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राजीव गांधीः भारत को आधुनिक पहचान दिलवाई

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राजीव गांधीः भारत को आधुनिक पहचान दिलवाई
राजीव गांधी सच्चे लोकतंत्रवादी थे। वे सद्भावना की मिसाल थे। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो सदा नये विचारों और रचनात्मक आलोचनाओं का स्वागत करते थे। उन्होने भारत को कंप्यूटर-आईटी-ज्ञान की नई सदी के लिए तैयार किया।  एक सांसद, प्रधानमंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्होंने जो भी भूमिका निभाई, सभी में अपनी कार्यकुशलता की अमिट छाप छोड़ी। भारत रत्न राजीव गांधी आज इस भले नहीं हो लेकिन भारत को आधुनिक पहचान दिलाने का उनका योगदान इतिहास के स्वर्णिम अध्याय के रूप में अंकित है। उन्होने भारत को कंप्यूटर-आईटी-ज्ञान की नई सदी के लिए तैयार किया।  लोकप्रिय जननेता और प्रधानमंत्री के रूप में देश को विकास पथ पर ले जाकर अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत को ऊँचाई दिलाई। उन्होंने भारत को आधुनिक, खुशहाल और मजबूत राष्ट्र बनाने में विषेष भूमिका निभाई। राजीव गांधी भारत के समग्र विकास के प्रति संकल्पवान थे। देश को तेजी से तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ाने के उन्होंने सार्थक प्रयास किये। राजीव गांधी का व्यक्तित्व विराट था। राष्ट्रहित उनके चिन्तन का प्रमुख हिस्सा था। सर्व धर्म सद्भाव की भावना उनके मानस में रची बसी थी। राजीव गांधी के व्यक्तित्व में परंपरा और आधुनिकता का मणिकांचन योग था। राजीव गांधी सच्चे लोकतंत्रवादी थे। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो सदा नये विचारों और रचनात्मक आलोचनाओं का स्वागत करते थे। एक सांसद, प्रधानमंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्होंने जो भी भूमिका निभाई, सभी में अपनी कार्यकुशलता की अमिट छाप छोड़ी। राजीव गांधी का मानना था कि भारत हमेशा से नैतिक मूल्यों का पक्षधर रहा है। ये मूल्य हैं - “सत्य, अहिंसा और मानवता“। दरअसल, इन्हीं नैतिक मूल्यों के साथ बेहतर समन्वय कर वे देश को सर्वांगीण विकास के पथ पर ले जाना चाहते थे। निःसंदेह, वे सद्भावना की मिसाल थे। राजीव गांधी भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रथम सूत्रधार थे। आज जिस डिजिटल इंडिया को पूरा देश  अपनाए हुए है, उसकी आधाशीला राजीव गांधी ने ही रखी थी। उन्होंने संचार क्रांति का शंखनाद किया। वे देश में कम्प्यूटर क्रांति को लिवाने वाले थे।  राजीव जी का विश्वास था कि भारत का भविष्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निहित है। राजीवजी उच्च तकनीकी को गरीबी उन्मूलन का माध्यम मानते थे। उनकी सोच में ऐसे उन्नत भारत की तस्वीर थी, जिसे सूचना प्रौद्योगिकी के द्वारा ही सँवारा जा सकता है। विकसित राष्ट्रों तक ने हमारी मानव शक्ति की टेक्नोलाजी प्रवीणता को न केवल स्वीकारा बल्कि उस पर निर्भर हुए। इसके अलावा उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, पर्यावरण आदि क्षेत्रों में नये कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया। पेयजल, खाद्यान्न, दूरसंचार, कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में भी प्रगति हेतु विभिन्न टेक्नोलाजी मिशन गठित किए। राजीव गांधी का मानना था कि किसान हमारे देश की रीढ़ हैं। खेती-किसानी की तरक्की के बिना देश की तरक्की संभव नहीं है। राजीवजी ने सातवीं पंचवर्षीय योजना में कृषि में ज्यादा पूंजी निवेश