nayaindia Akhilesh yadav Mayawati मायावती के रास्तेपर डरे हुए अखिलेश?
उत्तर प्रदेश

मायावती के रास्ते पर डरे हुए अखिलेश?

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अखिलेश यादव ने बाद में यात्रा केलिए शुभकानमाएं देकर अपनी झेंप थोड़ी मिटाने की कोशिश की है। लेकिन उन्होंने जो कहा कि कांग्रेस और भाजपा एक हैं वह उनके असली विचार हैं। मायावती भी ऐसा नहीं कहती हैं। वे कहती है कि एक जैसे हैं! दोनों में बहुत फर्क है।…अखिलेश, मायवती की तरह ही एक डरे हुए नेता बन रहे हैं। उसका नतीजा भी वहीहोगा। मायावती की तरह वे भी यूपी में खत्म हो जाएंगे। ऐसे में दो हीस्थितियां होंगी।

कांग्रेस के लिए नया साल अच्छा शुरू हुआ। यात्रा का दूसरा चरण 3 जनवरी,मंगलवार से जब उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने वाला था तो उससे पहले डरे हुएविपक्ष ने राहुल के साथ चलने से इनकार कर दिया। कांग्रेस ने इन सबकोनिमंत्रण दिया था। राहुल के “ डरो मत “ मंत्र के साथ। मगर अखिलेश यादव,मायवती और जयंत चौधरी तो हिम्मत नहीं कर पाए राकेश सिंह टिकैत जिन्हेंकिसान आंदोलन के दौरान आंसू बहाने पर मजबूर होना पड़ा था वे भी पीछे हटगए। उन्हें याद नहीं रहा कि किसान आंदोलन का और खुद उनका सबसे ज्यादासमर्थन राहुल गांधी ने ही किया था। प्रियंका गांधी टिकैत की मुज्जफरनगरकिसान महापंचायत में पहुंची थीं।

लेकिन खैर इन सब नेताओं के दूर रहने की कमी को राम जन्मभूमि श्री अयोध्याजी के मुख्य पुजारी आचार्य श्री सत्येन्द्र महाराज के आशिर्वाद ने पूराकर दिया। राहुल गांधी को हाथ से लिखी चिट्ठी में आचार्य जी ने कहा है किआप ‘ सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय ’ का मगंलमय काम कर रहे हैं। आपकी भारतजोड़ो यात्रा का लक्ष्य पूरा हो। यह उस उत्तर प्रदेश से सबसे बड़ा समर्थनहै जिसकी राजनीति ही पिछले 30 – 35 साल से अयोध्या के इर्दगिर्द ही चक्करलगा रही है।

उत्तर प्रदेश हर पार्टी के लिए हमेशा से खास है। खुद कांग्रेस के लिए भी।बस फर्क यही है कि इसे कांग्रेस हमेशा अपना ऐसा घर समझती रही जिसका उपयोगतो खूब किया जा सकता है मगर उसके लिए कुछ नहीं करना होगा। कांग्रेस नेयूपी को जितना टेकन फार ग्रान्टेड ( महत्व नहीं देना) लिया वही वजह है किआज वहां ढाई दिन से ज्यादा यात्रा नहीं चला पा रही है।नेहरू से लेकर इन्दिरा गांधी, राजीव, संजय, सोनिया, राहुल सब यहां से

जीतते रहे। 2024 का अगला चुनाव प्रियंका गांधी यहां से लड़ सकती हैं।परिवार के लिए इस राज्य का महत्व सबसे ज्यादा होना चाहिए। मगर कांग्रेसके मैनेजरों ने यहां हमेशा ऐसा माहौल बनाया कि यूपी तो छोड़िए अमेठी औररायबरेली में भी विकास नहीं होने दिया। अगर यहां पर किसी ने विकास कियाथा तो वे राजीव गांधी थे। उन्होंने अमेठी की पूरी कृषि भूमि को जोअनउपजाऊ थी। उसे बदलकर उपजाऊ भूमि बना दिया। इतिहास में ऐसे काम बहुत कमहुए हैं। पूरी भूमि का रूपान्तरण। लेकिन वे राजीव गांधी थे जो कहते थेमेरा भारत महान और उसी के अनुरूप उन्होंने अमेठी के खेतों को हरा भरा बनादिया।

आश्चर्य यह है कि कांग्रेसी ही इस पर कुछ नहीं लिखते। नहीं बताते। 2014के लोकसभा हारने के बाद हर कांग्रेसी नेता ने कहा कि हम अपने कामों काप्रचार नहीं कर पाए। नहीं कर पाते। तो उन्हें किसने रोका है? ऐसा तो हैनहीं कि वे बहुत संकोची हों। अपना व्यक्तिगत प्रचार तो हर कांग्रेसी खूबकरता है। बड़े से बड़े कांग्रेसी का यह रोना होता है कि उसे उसके योगदानसे पार्टी में कम मिला। खासतौर पर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने केबाद कई कांग्रेसी यह जताते रहे कि वे इस पद के लिए ज्यादा उपयुक्त थे।प्रणव मुखर्जी तो इस भावना से राष्ट्रपति बनने के बाद भी मुक्त नहीं होपाए। और कांग्रेस से बदला लेने के लिए नागपुर तक हो आए।

