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राज्यसभा चुनाव में उलटफेर की आशंका ने मंत्रिमंडल विस्तार रोका..!.

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राज्यसभा चुनाव में उलटफेर की आशंका ने मंत्रिमंडल विस्तार रोका..!.
शिवराज और महाराज जो पिछले विधानसभा चुनाव में आमने-सामने थे । कमलनाथ सरकार के तख्तापलट के बाद अब मिनी विधानसभा चुनाव में यह जोड़ी कदमताल करती हुई नजर आएगी। जो एक दूसरे को मजबूती देने का इरादा रखते और क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर बदलते समीकरणों को लेकर सजग और सतर्क भी है .. सत्ता में लौटने के साथ भाजपा निश्चित पर मजबूर साबित हुई लेकिन चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई.. सिंधिया फैक्टर के चलते शिवराज एक बार फिर मुख्यमंत्री बने लेकिन उन्हें फ्री हैंड दिए जाने को लेकर अलग-अलग चर्चाएं जोरों पर है.. शिवराज को सरकार चलाने के साथ उपचुनाव में भाजपा की जीत की गारंटी के लिए अनुभवी क्षमतावान टीम की दरकार है.. पिछली सरकार के मुकाबले विधायक कम तो जिन्हें भरोसे में ले कर संतुष्ट करना जरूरी उनकी संख्या बढ़ चुकी। बात सिर्फ ज्योतिरादित्य और उनके समर्थक तक सीमित नहीं बल्कि केंद्र में दखल रखने वाले नेता ,प्रदेश के क्षत्रपों, पूर्व मंत्रियों और दूसरों को भी संतुष्ट करने की चुनौती जिनकी सीनियरिटी को नजरअंदाज किया गया या फिर जो नई पीढ़ी की नुमाइंदगी करते.. कुल मिलाकर नई सरकार के केंद्र बिंदु बने दो राजदारों के सामने या तो कोई बड़ी समस्या आ रही .. या फिर कोई और वजह है ..शायद यही कारण है कि शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर पा रहे.. तो दूसरी ओर महाराज जनता या मीडिया के सामने आकर अपना मौन तोड़ने को तैयार नहीं हो पा रहे.. प्रहलाद पटेल फग्गन सिंह कुलस्ते जैसी केंद्रीय मंत्री प्रदेश भाजपा कार्यालय में अपनी आमद जता चुके ..तो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर अपने संसदीय क्षेत्र मुरैना पहुंच चुके हैं ..जो कोरोना के योद्धाओं का उत्साह बढ़ा रहे हैं.. तो केंद्रीय कृषि मंत्री के तौर पर देश के किसानों को मोदी सरकार द्वारा लिए गए फैसलों से अवगत भी करा रहे हैं। मुरैना ग्वालियर में होने वाले उपचुनाव पर संगठन क्षमता के धनी तोमर अपनी चिर परिचित शैली में नजर भी लगा चुके होंगे.. सक्रिय ज्योतिरादित्य भी लेकिन पर्दे के पीछे तो मुख्यमंत्री रहते शिवराज पार्टी का चेहरा बन चुके हैं.. प्रधानमंत्री और दूसरे मुख्यमंत्रियों की तरह शिवराज भी वीडियो कांफ्रेंस और बैठकों तक सीमित है.. बावजूद इसके सियासी मोर्चे पर अपनी सरकार की उपलब्धियों और बहुत ज्यादा जरूरत पड़ने पर कमलनाथ सरकार के फैसलों पर सवाल खड़ा करते.. महाराज और शिवराज दोनों ने अभी तक ना तो एक मंच पर आकर जनता को संबोधित किया.. और ना ही उप चुनाव को ध्यान में रखते हुए एक साथ सियासी मोर्चे पर कमलनाथ कांग्रेस को निशाने पर लिया ..अलबत्ता संगठन स्तर पर दोनों रणनीति के तहत कई राज अपने दिल में दबा कर जरूर आगे बढ़ रहे हैं..सवाल कोरोना लॉक डॉउन के चलते यह मजबूरी भाजपा और उसके नेतृत्व की कमजोरी तो नहीं साबित हो रही। मीडिया के मार्फत प्रेस कॉन्फ्रेंस और इंटरव्यू के जरिए कमलनाथ अपने विरोधियों पर हमला करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे ..तो दूसरी ओर महाराज ने खुद को संगठन तक सीमित कर रखा है ..अभी तक ऐसे किसी भी माध्यम तकनीक के जरिए कोई बड़ा संदेश देने में दिलचस्पी भी नहीं ली.. तो क्या इसकी वजह सिर्फ मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार है या फिर ज्योतिरादित्य को और मजबूत साबित करने के लिए भाजपा राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरे होने का इंतजार कर रही है.. जिसके साथ ही मोदी सरकार में बतौर मंत्री सिंधिया शपथ लें तभी मजबूत ज्योतिरादित्य मध्य प्रदेश के दौरे पर भाजपा में अपनी स्वीकार्यता साबित कर आगे बढ़े.. सवाल क्या लॉक डाउन चौथे चरण के साथ और रियायत राज्यसभा चुनाव का मार्ग प्रशस्त करेंगे। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के सदन का सदस्य बनने की बाधा खत्म होने के साथ राज्यसभा की संभावनाओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. मध्य प्रदेश से राज्यसभा के चुनाव का मतलब सिर्फ महाराजा नहीं बल्कि कांग्रेस की ओर से राजा का भी राज्यसभा सांसद बनना सुनिश्चित माना जा रहा है.. कांग्रेस की मध्यप्रदेश प्रदेश में सरकार रहते यदि मुख्यमंत्री कमलनाथ से तो दिग्विजय सिंह राज्यसभा सांसद बने हुए थे.. जबकि ज्योतिरादित्य के साथ दिग्गी राजा भी लोकसभा का चुनाव हार चुके थे.. तो सवाल क्या भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व ज्योतिरादित्य की लोकप्रियता को भुलाने के लिए उन्हें और मजबूत देखना चाहता है.. सवाल शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार इसलिए टाला जा रहा कि राज्यसभा चुनाव में नाराज भाजपा विधायक कोई ऊंच-नीच ना कर बैठे .. या फिर भाजपा खुद कांग्रेस के कुछ और विधायकों को राज्यसभा चुनाव में पाला बदलने की रणनीति पर काम कर रही है। क्या राज्यसभा चुनाव में जब 2 सीटों का गणित भाजपा के पक्ष में है तब भी क्या कांग्रेस या फिर भाजपा खुद विधायकों को मोहरा बनाकर कोई बड़ा उलटफेर कर सकती है.. कांग्रेस खासतौर से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी यह कह चुके हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार होने दीजिए उसके बाद पता चलेगा कौन विधायक कहां जाता है.. उन्होंने ऐसे विधायकों के संपर्क का भी दावा किया जो फिलहाल भाजपा में है.. उपचुनाव दूर ऐसे में मंत्रिमंडल विस्तार लगातार टलता जाना तो फिर भी रुके हुए फैसलों की वजह क्या है.. क्या भाजपा के अंदर भी इन नए समीकरणों ने कुछ नेता विशेष के कान खड़े कर दिए हैं.. क्या कोई शिवराज या कोई महाराज को ज्यादा मजबूत नहीं यानी कमजोर देखना चाहता है.. महाराज की कृपा से इस बार भाजपा सत्ता में लौटी तो मोदी के भरोसे शिवराज ने मुख्यमंत्री की शपथ ली। इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता.. क्या पार्टी के अंदर एक खेमा शिवराज और महाराज के बीच तनातनी तलाश रहा है जो फिलहाल संभव नहीं.. महाराजा शिवराज दोनों के लिए विधानसभा के उपचुनाव पार्टी से कुछ ज्यादा मायने रखते हैं ..जिन सीटों और क्षेत्रों पर विधानसभा के उपचुनाव होना वहां सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक ही चुनाव लड़ेंगे ..जिनकी जीत की गारंटी महाराज और शिवराज संयुक्त तौर पर ले चुके.. इन उपचुनाव में जीत का मतलब भाजपा की सरकार में स्थिरता और अपने दम पर पर्याप्त बहुमत हासिल करना होगा.. चुनाव में जीत ना सिर्फ शिवराज की नेतृत्व क्षमता पर जनता की मुहर होगी। बल्कि जिंदगी का सबसे बड़ा जोखिम मोल लेने वाले महाराज की लोकप्रियता भी साबित होगी.. सिंधिया के भाजपा में आने से ग्वालियर चंबल के सबसे बड़े भाजपा नेता नरेंद्र सिंह तोमर के समर्थक भले ही असमंजस में नजर आए ..लेकिन मोदी शाह नड्डा के फैसले को सहर्ष स्वीकार करते हुए खुद नरेंद्र इसे सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बलिदान से बनी सरकार बता चुके हैं.. बावजूद इसके शिवराज सरकार के 2 माह पूरा होने के बाद भी मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पाना जरूर कुछ सवाल खड़ा करता है.. लॉक डाउन में यदि मुख्यमंत्री शपथ ले सकते और उसके बाद पांच मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है यह क्रम आगे आखिर क्यों नहीं बढ़ाया जा रहा.. अपनी जगह शिवराज और महाराज दोनों मजबूत और लोकप्रिय फिर भी रुके हुए फैसलों को इनकी कमजोरी से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है.. कहीं भाजपा की यह ध्यान बांटने की कोशिश तो नहीं जो अपनी पटकथा के अगले चरण में कोई नया धमाका करने की रणनीति पर काम कर रही है पर उसे इंतजार है उपचुनाव के परवान चढ़ने का। महाराज पहले ही अपनी ताकत दिखाकर कमलनाथ और कांग्रेस को सड़क पर ला चुके हैं.. भाजपा ने स्वागत अभिनंदन में उनके लिए पलक पावडे बिछाए थे ..