ते हैं। जब दल बदल क़ानून नहीं था , तब रातों रात खेल हो जाता था। नर सिंह राव सरकार कैसे बचा करती थी , उसके अपन चश्मदीद गवाह हैं , झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों ने तो बाकायदा बैंकों में पैसा जमा करवाया था। कोर्ट ने इस मामले को इस लिए खारिज कर दिया था क्योंकि सांसदों के खिलाफ सबूत संसद के भीतर का मामला था जो कोर्ट की सीमा में नहीं आता|अटल बिहारी वाजपेयी ने क़ानून को सख्त बना कर जब से पार्टी विभाजन की शर्त एक तिहाही से बधा कर दो तिहाई कर दीं , तब से सांसदों विधायकों को इस्तीफे दिला कर सदन का संख्या बल घटाया जाता है , जिस से कम संख्या के बावजूद बहुमत का जुगाड़ हो जाता है। इस तरह सांसदों और विधायकों को जब दलबदल के लिए अपनी सीटों की कुर्बानी देनी पडती है तो वे कीमत भी ज्यादा वसूलते हैं। खाली की गई सीटों पर टिकट के अलावा भी कई शर्तें पूरी करनी पडती हैं।
राज्यसभा से इस्तीफा दे कर भाजपा में शामिल हुए सपा के रोहित शेखर और कांग्रेस के संजय सिंह अगली टर्म के साथ राज्य सभा में वापस आ गए हैं। भुवनेश्वर कलीता 26 मार्च को वापस आ रहे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार गिराने वाले सभी कांग्रेसी विधायकों को भाजपा का टिकट मिला था। अब जो गुजरात और मध्य प्रदेश में कांग्रेस छोड़ कर आ रहे हैं , उन की भी पूरी सेवा होगी ही।