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पिछड़ों के आरक्षण पर विजेता की मुद्रा में भाजपा

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Madhya Pradesh by election

भोपाल। प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती राज और नगरीय निकाय के चुनाव में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने के मामले में सड़क से लेकर सदन तक हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इतने मोड़ आए हैं कि दोनों ही दल भाजपा और कांग्रेस तारक और तथ्य देते देते थक गए और एक समय ऐसा आया कि बगैर ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने का आदेश दे दिया था लेकिन भाजपा ने अंतिम प्रयास करके 14% आरक्षण के साथ चुनाव कराने की स्थिति बनवा ली और विजेता की मुद्रा में पार्टी उत्सव मना रही है जबकि कांग्रेस अभी भी पिछड़ों के साथ ऐसे धोखा बता रही है। इतने उतार-चढ़ाव के बाद अब ओबीसी वर्ग ही बता पाएगा कि किस दल ने उसे क्या दिया।

दरअसल, किसी भी बात की घोषणा कर देना जितना सरल है उससे कई गुना कठिन उस पर अमल करना है। प्रदेश में पिछड़े वर्ग के आरक्षण को लेकर दोनों ही दलों भाजपा और कांग्रेस ने समय-समय पर बढ़-चढ़कर दावे किए खूब वादे किए लेकिन बड़ी मुश्किल से 14 प्रतिशत ही आरक्षण मिल पाया क्योंकि इससे ज्यादा आरक्षण देने पर कुल आरक्षण 50% से ज्यादा हो जाता जो सुप्रीम कोर्ट के अनुसार हो नहीं सकता है।

बहरहाल, बुधवार को भाजपा ने उत्सवी माहौल में प्रदेश कार्यालय में जश्न मनाया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 14% आरक्षण के साथ चुनाव कराने का फैसला दे दिया जबकि 1 सप्ताह पहले सुप्रीम कोर्ट ने बगैर आरक्षण के ही चुनाव कराने का आदेश दिया था और तब से दोनों ही दल एक दूसरे पर आरोप लगा रहे थे और सत्ताधारी दल भाजपा के नेता लगातार यह कह रहे थे। बगैर ओबीसी आरक्षण के चुनाव नहीं होंगे और इसी के तहत अंतिम प्रयास करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंत्री नरोत्तम मिश्रा और भूपेंद्र सिंह के साथ दिल्ली गए और विधि विशेषज्ञों से चर्चा के बाद मॉडिफिकेशन के लिए आवेदन दिया और जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराएं एवं यह भी मान लिया की 50% से अधिक आरक्षण नहीं होगा और इस शर्त पर केवल 14 परसेंट आरक्षण ही दिया जा सकता था और वह सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया।

इसी कारण भाजपा उत्साहित है कि बगैर ओबीसी के आरक्षण के चुनाव हो रहे थे उससे तो अच्छा है कि 14% आरक्षण के साथ चुनाव होंगे जबकि विपक्षी दल कांग्रेस इस पर भी भाजपा का आरोप लगा रही है। उसने समय पर सुप्रीम कोर्ट को जरूरी दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए और पिछड़े वर्ग के साथ धोखा है की केवल 14 परसेंट आरक्षण पर चुनाव होंगे जबकि कांग्रेस पार्टी 27% ओबीसी आरक्षण की पक्षधर थी और इसी की मांग लगातार करती रही है। भाजपा ने भी 35% आरक्षण दिए जाने की मांग रखी थी लेकिन यह दोनों ही मांगे यथार्थ के धरातल पर फिट नहीं बैठ रही थी। इन मांगों के पूरे करने पर कोल आरक्षण 70% तक चला जाता जो सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के विपरीत होता यही कारण है कि जैसे ही 50% कुल आरक्षण दिए जाने के अंदर 14% आरक्षण देना ओबीसी वर्ग के लिए कहीं दिक्कत करने वाला नहीं था सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया।

कुल मिलाकर जो हो सकता था और जो जरूरी था वह हो गया लेकिन राजनीतिक दलों के बीच अभी भी आरोप-प्रत्यारोप के दौर जारी है। दूसरी ओर राज्य निर्वाचन आयोग तेजी से चुनावी तैयारियों में जुटा हुआ है। कभी भी चुनाव की घोषणा हो सकती है और अब ओबीसी वर्ग ही बताएगा कि किस दल ने उसके लिए क्या किया दलों के पास एक मौका और है कि वे ओबीसी वर्ग को 27% या इससे अधिक टिकट दे सकते हैं। जिसकी दोनों ही घोषणा कर चुके हैं।

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