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भाजपा और कांग्रेस: जो दल बगावत रोकेगा वही जीतेगा…

भोपाल। मध्यप्रदेश समेत चार राज्यों में विधानसभा चुनाव इस साल के आखिर दिसंबर तक होना है। सियासी हलको से लेकर जनता के बीच यह सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर अगली सरकार किसकी बनेगी..? 2018 की भांति मप्र में मुकाबला कांटे का दिख रहा है। इस बार आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ऊवेसी की पार्टी ऑल इंडिया मजसिल ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन की एंट्री चुनाव को और भी दिलचस्प बनाएगी। ये दोनों दल भाजपा और कांग्रेस के बागियों के लिए लॉन्चिग पेड की तरह काम करेंगे। इससे दोनों ही दलों की मुश्किलें बागियों को रोकने में पहले से ज्यादा बढ़ जाएंगी। जिस दल में बगावत रोकने की टीम जितनी मजबूत होगी उसके चुनाव जीतने की संभावना उतना ही बेहतर होती जाएगी। पिछले चुनाव में भाजपा को इसका सबसे ज्यादा खामियाजा उठाना पड़ा था और सरकार बनाने के बाद कांग्रेस को।

सबको पता है सिंधिया समर्थकों विद्रोह के बाद शिवराज के नेतृत्व में भाजपा सत्तारूढ़ हो गई थी। सबसे खास बात यह है कि विधानसभा चुनाव से यह भी तय होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किस पार्टी को बहुमत मिलने वाला है। इसका सबसे सटीक उत्तर है प्रत्याशी चयन ठीक से हो जाए, नाराज कार्यकर्ता काम लगाने के बजाए ईमानदारी से काम पर लग जाए। कांग्रेस में कार्यकर्ताओं को जोड़ने और प्रत्याशी चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का काम दिग्विजय सिंह को घोषित और अघोषित रूप से सौंप दिया है। पिछले चुनाव में भी कार्यकर्ताओं को मनाने और सक्रिय करने के साथ उम्मीदवार चुनने में दिग्विजय सिंह की भूमिका निर्णायक रही थी। इसके लिए पंगत में संगत का उनका अभियान खूब कामयाब रहा था।

इस बार भी श्री सिंह फिर मैदान में है। कांग्रेस के लिहाज से अच्छी बात यह भी है कि इस बार पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी स्वभाव में विपरीत खूब दौरे कर रहे हैं। इसके पीछे एक खास वजह यह भी है कि 15 महीने मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश में सत्ता का जो चस्का कमलनाथ को लगा था उसे वे किसी भी हालत में फिर से हासिल करना चाहते हैं। सीएम के पद हटने और सरकार गिरने की घटना को वे अपमान के रूप में जहर बुझे तीर की तरह चुभी महसूस कर रहे हैं। नाथ की दशा सियासत के उस घायल खिलाड़ी की भांति है जो पांच सीएम बने रहने का सपना लेकर शपथ लेते हैं और 15 महीने में संवादहीनता भरे व्यवहार के कारण विदा हो जाते हैं। जाहिर है यह उन्हें अपने राजनीतिक जीवन में सबसे अधिक दुःखद लगता होगा।
कांग्रेस में कार्यकर्ताओं की सक्रियता प्रत्याशी चयन नेताओं की खोज करना साथ ही बगावत को लेकर डैमेज कंट्रोल करने का काम दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के ही खाते में रहेगा। कांग्रेस के दोनों वयोवृद्ध नेता संभवत सक्रिय राजनीति के अंतिम पड़ाव पर हैं। इसलिए अंत भला तो सब भला की तर्ज पर अपना सब कुछ दांव पर लगाना चाहते हैं।

भाजपा में डेमेज कंट्रोल कमजोर…
भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसके कार्यकर्ताओं की सक्रियता और बगावत के मुद्दे पर सबसे ज्यादा मजबूत डैमेज कंट्रोल करने की टीम रही है लेकिन पिछले 5 सालों में भाजपा का यह सबसे मजबूत पक्ष सबसे ज्यादा कमजोर नजर आ रहा है नगर निगम चुनाव में प्रत्याशी चयन और पार्टी की पराजय सबको चिंतित कर दिया है। इस मामले में पार्टी की चिंता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। दरअसल अभी तक पार्टी ने इस मुद्दे पर जितने भी उपाय किए हैं देना काफी नजर आ रहे हैं जय बात खुफिया तंत्र से लेकर पार्टी के सर्वे और मीडिया रिपोर्ट में भी बहुत प्रमुखता के साथ निकल कर आई है। बार-बार कहां जा रहा है कि इस बार एंटी इनकंबेंसी को लेकर 230 प्रत्याशियों में से लगभग 60 से 80 वर्तमान विधायकों के टिकट काटे जाएंगे पार्टी की चिंता यह भी है कि टिकट कटने के बाद जो बगावत होगी उससे कौन और कैसे रुकेगा क्योंकि पिछले चुनाव में बागियों को मनाने में पार्टी का मैनेजमेंट बुरी तरह असफल हुआ था।

उसी के चलते हैं भाजपा सत्ता के बाहर हो गई थी। प्रदेश की 16 नगर निगम के चुनाव में सात पराजय के जो प्रमुख कारण थे – उनमें प्रत्याशी चयन में गड़बड़ी और बगावत को काबू में नहीं कर पाना सबसे प्रमुख था। जैसे कांग्रेस में अकेले दिग्विजयसिंह इस काम को करते हैं वैसा भाजपा के अब तक राज्य और दिल्ली से भेजे गए नेताओं में कोई भी नही दिख रहा है। जैसे जैसे चुनाव की बेला निकट आएगी भाजपा के समक्ष डैमेज कंट्रोल की चिंता और विकट होती जाएगी। अभी तक तो किए गए उपाय और नेतागण अक्षम और बेअसर ही हो रहे हैं। इसमें जितनी देरी होगी भाजपा को हर घण्टे नुकसान होता जाएगा। अभी तो नेतृत्व कर्नाटक चुनाव में उलझा है उम्मीद की जा रही है कि कर्नाटक चुनाव के बाद केंद्रीय नेतृत्व ऑपरेशन एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान शुरू करेगा।

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