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पहले से ही आत्महत्या के लक्षण

मनोचिकित्सकों के मुताबिक कि केवल 10 प्रतिशत लोग क्षणिक आवेश में सुसाइड करते हैं जबकि 90 प्रतिशत में यह टेन्डेंसी होती है। कुछ विशेष जीन्स लोगों में आत्मघाती प्रवृत्ति ट्रिगर करते हैं। जीन्स और सुसाइडल फैमिली हिस्ट्री के अलावा जिन वजहों से लोग आत्महत्या करते हैं उनमें पहला नंबर है बीमारी का। चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक।

अभी हाल में अपने एक करीबी की आत्महत्या के बारे में सुना, झटका लगा और मन में काफी समय तक यही ख्याल आते रहे कि ऐसा क्यों? लोग किस मनोदशा में आत्महत्या करते हैं, इस बारे में जानने के लिये मैंने देश के कई नामी-गिरामी मनोचिकित्सकों से बात की। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल करीब 10 लाख लोग आत्महत्या से मरते हैं और इससे 20 गुना ज्यादा आत्महत्या का प्रयास करते हैं। अपने देश में आत्महत्या की दर लगातार बढ़ रही है। गंभीर बात यह है कि अब यंग जेनरेशन भी इसकी चपेट में आ रही है। योरोप-अमेरिका में जहां पुरूष ज्यादा संख्या में आत्महत्या करते हैं वहीं अपने देश में महिलाएं। कारण वैवाहिक स्थिति और बदनामी का डर। पढ़ाई के बढ़ते दबाब और बदलते माहौल से अब बच्चों में भी आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है। दसवीं-बारहवीं के रिजल्ट आने पर ऐसी घटनायें अखबारों की सुर्खियां होती हैं।

मनोचिकित्सकों के मुताबिक कि केवल 10 प्रतिशत लोग क्षणिक आवेश में सुसाइड करते हैं जबकि 90 प्रतिशत में यह टेन्डेंसी होती है। कुछ विशेष जीन्स लोगों में आत्मघाती प्रवृत्ति ट्रिगर करते हैं। जीन्स और सुसाइडल फैमिली हिस्ट्री के अलावा जिन वजहों से लोग आत्महत्या करते हैं उनमें पहला नंबर है बीमारी का। चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक।

एग्रेसिव व्यवहार, एंग्जॉयटी, डिप्रेशन, मूड स्विंग, बाइपोलर डिस्आर्डर, कान्टेक्ट डिस्आर्डर, ड्रग डिपेन्डेंसी, पीटीएसडी, सिजोफ्रेनिया और ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजरी से दिमाग में आत्मघाती विचार आते हैं। अपंगता, असहनीय दर्द, कैंसर, एड्स और लाइलाज बीमारियां आत्महत्या का बड़ा कारण हैं।

अपने देश में इन्वॉयरमेन्टल फैक्टरर्स आत्महत्या का बड़ा कारण है। जैसे कर्जा, नौकरी जाना, उत्पीड़न, परीक्षा में फेल होना, प्यार में धोखा, व्यक्तिगत सम्बन्धों में तनाव और तलाक जैसे अचानक हुए बड़े बदलावों से आत्मघाती भावना ट्रिगर होती है। अति इमोशनल व्यक्तियों में सुसाइडल टेन्डेंसी अन्य की तुलना में अधिक होती है, शोध में सामने आया कि एक व्यक्ति को कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन उसने किसी अन्य की आत्महत्या के बारे में डिटेल में सुना तो खुद भी आत्महत्या कर ली। इसके अलावा डर या बदनामी से अपनी बात न कह पाना, आत्मघाती विचारों वाले लोगों से मिलना जुलना, कानूनी समस्यायों और एलजीबीटीक्यूआई के रूप में पहचान उजागर होने से लोगों ने आत्महत्या की। अलग-थलग रहने वाले और सामाजिक रिजेक्शन के शिकार व्यक्तियों में भी सुसाइडल टेन्डेंसी दूसरों से अधिक होती है।

आत्महत्या के लिये उकसाने वाला तीसरा फैक्टर है हिस्टोरिकल। हिंसा या आत्महत्या की फैमिली हिस्ट्री, जीवन में ट्रॉमा या बचपन में दुर्व्यवहार का अनुभव, आत्महत्या का असफल प्रयास, दंगों या प्राकृतिक आपदाओं से कम्युनिटी या कल्चर विनाश का हिस्टोरिक आघात भी आत्मघाती प्रवृत्ति ट्रिगर करता है।

