उत्तर प्रदेश

यूपी चुनाव : मुसलमानों को ओवेसी से बचना होगा

Byशकील अख़्तर,
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यूपी चुनाव : मुसलमानों को ओवेसी से बचना होगा
ओवेसी खाली भाजपा विरोधी दलों के वोट ही नहीं काट रहे बल्कि अपने उग्र और भड़काने वाले बयानों से भाजपा के वोट भी बड़ा रहे हैं।... देश दो तरह की धार्मिक राजनीति से जूझ रहा है। एक भाजपा और संघ की बहुसंख्यक धार्मिक राजनीति तो दूसरी तरफ यह नई शुरू हुई ओवेसी की अल्पसंख्यक धार्मिक राजनीति। दोनों एक दूसरे की मदद कर रही हैं। और नुकसान हिन्दू मुसलमान दोनों का हो रहा है। जनता जिसमें हिन्दू मुसलमान दोनों हैं उनके असली सवाल गायब हैं। UP elections Muslims Owaisi मुसलमानों का जितना नुकसान असदउद्दीन ओवेसी कर रहे हैं उतना शायद ही किसी ने किया हो। यूपी के चुनाव में मुसलमान खुद को कोई भी पक्ष बनाए जाने से बहुत समझदारी से बच रहे हैं। भाजपा 80 बनाम 20, लूंगी, टोपी, अब्बाजान हर हरबा इस्तेमाल करके चुनाव मुसलमानों पर फोकस करना चाह रही है। मगर मुसलमान इस बहस से खुद को बहुत ही संयम से बचाए हुए हैं। किसी भी पार्टी के पक्ष विपक्ष में उनकी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं कही जा रही जिससे भाजपा को फायदा मिले। भाजपा जानती है कि यह 20 प्रतिशत वोट बहुत महत्वपूर्ण है। अभी तक वह इस बीस के नाम पर 80 का ध्रुवीकरण कर रही थी। जिसमें से उसको बड़ा हिस्सा मिलने लगा था। मगर इस बार पिछड़ों के अचानक विद्रोह करने और राजनीतिक माहौल बन जाने के कारण भाजपा के लिए सिर्फ मुस्लिम विरोध के आधार पर जीतना मुश्किल है। पिछले विधानसभा चुनाव में खुद प्रधानमंत्री मोदी ने ध्रुवीकरण के लिए श्मशान, कब्रिस्तान जैसा मुद्दा उठा दिया था। किसे पता था कि कुछ समय बाद कोरोना की दूसरी लहर में पूरा यूपी ही श्मशान कब्रिस्तान बन जाएगा। और श्मशान में जगह नहीं मिलेगी। शव गंगा में बहानेपड़ेंगे। नदी किनारे रेत में दबाना पड़ेगे। यूपी ने देख लिया कि धर्म की राजनीति किसी समस्या का हल नहीं है। यहां तक कि श्मशान में जगह मिलने की भी नहीं। मगर शायद ही भाजपा इससे कोई सबक सीखेगी। वह इस यूपी चुनाव में भी अपना यही साम्प्रदायिक दांव खेलेगी। जिसमें उसे सबसे ज्यादा मदद ओवेसी की तरफ से मिलेगी। ओवेसी  ने 9 उम्मीदवारों की अपनी पहली लिस्ट जारी कर दी है। जाहिर है कि सारे उम्मीदवार मुसलमान हैं और मुस्लिम बहुल सीटों से उन्हें टिकट दिया गया है। Read also हवा, भगदड़ में 58 सीटों की जमीन! भाजपा भी अब केवल हिन्दुओं को ही टिकट देती है। पहले दो तीन सीटों पर प्रतीकात्मक रूप से मुसलमानों को देती थी। मगर अब वह भी बंद कर दिया है। इस तरह ओवेसी खुद को भाजपा के सामने खड़ा करके यह बता रहे हैं कि भाजपा का मुकाबला वही कर सकते हैं। दूसरी तरफ इसी तरह भाजपा ओवेसी को निशाना बनाकर यह बता रही है कि हिन्दुओं का सबसे बड़ा विरोधी एक मुसलमान ( ओवेसी) है। दोनों तरफ भावनाएं भड़काकर वोटों का पोलोराइजेशन करने कीकोशिश हो रही है। इसमें भाजपा का खेल तो साफ है। उसे लगता है कि हिन्दुओं की राजनीति करके ही उसे वोट मिल सकते हैं। लेकिन ओवेसी ऐसा क्यों कर रहे हैं? वह 403 में से उन करीब सौ सीटों पर चुनाव लड़ेंगे जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 प्रतिशत या इससे ज्यादा है। इन 20 प्रतिशत या जहां इससे ज्यादा भी है के वोटों के सहारे वे एक भी सीट नहीं जीत सकते हैं। मगर भाजपा के खिलाफ लड़ रही सपा और कांग्रेस को इन सभी मुस्लिम बहुल सीटों पर भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। वे जितने वोट काटेंगे उतना ही भाजपा को फायदा होगा। ओवेसी खाली भाजपा विरोधी दलों के वोट ही नहीं काट रहे बल्कि अपने उग्र और भड़काने वाले बयानों से भाजपा के वोट भी बड़ा रहे हैं। जब वे कहते हैं कि योगी को दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे। तो सबसे ज्यादा खुश कौन होता है? खुद योगी। वे बड़े अदब से कहते हैं कि ओवेसी साहब बड़े नेता हैं। हम उनकी यह चुनौती स्वीकार करते हैं। ओवेसी के योगी के खिलाफ बोलने से क्या योगी का एक भी वोट कम होता है? नहीं! बल्कि