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मसला अंडर-एक्टिव थायराइड ग्लैंड का

हाइपोथायरायडिज्म का रिस्क कम करने के लिये सबसे जरूरी है आयोडीन युक्त बैलेंस डाइट। कारण आयोडीन ही वह तत्व है जो थायरॉइड हारमोन्स (T3, T4) बनाने में मदद करता है। आयोडीन की कमी पूरी करने के लिये ऑयोडाइज्ड नमक, दालें, प्रोटीन, फल और सब्जियां लें लेकिन सोया से बने फूड आइटम (सोया मिल्क, टोफू, सोयाबीन व सोया सॉस ) कम खायें क्योंकि ये थायरॉइड हारमोन्स के एब्जॉर्ब्शन में बाधक हैं।

वैसे तो थायराइड, शरीर में मौजूद हारमोन्स बनाने वाली एक ग्लैंड है, लेकिन इस शब्द का इस्तेमाल ऐसे किया जाता है जैसे ये किसी बीमारी का नाम है। वैसे थायरॉइड ग्लैंड के ठीक से काम न कर पाने से हाइपोथायरायडिज्म, हाइपरथायरायडिज्म, हाशीमोटो, ग्रेव्स, गोटियर और थायराइड नोड्यूल्स जैसी बीमारियां हो जाती हैं। इनमें सबसे कॉमन है- हाइपोथायरायडिज्म। इसमें थायराइड ग्लैंड हारमोन बनाना कम कर देती है जिससे मरीज की शारीरिक और मानसिक स्थिति बिगड़ने लगती है।

थायरॉइड ग्लैंड से बनने वाले हारमोन्स (T3, T4) शरीर में इनर्जी का इस्तेमाल रेगुलेट करते हैं, जिससे सभी अंगों को सुचारू रूप से काम करने के लिये ऊर्जा मिलती रहती है। जब थायरॉइड ग्लैंड जरूरत के मुताबिक हारमोन्स नहीं बना पाती तो शरीर के नेचुरल फंक्शन धीमे होने से हृदयगति, मेटाबॉलिज्म और शरीर का तापमान गड़बड़ाता है जिसका नकारात्मक असर पड़ता है शरीर के इंडोक्राइन, सरकुलेटरी, कार्डियोवैस्कुलर, नर्वस, रेस्पिरेटरी, डाइजेस्टिव, रिप्रोडक्टिव और किडनी फंक्शन्स पर।

हाइपोथायरायडिज्म का मेन कारण है इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी यानी ऑटोइम्यून रिस्पांस। इससे  शरीर अपने हेल्दी सेल्स को बाहरी समझकर नष्ट करने लगता है और रिजल्ट सामने आता है ग्लैंड के हारमोन बनाने वाले सेल्स में सूजन के कारण हारमोन कम बनने के रूप में।

जब थायराइड ग्लैंड जरूरत से ज्यादा हारमोन्स बनाती है तो व्यक्ति हाइपरथॉयराइडिज्म का शिकार हो जाता है। इसके कारण वजन गिरने के साथ स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक समस्यायें हो जाती हैं। ऐसे में जरूरत होती है तुरन्त इलाज की। कई बार इस इलाज के कारण भी लोग हाइपोथायरायडिज्म की चपेट में आ जाते हैं। थॉयराइड ग्लैंड के सर्जिकल रिमूवल, कीमोथेरेपी और कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट से भी लोग हाइपोथायरायडिज्म से ग्रस्त हो जाते हैं।

शरीर में थॉयराइड हारमोन कम बनने से थकान, डिप्रेशन, कब्ज, धीमी हृदय गति, ठंड लगना, रूखी त्वचा, वजन बढ़ना, अनियमित पीरियड्स, इन्फरटीलिटी, आवाज बैठना, मांसपेशियों में कमजोरी, कम पसीना आना, कोलोस्ट्रॉल में बढ़ोत्तरी, जोड़ों में दर्द व अकड़न, बाल झड़ना, याददाश्त में कमजोरी और चेहरे पर पफीनेस जैसे लक्षण उभरते हैं। प्रेगनेन्सी के दौरान एनीमिया, गर्भपात, प्रिक्लेपसिया, स्टिलबर्थ, अंडर वेट बेबी और ऑटिज्म जैसी समस्यायों का रिस्क बढ़ता है। शरीर के नेचुरल फंक्शन स्लो होने से बहुत से लोगों को एंग्जॉयटी, डिप्रेशन और मूड स्विंग जैसी समस्यायें भी हो जाती हैं।

