दरअसल प्रदेश में ना समय पर राज्यसभा के चुनाव हो पाए और ना ही विधानसभा के उपचुनाव ना ही मंत्रिमंडल का विस्तार समय पर हो पाया और ना ही भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी का गठन। यहां तक कि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस अब तक अपने नेता प्रतिपक्ष की घोषणा नहीं कर पा रही है। इसी तरह प्रत्याशियों को लेकर भी कांग्रेस में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
यही नहीं राज्यसभा चुनाव के दौरान दोनों ही दलों में क्रास वोटिंग का भी खतरा बना हुआ है। सत्ताधारी दल भाजपा ने इस खतरे को टालने के लिए मंत्रिमंडल का विस्तार राज्यसभा चुनाव चुनावों के बाद के लिए टाला हुआ है लेकिन यह कब तक टलेगा कहा नहीं जा सकता क्योंकि राज्यपाल लालजी टंडन अस्वस्थ है और लखनऊ के अस्पताल में एडमिट है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अभी कोरोना पॉजिटिव होने के बाद दिल्ली के अस्पताल में एडमिट हैं। वे 19 जून के राज्यसभा के चुनाव के दिन भोपाल में आएंगे। मतदान स्थल विधानसभा पहुंचेंगे, इसको लेकर भी संशय है। विधायक कुणाल चौधरी भी कोरोना पॉजिटिव होने के बाद पीपीई किट पहनकर मतदान करने आ सकेंगे। विधानसभा सचिवालय सिंधिया और कुणाल चौधरी के लिए विशेष व्यवस्थाएं कर रहा है। सिंधिया का क्वॉरेंटाइन समय 19 जून तक पूरा नहीं हो पाएगा इसलिए वे विधानसभा आने से बच सकते हैं क्योंकि कुणाल चौधरी वोटर हैं इसलिए वे पीपीई कट पहनकर सबसे अंत में मतदान कर सकेंगे। विधानसभा के प्रमुख सचिव ए. पी. सिंह का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग की गाइड लाइन के अनुसार मतदान में सदस्यों को शामिल कराया जाएगा। गेट पर थर्मल स्क्रीनिंग होगी शरीर का तापमान बढ़ा हुआ मिले या जिन्हें सर्दी, खांसी, बुखार के लक्षण पाए जाएंगे उन्हें अलग बिठाया जाएगा और इन सभी को अंत में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए मतदान करने की अनुमति दी जाएगी।
कुल मिलाकर प्रदेश की राजनीति जिस अनिश्चिता के भंवर में फंसी है उससे निकलने का नाम ही नहीं ले रही बल्कि दिन प्रतिदिन कहीं ना कहीं से कोई अनिश्चितता का वातावरण बनाने वाली खबर आ जाती है। ऐसे में यह भी एक खबर चल रही है कि कांग्रेस विधायक कुणाल चौधरी के संपर्क में जो 22 विधायक पिछले दिनों रहे हैं उन्हें भी क्वारंटाइन में रखा जाए। भाजपा की इस मांग को कांग्रेस में हांलाकि साजिश बताया है लेकिन संशय की स्थिति तो निर्मित हो ही रही है। एक तरफ जहां कोरोना महामारी के कारण लोगों का आपस में मिलना जुलना सीमित हो गया है। बैठकें भी पहले जैसी नहीं हो पा रही है।
ऐसे में कोई भी ठोस निर्णय ना होने के कारण प्रदेश की राजनीति अनिश्चितता के भंवर में है और इसके सितंबर माह तक चलने के आसार हैं। हालांकि 19 जून को राज्यसभा के चुनाव हो जाएंगे और सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो 24 जून तक मंत्रिमंडल का विस्तार भी हो जाएगा लेकिन 24 सीटों के विधानसभा चुनाव को लेकर प्रत्याशियों के चयन और जीत हार को लेकर तो संशय रहेगा ही। दोनों ही दलों में बगावत का अंदेशा भी बना रहेगा और जिस तरह से बहुजन समाज पार्टी ने इन चुनावों में बागियों पर दांव लगाने की योजना बनाई है उससे चुनाव परिणाम आने तक दुविधा की दोधारी तलवार राजनीतिक रण मे लहराती रहेगी।
अनिश्चितता के भंवर में फंसी प्रदेश की राजनीति
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