तो विधायक नहीं होने के बावजूद उन्हें शिवराज मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाया जो कॉन्ग्रेस विधायक और मंत्री के पद से इस्तीफा देकर आए.. यह सिलसिला अगले विस्तार के साथ आगे बढ़ेगा इसमें कोई शक और शुबा नहीं रह जाती.. ज्योतिरादित्य भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश संगठन और मुख्यमंत्री शिवराज के लगातार संपर्क में बने हुए.. सिंधिया समर्थक मंत्रियों की संख्या उनके नाम और विभाग को लेकर भी शायद ही कोई विवाद या पेंच फंसा हो... तो वह रुके हुए फैसले क्या.. जो राज -पाट यश -कीर्ति यानी चल रही सरकार छोड़कर आए उनके समर्थक मंत्री हो या फिर विधायक विपक्ष के निशाने पर आकर विवादित होते जा रहे। विवाद अभी सिर्फ दो को मंत्री की शपथ दिलाई गई बाकी पूर्व मंत्रियों को इंतजार तो राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव जैसे दूसरे भी दावेदार सामने आ रहे.. सिंधिया समर्थक मंत्री पूर्व मंत्री और विधायक अपने-अपने क्षेत्र में अपने-अपने समर्थकों को भाजपा की सदस्यता दिलाने में जुट गए.. जब ज्योतिरादित्य मध्य प्रदेश पहुंचेंगे तब बड़े स्तर पर ऐसा ही माहौल बनने से इनकार नहीं किया जा सकता.. बावजूद इसके सम्मान की लड़ाई में कुछ महत्वपूर्ण रुके हुए फैसले कहीं ना कहीं सिंधिया और उनके समर्थकों के धैर्य और संयम की परीक्षा ले रहे.. सवाल यहीं पर खड़ा होता आखिर इसकी वजह क्या है.. यदि ज्योतिरादित्य खेमे में कोई विवाद नहीं है तो फिर क्या भाजपा के अंदर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है.. इसका मूल कारण मंत्रिमंडल विस्तार की दावेदारी को ही माना जाएगा.. इन परिस्थितियों के लिए सिर्फ कोरोना का कहर और लॉक डाउन ही जिम्मेदार है या फिर इसकी आड़ में भाजपा अपनी कमजोरियों को छुपा रही। जो वह सामने नहीं आने देना चाहती.. उपचुनाव वाले क्षेत्रों के पिछले चुनाव में पराजित नेता और उनके समर्थकों की भोपाल में प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री संगठन महामंत्री से मेल मुलाकातें मायने रखती.. जो मुलाकात के बाद मीडिया से पार्टी लाइन को आगे बढ़ाने का दावा तो करते हैं.. लेकिन कहीं ना कहीं उनकी मजबूरी कसक के तौर पर सामने देखने को भी मिलती है.. दूसरी ओर भाजपा में मंत्री पद के दावेदारों में शुमार किए जाने वाले नेताओं का भी भोपाल पहुंचने का सिलसिला बदस्तूर जारी है.. क्या यह नेता भाजपा की स्क्रिप्ट और फार्मूले में फिट नहीं हो रहे या फिर इन्हें मंत्री पद के लिए पक्का मानकर उन्हें भरोसे में लिया जा रहा है ..वह भी तब जब कभी सुरखी सागर से पारुल साहू तो ग्वालियर से पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया के बयान इशारों इशारों में बहुत कुछ संदेश दे जाते.. सवाल क्या चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के साथ ही शिवराज के सामने सबसे बड़ी चुनौती मंत्रिमंडल का विस्तार साबित होने वाला है.. शिवराज सरकार प्रशासनिक स्तर पर भले ही कोरोना पर फोकस करके फैसले तेजी से लेने लगी है ..लेकिन सरकार और संगठन के अंदर उसकी अपनी पार्टी के नेताओं की भूमिका को लेकर खामोशी गाहे-बगाहे कुछ सवाल जरूर खड़े कर देती है।
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