हाइपोथायरायडिज्म से अधिकतर लोगों का वजन बढ़ जाता है, ऐसे में लोग वजन घटाने के लिये दवाओं का सहारा लेते हैं जो ठीक नहीं है। अगर दवा लेनी है तो हाइपोथायरायडिज्म की लें। जैसे ही थायरॉइड हारमोन (T3, T4) लेवल सुधरेगा वजन कम होने लगेगा। इसलिये कभी भी दवाओं से वजन कम न करें। वजन कम करने के लिये हमेशा हेल्दी डाइट और व्यायाम का सहारा लें।

हाइपोथायरायडिज्म का रिस्क कम करने के लिये सबसे जरूरी है आयोडीन युक्त बैलेंस डाइट। कारण आयोडीन ही वह तत्व है जो थायरॉइड हारमोन्स (T3, T4) बनाने में मदद करता है। आयोडीन की कमी पूरी करने के लिये ऑयोडाइज्ड नमक, दालें, प्रोटीन, फल और सब्जियां लें लेकिन सोया से बने फूड आइटम (सोया मिल्क, टोफू, सोयाबीन व सोया सॉस ) कम खायें क्योंकि ये थायरॉइड हारमोन्स के एब्जॉर्ब्शन में बाधक हैं। सोया की तरह फाइबर भी थायराइड हारमोन के एब्जॉर्ब्शन में हस्तक्षेप करता है इसलिये अधिक मात्रा में फाइबर रिच पदार्थों के सेवन से बचें।

इम्यून सिस्टम के थायरॉइड ग्लैंड पर अटैक करने से शरीर में सेलेनियम की सप्लाई घट जाती है। इसलिये सेलेनियम रिच खाद्य पदार्थों को अपनी डाइट में शामिल करें। जिंक भी थायरॉइड ग्लैंड एक्टीवेट करने में सहायक है। यह शरीर में टीएसएच हारमोन्स रेगुलेट करने में मदद करता है। इनकी कमी पूरी करने के लिये डाइट में दूध, दही, पनीर, मछली, चिकन, अंडे, मशरूम और हेम्प सीड की मात्रा बढ़ायें।

शुगर और प्रोसेस्ड फूड खाना बंद करें अन्यथा शरीर में सूजन बढ़ेगी जिससे T3, T4 जैसे  हारमोन्स की प्रोसेसिंग धीमी होने से थायरॉइड ग्लैंड से जुड़ी बीमारियां ज्यादा बदतर हो जायेंगी।

थायरॉइड हारमोन्स के लेवल बिगड़ने से शरीर में विटामिन-बी-12 का स्तर घटता है। हाइपोथायराइडिज्म में होने वाली थकान दूर करने में विटामिन बी-12 बहुत कारगर है। डाइट में मटर, सेम, तिल के बीज, मछली, दूध, पनीर और अंडे शामिल करके भी इसकी कमी पूरी कर सकते हैं। आप चाहें तो डाक्टर की सलाह से विटामिन बी-12 सप्लीमेंट भी ले सकते हैं।

हाइपोथायरायडिज्म के मरीजों को मूंगफली, शकरकंद, स्ट्राबेरी, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, गोभी, ब्रोकली, पत्तागोभी, सोयाबीन, नाशपाती, आड़ू और पालक के सेवन से बचना चाहिये, क्योंकि इनमें मौजूद कुछ रसायन, थायरॉइड ग्लैंड के नार्मल फंक्शन बाधित करते हैं जिससे हारमोन उत्पादन कम हो जाता है। पेय पदार्थों में कॉफी और शराब के सेवन से बचें।

याद रहे यह लम्बे समय तक चलने वाली बीमारी है। इसका सामना करने के लिये सकारात्मक सोच के साथ डाइट और लाइफ स्टाइल में बदलाव करें। कम से कम 7 घंटे की अच्छी नींद लें और योगा तथा मेडीटेशन को अपने  डेली रूटीन में शामिल करें। स्ट्रेस कम करने के लिये दोस्तों और परिवार वालों से भावनायें और अनुभव शेयर करें।

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