मनोचिकित्सकों के मुताबिक जब आत्मघाती विचार उठते हैं तो व्यक्ति असहनीय भावनात्मक दर्द महसूस करने के साथ खुद को फंसा हुआ और निराश महसूस करता है। मूड में जल्दी-जल्दी बदलाव आने से एक पल बहुत खुश तो दूसरे पल उदास, अपराधबोध, शर्मिंदगी और बदला लेने की बातें करना व एंग्जॉयटी के उच्चतम स्तर और साइको मोटर एजीटेशन जैसी स्थितियां अनुभव करने से अजीबोगरीब हरकतें करता है। पर्सनाल्टी, डेली रूटीन और स्लीप पैटर्न में डिस्टर्बेंस,  भोजन, दोस्तों से मेलजोल या सेक्स इत्यादि से अरूचि, शराब या ड्रग्स में बढ़ोत्तरी के साथ रिस्की व्यवहार जैसे लापरवाही से गाड़ी चलाना, जरा सी बात पर झगड़ना और किसी की परवाह न करना जैसे लक्षण नजर आते हैं।

डिप्रेशन, पैनिक अटैक और ध्यान केन्द्रित न कर पाने से खुद को सबसे अलग कर लेना, खुद को दूसरों पर बोझ समझना, गम्भीर पश्चाताप या आत्म-आलोचना के साथ मरने की बातें करना, मौत को सभी समस्याओं का समाधान समझना, अफसोस करना कि मैं क्यों जीवित हूं या पैदा ही क्यों हुआ, मिलने जुलने वालों को अलविदा कहना जैसेकि आखिरी बार मिल रहे हों जैसा व्यवहार नजर आता है।

यदि किसी में ऐसे लक्षण दिखाई दें तो उसे अकेला न छोड़ें। बातचीत से जानने का प्रयास करें कि वह ऐसा क्यों कर रहा है। यदि वह बातचीत करे तो उसकी बातें बीच में काटे बिना ध्यान से सुनें,  अपना कोई फैसला न सुनायें और न ही उसकी आलोचना करें। इसमें जितना अधिक समय लगेगा उसके सुसाइडल विचार कमजोर पड़ेंगे और हो सकता है वह आत्महत्या के बारे में सोचना छोड़ दें।

आत्महत्या की प्रवृत्ति हावी न हो और कोई अप्रिय घटना न घटे इसके लिये आत्महत्या के तरीकों तक पहुंच खत्म करें यानी आग्नेयास्त्र, चाकू, खतरनाक दवाओं या उन वस्तुओं को खुद से दूर रखें जो आत्महत्या में मददगार हों। स्ट्रेस और डिप्रेशन से निजात पायें, क्योंकि ये सुसाइडल टेन्डेंसी को सबसे ज्यादा ट्रिगर करते हैं, इसके लिये लोगों से मिलना-जुलना बढ़ायें विशेष रूप से जब व्यक्ति इन्फीरिरयोरिटी कॉम्प्लेक्स से ग्रस्त हो तो सामाजिक मेलजोल इस भावना को कम करता है।

सुस्त दिनचर्या छोड़ें और व्यायाम करें, इससे मूड ठीक रहता है, यदि व्यायाम की आदत नहीं तो नियमित वॉक करें इससे डिप्रेशन दूर होने के साथ सोच सकारात्मक रहेगी। अपनी नींद पूरी करें और कम से कम सात घंटे जरूर सोयें। दिनचर्या सेट करें व खाने, टहलने, काम करने तथा सोने का समय निश्चित करें। विशेष रूप से खाने और सोने का पैटर्न सेट करने से सोच में पॉजटीविटी आती है। शराब और मादक द्रव्यों का सेवन बंद करें।

मनोचिकित्सक से मिलें और उसके द्वारा बनाये ट्रीटमेंट प्लान को पूरी तरह फॉलो करें। चाहे वह कॉग्नेटिव बिहैवियरल थेरेपी हो या मेडीकेशन। दवाओं का सेवन डाक्टर के निर्देशानुसार ही करें क्योंकि शुरू में ये दवायें आत्मघाती विचारों को बढ़ाती हैं। जब तक डॉक्टर न कहे, तब तक इन्हें बंद भी न करें और न ही खुराक में बदलाव। अचानक दवाएँ बंद करने से विड्रॉल सिम्पटम आते हैं जिससे आत्महत्या की भावनाएँ प्रबल हो सकती हैं।

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