प्रतिक्रिया मेंउल्टे उनके वोट बढ़ते हैं। ओवेसी का असर यूपी में नौजवानों पर ज्यादा है। यह सबसे खतरनाक बात है। नौजवान या तो जिन्हें राजनीति को गंभीरता से समझना चाहिए या अपनी शिक्षा, भविष्य के बारे में विचार करना चाहिए। वे ओवेसी के भावनात्मक बयानों में बह रहे हैं। ओवेसी सपा, कांग्रेस सबके खिलाफ बोलते हैं। नौजवानों को ऐसे बागी तेवर बहुत पसंद आते हैं। लेकिन नौजवानों की समस्या क्या हैं? उनका भविष्य कैसे बनेगा ? विकास की दौड़ में वे पीछे कैसे रह गए? आधुनिक शिक्षा उनके लिए कितनी जरूरी है ? मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा और तरक्की में क्या बाधाएं हैं? इनमें से किसी का जवाब ओवेसी के पास नहीं है। बड़ा सीधा सवाल है कि क्या अकेले मुसलमान किसी पार्टी को जीता सकते हैं? ओवेसी की पार्टी को चंद मुसलमानों के अलावा कोई और वोट देगा? अगर नहीं तो मुसलमानों के वे वोट बेकार गए। साथ ही दूसरी तरफ वे सपा या कांग्रेस के किसी जीतते हुए उम्मीदवार को कम भी पड़ेंगे। जिसकी वजह से वे हारेंगे और भाजपा के उम्मीदवार जीतेंगे। ओवेसी भाजपा और कांग्रेस या सपा या बिहार में आरजेडी को एक ही तराजू में तौलते हैं। पढ़े लिखे हैं। बैरिस्टर हैं। उच्च शिक्षित। क्या उन्हें नहीं मालूम कि इन साढ़े सात सालों में मुसलमानों के खिलाफ जैसा माहौल बनाया गया है वैसा पहले कभी नहीं। क्या कभी किसी प्रधानमंत्री ने श्मशान और कब्रिस्तान की तुलना कीरमजान, ईद, होली दिवाली की तुलना की? कपड़ों से पहचानने की बात की? हरिद्वार की धर्म संसद में नरसंहार की बातें की गई। महिलाओं के सुल्ली डील और बुल्ली बाई एप बनाए गए। मुसलमानों को पूरी तरह अलग थलग करने और दिखाने की कोशिश की गई। तो क्या इसका इलाज अलग थलग होकर वोट डालना है? या सबके साथ मिलकर एक पहले की तरह भाइचारे और मेलजोल का माहौल बनाना है। मुसलमानों को निशाने पर लेने का नुकसान मुसलमानों को तो हो ही रहा है मगर सबसे ज्यादा देश को हो रहा है। आज भाजपा और संघ परिवार इसे नहीं समझ रहे हैं। मगर एक दिन उनकी समझ में आएगा। जब सबका नुकसान हो चुका होगा। हिन्दू ही उनसे पूछेंगे कि हमें क्या मिला? यूपी में पांच साल तक सबसे तेज गति से हिन्दू मुसलमान किया गया। लेकिन नौकरी तो किसी हिन्दू को भी नहीं मिली। महंगाई का असर उस पर भी उतना ही हुआ। खाद की लाइन में खड़े खड़े हिन्दू किसान ही मरे। उन्नाव, हाथरस में बलात्कार और फिर जुल्मों का शिकार हिन्दू लड़कियां और उनके हिन्दू परिवार ही हुए। क्या यह सब बातें हिन्दुओं से छुपी हुई हैं? मगर फिलहाल एक नशा है। धर्म का नशा। जिसके सामने कुछ नहीं दिखता है। मगर जब यह नशा टूटता है तो तारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा होता है। पड़ोस के पाकिस्तान को देख लेना चाहिए। आज वहां सुप्रीम कोर्ट से लेकर सरकार इस धार्मिक सत्ता को तोड़ने की कोशिश कर रही हैं। मगर उसकी जड़ें इतनी फैल चुकी हैं कि उसने आर्थिक रुप से पाकिस्तान को तबाह कर दिया है। आर्थिक स्थिति हमारी भी गिरती जा रही है। कई आर्थिक पैमानों पर बांग्लादेश हमसे आगे निकल गया है। कारण स्पष्ट है। जब हम धार्मिक भावनाएं भड़काते हैं तो किसी और चीज के बारे में सोचते ही नहीं हैं। धर्म हर समस्या का इलाज दिखने लगता है। जनता रोजी रोटी की बात करती है तो उसे देशद्रोही कह दिया जाता है। अभी किसान आंदोलन में देखा कि किसान को किस तरह खालिस्तानी, देशद्रोही, मवाली, नकली किसान जाने क्या क्या कहा गया। देश दो तरह की धार्मिक राजनीति से जूझ रहा है। एक भाजपा और संघ की बहुसंख्यक धार्मिक राजनीति तो दूसरी तरफ यह नई शुरू हुई ओवेसी की अल्पसंख्यक धार्मिक राजनीति। दोनों एक दूसरे की मदद कर रही हैं। और नुकसान हिन्दू मुसलमान दोनों का हो रहा है। जनता जिसमें हिन्दू मुसलमान दोनों हैं उनके असली सवाल गायब हैं। धर्म की राजनीति यही चाहती है। नकली मुद्दे बने रहें। जनता उनमें उलझी रहे। और भावनात्मक आधार पर उन्हें वोट मिलते रहें। मगर यह राजनीति न देश के लिए अच्छी है और न ही उन हिन्दू मुसलमानों के लिए जिन के नाम पर यह की जा रही है।
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