का प्रावधान किया। कृषि में उत्पादकता बढ़ाने के लिए जल संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल पर जोर दिया। इसी का परिणाम था कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में खाद्यान्नों का रिकार्ड उत्पादन हुआ। राजीवजी ने हरितक्रांति की समीक्षा की और यह पाया कि हरितक्रांति से गेहँ का उत्पादन तो काफी बढ़ा है, परंतु तिलहन और दलहन के क्षेत्र में  अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है। उन्होंने तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए तिलहन टेक्नोलाजी मिशन बनाया। दलहन के लिए राष्ट्रीय परियोजना शुरू की। राजीव जी के मन में गरीबों के प्रति सच्ची हमदर्दी थी। वे एक ऐसे समाज की स्थापना के लिए आतुर थे जिसमें सब बराबरी के साथ अपनी जिन्दगी जियें और स्वाभिमान के साथ गुजर-बसर कर सकें। राजीव गांधी ने समय की चुनौतियों को समझने एवं उसके मुताबिक देश को आगे ले जाने का साहसिक प्रयास किया। उन्हें नौजवानो की क्षमता और विवेक पर पूरा भरोसा था। राजीव गांधी ने नौजवानों को 18 वर्ष की उम्र में उन्हें मताधिकार दिलाकर उनकी सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित की। सबकी सुनना और सबको साथ लेकर चलना राजीवजी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विषेषता थी। वे आमजन की समस्याओं को बड़े ध्यान से देखते थे। फिर सही दिशा-निर्देश देकर उसको सुलझाने का काम करते थे, यही उनकी कार्यशैली थी। सांप्रदायिकता के खिलाफ राजीवजी की दृष्टि और दिशा दोनों बहुत स्पष्ट थी। राजीवजी ने लगातार फिरकापरस्त ताकतों, घृणा, आतंकवाद, अषिक्षा एवं गरीबी के खिलाफ संघर्ष किया। धर्म निरपेक्षता के पक्षधर राजीव गांधी अहिंसा, सौहार्द और शांति के अग्रदूत थे। राजीव गांधी कौमी एकता और सद्भाव को देश की सांस्कृतिक अस्मिता और गौरवशाली विरासत की धुरी मानते थे। वे जाति, धर्म और सम्प्रदाय के संकीर्ण दायरे से देश को उबारना चाहते थे। उनका प्रयास था कि भारत पारस्परिक सद्भावना का एक ऐसा गुलदस्ता बने जो महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और श्रीमती इंदिरा गांधी के दिखाए मार्ग पर चलकर नवनिर्माण के साथ विकास की मंजिल की ओर निरन्तर बढ़ता रहे। राजीवजी ने कभी भी बदले या द्वेष की भावना की राजनीति नहीं की। द्वेष शब्द तो उनकी डिक्शनरी में शायद था ही नहीं। राजीव गांधी राजनीति में सतत संवाद के पक्षधर थे। वे मानते थे कि बिना संवाद के विश्वास पैदा नहीं हो सकता और बिना विश्वास के राजनीति नहीं चल सकती। इसी पारस्परिक संवाद की राजनीति को अमलीजामा पहनाते हुए उन्होंने पंजाब, असम और मिजोरम समझौते किए, जिससे इन प्रदेशों में वर्षों से चल रही उथल-पुथल, अशांति एवं हिंसक गतिविधियों पर विराम लगा और हजारों अलगाववादी - उग्रवादी समाज की मुख्य धारा से जुड़े। उन्होंने पार्टीहित के बजाए राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए फैसले लिए। भारत रत्न राजीव गांधी जी ने अपने निष्कलंक, सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में जिस भी भूमिका का निर्वहन किया, उसमें वे पूर्ण रूप से कुंदन की तरह खरे उतरे। राजीवजी ने  जनमानस में सर्वप्रिय जननेता की अमिट छाप छोड़ी। राजीवजी जेसे युग पुरुष का जीवन, उनकी शहादत और स्मृतियाँ हमेशा देश के लिये प्रेरणा का स्रोत रहेंगी। (लेखक भारत सरकार में रक्षा उत्पादन, कार्मिक एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री रहे हैं)
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