अच्छे खिलाड़ियों को खेलदूत कहा और माना जाता है। क्योंकि उनके खेलने से ही खेल लोकप्रिय होता है। लेकिन आज ज्यादातर लोकप्रिय खिलाड़ी खुद के लिए धन के दूत हो कर रह गए हैं। यह सही है कि खिलाड़ियों का खेल जीवन कुछ सालों का ही होता है इसलिए उनको इन्हीं सालों में जो कुछ कमाना हो कमा लेना चाहिए। मगर कमाने की नीति जितना ही जरूरी होता है कमाने की नैतिकता।
दुनिया में चाहे जो चल रहा हो देश में तो क्रिकेट का उत्सव चल रहा है। रंक से राजा बनने-बनाने का कुंभ चल रहा है। “ड्रीम बिग, ड्रीम इलेवन” का खेल चल रहा है। आप सपना बड़ा ही देखो, और अपने सपने की ग्यारह बनाने का खेल खेलो। यानि खिलाड़ी जो मैदान पर खेल खेलते हैं वैसा ही खेल आप मोबाइल पर खेलो। जब मैदान में आइपीएल का मैच चल रहा हो तब आप मोबाइल पर सपने के सट्टा खेल से राजा बनने की कोशिश में लगो। टीवी पर विज्ञापनों में खिलाड़ी खुद इस सट्टे के मोबाइल खेल को खेलने के लिए प्रोत्साहित करते देखे जा सकते हैं। मेहनती खिलाड़ियों को विज्ञापन के पैसे मिलते हैं और हम क्रिकेट प्रेमी मोबाइल पर खेलना सीखते हैं। हींग लगे न फिटकरी खेल का सीखना हो जाए। काश क्रिकेट खेल का सीखना इतना ही आसान होता।
जैसा भारतीय क्रिकेट टीम के प्रतिभावान युवा खिलाड़ी रिषब पंत खुद बताते हैं कि खेल सीखने के बाद वे नोएडा के एक गुरूद्वारे में रात बीताते थे और अगले दिन फिर खेल सीखने निकल जाते थे। मुश्किल परिस्थिति में कड़ी मेहनत और सालों की लगन के बाद ही पंत को देश के लिए खेलने का सपना साकार करने का मौका मिला। लेकिन अब वे जताना चाहते हैं कि उनके क्रिकेट खेल के प्रेमी मोबाइल पर ही मेहनत करें। तभी वे खूब धन कमा सकते हैं। देश की आर्थिकी का भी कोरोना काल के कारण यही हाल हो गया है। आज आइपीएल भी इन्हीं मोबाइल कंपनियों के सट्टेबाजी खेलों के विज्ञापन से चल रही है। और आइपीएल के धन से ही देश और दुनिया की क्रिकेट भी चलाई जा रही है। इन दो सालों में पता ही नहीं चला कब सट्टे के धन से सपना साकार करने वाली कंपनियों ने अपना धन मेहनत के खेल में लगा दिया। और गंगा नहा आयी हैं।
अच्छे खिलाड़ियों को खेलदूत कहा और माना जाता है। क्योंकि उनके खेलने से ही खेल लोकप्रिय होता है। लेकिन आज ज्यादातर लोकप्रिय खिलाड़ी खुद के लिए धन के दूत हो कर रह गए हैं। यह सही है कि खिलाड़ियों का खेल जीवन कुछ सालों का ही होता है इसलिए उनको इन्हीं सालों में जो कुछ कमाना हो कमा लेना चाहिए। मगर कमाने की नीति जितना ही जरूरी होता है कमाने की नैतिकता। क्या आज के खिलाड़ियों में इसकी समझ बची है? या आज माहौल ही ऐसा बना दिया गया है कि अनैतिक कुछ नहीं रह गया है।
आज के खेल प्रेमी बच्चे इन रातों रात धनी बनाए जा रहे खिलाड़ियों से क्या सीखेंगे? मैदान पर क्रिकेट खेलना या मोबाइल पर जुआ खेलना? ऐसे ही विज्ञापनों में क्रिकेट खिलाड़ी युवा लोगों से कहते हुए देखे जा सकते हैं कि “हम यह कर लेंगे, आप ड्रीम इलेवन बनाओ”। सपना तो सोने पर ही आता है मगर जीवन तो जाग कर ही जीया जाता है। युवा लोग जागेंगे और मेहनत करेंगे तभी जीवन का सपना सच्चा करने में लगा जा सकता है।
पिछले साल फुटबाल के यूरोपियन कप की शुरुआती मीडिया कांफ्रेन्स् के दौरान महान खिलाड़ी क्रिश्चियानो रोनाल्डो ने अपने सामने विज्ञापन करने के लिए रखी गयी पेयजल की बोतल को हटा दिया था। रोनाल्डो के इस कृत्य से मीडिया और प्रायजकों में खलबली मच गयी थी। लेकिन रोनाल्डो को अपने मन के अलावा समाज के स्वास्थ का भी ध्यान था। जिस पेय को वे अपने स्वास्थ के लिए सही नहीं मानते हैं, समाज के स्वास्थ के लिए भी उसका प्रचार नहीं कर सकते थे। यही समाज के सच्चे खेलदूत का उत्तरदायित्व होता है। क्योंकि खेल ने ही उनको प्रसिद्धी, धन और सम्मान दिया। रोनाल्डो के आत्मसम्मान ने ही उनको समाज के सम्मान के लिए प्रेरित किया। और अकेले ही सही मगर अपने मन की बात सभी के सामने रखने की हिम्मत दी। आयोजक और प्रायोजक दोनों को समाज के प्रति सजक होने का रास्ता दिखाया था। दोनों को समझाया कि खेल, खिलाड़ी और खेलप्रेमियों के कारण ही उनकी भी दुकान चलती है।
भारतीय क्रिकेट के महानायकों को अभी भी अपना अस्तित्व समझना होगा। रिषब पंत और अन्य प्रतिभावान युवा क्रिकेट खिलाड़ियों को खुद के लिए खेलने के साथ-साथ समाज के लिए भी खेलना सीखना होगा। उनके खेल पर प्रायोजक भी अपना धन समाज के दम पर ही लगाते हैं। इसलिए कृपया मेहनत के ही सपने साकार होने दें।
मैदान की मेहनत और मोबाइल का सपना
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