अब मल्लिकार्जुनखडगे के कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के बाद हम क्यों नहीं कि भावना औरबढ़ेगी। इन महत्वाकांक्षाओं में कोई बुराई नहीं। मगर पार्टी के लिए कामतो करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी जी की हिम्मत है कि वे आडवानी,मुरलीमनोहर जोशी को घर बिठा सकते हैं। राजनाथ सिंह और गडकरी जैसे पूर्वपार्टी अध्यक्षों को एक दायरे में रख सकते हैं। रविशंकर प्रसाद, प्रकाशजावडेकर, उमा भारती, विजय गोयल को महत्वहीन बना सकते हैं। और अभी जैसा किसंभावित है केन्द्रीय मंत्रिमंडल में हेरफेर होगा तो इसमें फिर वे कुछ वेबड़े नाम गिरा सकते हैं। और नयों को मौका दे सकते हैं।

सोनिया गांधी यही नहीं कर पाईं। उन्हें खुद अपनी सरकार से लड़ने के लिएराष्ट्रीय सलाहकार परिषद ( एनएसए) बनाना पड़ी। किसान कर्ज माफी, मनरेगाको मनमोहन सिंह सरकार में कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं था। वे इसेअनावश्यक खर्च बता रहे थे। मगर वह सोनिया की जिद थी कि उन्हें लागू कियागया। ऐसे ही महिला बिल भी सोनिया की महिला अधिकारों के लिए  प्रतिबद्धताकी वजह से ही राज्यसभा में पास हो पाया। कांग्रेस में हर नेता स्वयंभूमहाराज है। वह यह नहीं मान सकते कि कांग्रेस में जो आत्मा है, जो आम जनता

हितेषी भावना है वह परिवार के कारण है। हालांकि गलत लोगों के आसपास होनेसे सोनिया को या यह कहना ज्यादा सही होगा कि कांग्रेस को यूपीए सरकार कोबहुत नुकसान हुआ। सत्ता के दो केन्द्रों ने उस समय भी बहुत नुकसानपहुंचाया था और अभी फिर दो केन्द्र बन जाने से कांग्रेस के लिए फिऱ नईसमस्याएं, चुनौतियां पैदा होंगी।

प्रधानमंत्री मनमेहन सिंह के अमेरिका के साथ एटमी डील पर अड़ जाने काकांग्रेस को बहुत नुकसान हुआ था। विश्वसनीय सहयोगी लेफ्ट साथ छोड़ गया। औरसपा कुद कर साथ आ गई। आज सपा का रुख देखकर कांग्रेस को समझ लेना चाहिए कीसत्ता क्यों जरूरी होती है। तब सत्ता थी तो एक तरफ सपा के अमर सिंह यूपीएके डिनर में अपने अपमान का आरोप लगाते थे, दूसरी तरफ यूपीए को समर्थनदेने मुलायम को लेकर भागे चले आते थे। अखिलेश यादव ने बाद में यात्रा केलिए शुभकानमाएं देकर अपनी झेंप थोड़ी मिटाने की कोशिश की है। लेकिनउन्होंने जो कहा कि कांग्रेस और भाजपा एक हैं वह उनके असली विचार हैं।

मायावती भी ऐसा नहीं कहती हैं। वे कहती है कि “ एक जैसे हैं! ”दोनों में बहुत फर्क है। एक हैं। मतलब अभिन्न। कोई अंतर नहीं। केवल नामका फर्क है। और एक जैसे हैं, राजनीतिक बयान है। लोगों को बरगलाने वाला।जिसका मतलब है हमारे खिलाफ दोनों एक हैं। बाकी मामलों पर अलग हो सकतेहैं। मगर अखिलेश के एक हैं का सीधा मतलब है कि दोनों में से जो भी सत्तामें होगा हम उसके साथ हैं। अभी हाल के विधानसभा चुनाव में उन्होंनेकांग्रेस की कोशिशों के बावजूद विपक्षी एकता नहीं बनाई। उस समय बहुत सारेलोगों ने थ्योरियां दी थीं कि साथ लड़ने से भाजपा को फायदा होगा। लेकिनचूंकि उन थ्योरियों का कोई आधार नहीं था इसलिए सब गलत निकलीं। इन्हे देनेवालों में कांग्रेस के भी लोग थे।

अखिलेश, मायवती की तरह ही एक डरे हुए नेता बन रहे हैं। उसका नतीजा भी वहीहोगा। मायावती की तरह वे भी यूपी में खत्म हो जाएंगे। ऐसे में दो हीस्थितियां होंगी। एक दलित और पिछड़ों का नया नेतृत्व विकसित होगा। दूसरेजातिवादी राजनीति का प्रभाव कम होगा।

राहुल अपनी यात्रा के जरिए यही चाहते हैं। धर्म और जाति की राजनीति कीजगह लोगों की रोजमर्रा की जिन्दगी से जुड़े सवालों पर देश का ध्यान।हिन्दु मुसलमान और जाति की राजनीति से वोट तो मिल रहे हैं मगर देश  अंदरसे खोखला हो रहा है। हिंसा, क्रूरता बढ़ती जा रही है। अभी नए साल परलड़की को दिल्ली की सड़कों पर कार से मीलों घसीटे जाने का मामला क्या है?आज मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्री बोलने की स्थिति में नहीं हैं। सब डरे हुए हैं। न्याय की देवी तक। लेकिन गांधी के खिलाफ, प्रेम के खिलाफ जोमाहौल बनाया गया उसमें नफरत, क्रोध और क्रूरता ही पैदा होना थी।निर्भया का इस्तेमाल राजनीतिक किया था। आज उन्हीं की राजनीति ने न जानेकितनी लड़कियों को निर्भया की अमानवीय स्थिति तक पहुंचा दिया।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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