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क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय

मंगल पांडे ने एनफील्ड राइफल में प्रयोग की जाने वाली गाय की चर्बी मिले कारतूस को मुँह से काटने से मना करते हुए क्रांति का बिगुल फूंक दिया। जिसके कारण तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया, और उन्हें गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी। जबकि भारतीय जन उन्हें स्वाधीनता संग्राम के एक महान नायक के रूप में सम्मान देता है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया।

8 अप्रैल- पुण्यतिथि: देश को स्वाधीन कराने के लिए ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध क्रांति का प्रथम शंखनाद करने अर्थात बगावत की पहली चिंगारी भड़काने वाले भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी व महान क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय का जन्म उत्तरप्रदेश के बलिया के निकट नगवा गांव में 19 जुलाई 1827 को सरयुपारीण ब्राह्मण के घर हुआ था। पिता का नाम दिवाकर पाण्डेय और माता का नाम अभय रानी पाण्डेय था। इनके जन्म स्थान के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। कतिपय विद्वानों के अनुसार मंगल पाण्डेय का जन्म उत्तर प्रदेश के फैजाबाद के एक कस्बे में एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मंगल पाण्डेय सेना की कार्रवाइयों को देखकर बाल्यकाल से ही फौज में जाने के लिए उत्कंठित व  उत्साहित रहते थे।

मंगल पाण्डेय सन 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 34वीं बटालियन में पैदल सेना के 1446 नम्बर के सिपाही के रूप में शामिल हो गए। लेकिन अकबरपुर ब्रिगेड में पहली नियुक्ति के कुछ ही वर्ष बाद अंग्रेज़ी सेना से उनका मोह भंग हो दिल भर गया, और समय के साथ बदले हालात ने मंगल पाण्डेय को ब्रिटिश हुकूमत का दुश्मन बना दिया। फिर चर्बी लगे कारतूस और राइफल के विवाद ने आग में घी डालने का काम करते हुए उनके लिए क्रांति के शंखनाद का सबब बन गया। इसके बाद मंगल पाण्डेय ने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और एनफील्ड राइफल में प्रयोग की जाने वाली गाय की चर्बी मिले कारतूस को मुँह से काटने से मना करते हुए क्रांति का बिगुल फूंक दिया। जिसके कारण तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया, और उन्हें गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी। जबकि भारतीय जन उन्हें स्वाधीनता संग्राम के एक महान नायक के रूप में सम्मान देता है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया।

1857 के स्वाधीनता संग्राम में विद्रोह का प्रारम्भ 1850 के दशक के उत्तरार्ध में सिपाहियों के उपयोग के लिए लाई गई नई पैटन 1853 एनफील्ड राइफल अथवा बंदूक के कारण हुआ। 0।577 कैलिवर की यह बंदूक पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नई बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली प्रिकशन कैप का प्रयोग किया गया था, परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी ही थी। नई एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिए कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था, और उसमें भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी। सिपाहियों के बीच यह अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सूअर और गाय के मांस से बनायी जाती है। सिपाहियों ने इसे ब्रिटिश सरकार की सोची-समझी साजिश के तहत हिन्दू -मुसलमानों के धर्म से खिलवाड़ समझा। इन कारतूसों को मुंह से खोलकर राइफल में लोड करना हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिमों को भी गवारा नहीं था। कारतूस में चर्बी के प्रयोग से सिपाही उग्र थे। सैनिकों में इसको लेकर धीरे-धीरे बगावत होने लगी।

अंततः मंगल पाण्डेय ने कारतूस का इस्तेमाल करने से इंकार करते हुए 29 मार्च 1857 को अंग्रेज़ी सरकार का खुला विरोध कर दिया। और अपने सभी साथी सिपाहियों को इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। मंगल पाण्डेय ने फिरंगी मारो का नारा भी दिया। और कलकत्ता के निकट बैरकपुर परेड मैदान में 29 मार्च 1857 को रेजीमेंट के अफसर लेफ्टिनेंट बाग द्वारा कारतूस के इस्तेमाल के लिए दबाव बनाने हेतु जोर-जबर्दस्ती किए जाने पर मंगल पाण्डेय ने उन पर हमला कर बाग़ सहित दो ब्रिटिश अफसरों को घायल कर दिया। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ किसी भी सैनिक का यह पहला विरोध था। इसके बाद तो मंगल पाण्डेय पर धार्मिक उन्माद का आरोप लगा और जनरल जान ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया परन्तु ज़मादार ने गिरफ्तार करने से मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया।

मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिए कहा, परन्तु किसी के न मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से ही स्वयं अपनी प्राण लेने का प्रयास किया। परन्तु वे इस प्रयास में सिर्फ घायल हुये। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और उन्हें फांसी देने की तारीख 18 अप्रैल 1857 तय कर दी गई। लेकिन अंग्रेज शासकों को इस बात का डर सताने लगा कि अगर मंगल पाण्डेय को जल्द फांसी नहीं दी गई, तो स्वतंत्रता आंदोलन की चिंगारी बड़े पैमाने पर पूरे भारत में फैल जाएगी, जिसको बुझाना आसान नहीं होगा। इसी डर के कारण अंग्रेजों ने 18 अप्रैल के स्थान पर मंगल पाण्डेय को 8 अप्रैल को ही पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में फांसी दे दी। कहने के लिए तो मंगल पाण्डेय की इस बगावत को कुचल दिया गया और 6 अप्रैल को उनकी फांसी के आदेश दे दिए गए, तथा फांसी के लिए तय तिथि 18 अप्रैल के पूर्व ही देश में फैलती स्वाधीनता सेनानी गतिविधियों से भयभीत अंग्रेजों ने उन्हें 8 अप्रैल 1857 को ही फांसी देकर उस भय को समाप्त मान लेने का भ्रम पाल लिया। लेकिन मंगल पाण्डेय की इस बलिदान ने शेष सिपाहियों और देशवासियों में अंग्रेज़ों के विरुद्ध क्रांति फूंकने का, बगावत करने का हौसला भर दिया। मंगल पाण्डेय द्वारा लगाई गई विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं, बल्कि एक महीने बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में यह महाशंखनाद अर्थात महाबगावत के रूप में धधक कर दावानल बन सामने आई।

गुर्जर धनसिंह कोतवाल इस महाविप्लव के जनक के रूप में सामने आए। और यह महाविप्लव देखते ही देखते सम्पूर्ण उत्तरी भारत में फैल गया, जिससे अंग्रेजों ने यह स्पष्ट रूप से जान लिया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है, जितना वे समझ रहे थे। 1857 के इस प्रथम स्वाधीनता संग्राम की पहली झलक देखकर ही ब्रिटिश संसद ने ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त करने के लिए एक अधिनियम पारित किया। और भारत सीधे रानी के अधीन एक मुकुट उपनिवेश बन गया। भारतीयों को अपने अधीन रखने के लिए भारत में चौंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी कानून यहाँ की जनता पर लाद दिए गये, ताकि मंगल पाण्डेय की भांति अन्य कोई सैनिक अंग्रेज शासकों के विरुद्ध बगावत करने की हिम्मत न दिखा सके। यही कारण है कि 1857 के इस महाविप्लव को भारतीय स्वाधीनता संग्राम का प्रथम युद्ध कहा गया। लगभग 90,000 पुरुष विद्रोह में शामिल हुए। भारतीय पक्ष को कानपुर और लखनऊ में नुकसान का सामना करना पड़ा, लेकिन अंग्रेजों को सिख और गोरखा सेना से पीछे हटना पड़ा।

इतिहासकारों के अनुसार स्वतंत्रता आंदोलन के पहले क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय से भयभीत अंग्रेजों के द्वारा तय तारीख18 अप्रैल के पूर्व 8 अप्रैल को ही फांसी दे दिए जाने के कारण 8 अप्रैल का दिन भारतीय इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए प्रतिवर्ष 8 अप्रैल के दिन पूरे देश में मंगल पाण्डेय बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है, और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। मंगल पाण्डेय द्वारा प्रज्वलित स्वाधीनता की चिंगारी ने ही अंततः 90 वर्ष बाद भारत को स्वतन्त्रता दिलाई। मंगल पाण्डेय के बलिदान के बाद ही भारत ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए कमर कस ली। 1857 की इसी घटना ने सर्वप्रथम भारतीयों में क्रांतिकारी रूप में स्वतंत्रता के सपने को जन्म दिया था। अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम का शंखनाद कर  नेतृत्व करने वाले भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के ऐसे महान प्रथम क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय को उनकी पुण्यतिथि पर शत- शत नमन।

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By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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