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टीकाकरण में सफलता और चुनौतियां

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टीकाकरण में सफलता और चुनौतियां
दो सौ करोड़ से अधिक टीकाकरण में एक ऐसा बिंदु भी है, जो भविष्य को गहरी चुनौती दे रहा है और वह है- जनसंख्या वद्धि। एक अनुमान के अनुमान, जनसंख्या के मामले में भारत अगले वर्ष चीन से आगे निकल जाएगा। बढ़ती आबादी का सीधा अर्थ खाद्य-वस्तुओं, दवाइयों, रोजगार, स्वास्थ्य, यातायात, आवासीय सुविधाओं के साथ बिजली-पानी आदि संसाधनों पर अत्याधिक दबाव और गरीबी बढ़ने से है। स्वतंत्र भारत की विकास यात्रा में गत दिनों एक और मील का पत्थर जुड़ गया। 17 जुलाई को देश ने 200 करोड़ कोविड-19 रोधी टीका लगाने का आंकड़ा पार कर लिया। निसंदेह, यह ऐतिहासिक उपलब्धि भारत सरकार द्वारा शहरी-ग्रामीण सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में संतुलित-समेकित क्रियान्वयन, स्वदेशी टीकों की दक्षता और असंख्य स्वास्थ्यकर्मियों के तप से जनित है। आगामी दिनों में यह किसी भी आपातकालीन चिकिस्तीय स्थिति से निपटने में आदर्श बनेगा।  यह ठीक है कि कोरोना की भयावहता लगभग समाप्त हो चुकी है। परंतु ध्यान रहे कि कोरोनावायरस बहरूपिया है, जो विश्व में अब भी कई रूपों के साथ विद्यमान है। इससे बचने हेतु यह आवश्यक है कि लोग पूर्ण टीकाकरण का हिस्सा बने, क्योंकि देश में कोरोना संक्रमण धीमा पड़ने और लोगों के निश्चिंत होने से 150 करोड़ से 200 करोड़ कोविड टीका लगने में अन्य चरणों की तुलना में अधिक समय लगा है। इसी को ध्यान में रखते हुए तीसरी खुराक (सतर्कता) के टीकाकरण को गति देने हेतु मोदी सरकार ने 15 जुलाई से 75 दिनों तक फिर से निशुल्क अभियान छेड़ा है। यदि मोदी सरकार मुफ्त वैक्सीन का संचालन नहीं करती, तो डेढ़ वर्षों में 200 करोड़ टीकाकरण के आंकड़ा को छू पाना असंभव होता। शेष विश्व की तुलना में भारत का कोरोना विरोधी अभियान, बहुआयामी है। जहां एक ओर दुनिया के अन्य देशों की भांति भारत में कोविड-19 का वस्तुनिष्ठ-निर्णायक उपचार नहीं है, वही दूसरी ओर भारत में लोगों को उस जमात से भी सतर्क रहना है, जिसने भ्रामक और झूठा प्रचार करके कोविड-19 रोधी अभियानों में बाधाएं डाली और अब भी अवसर मिलने की ताक में बैठे है। इसी वर्ग ने दावा किया था कि 140 करोड़ की आबादी वाले भारत में संपूर्ण टीकाकरण होने में 10-15 वर्षों का समय लग सकता है, जबकि भारत ने 16 जनवरी 2021 से टीकाकरण शुरू करते हुए 547 दिनों के भीतर 200 करोड़ टीके लगाने की उपलब्धि को प्राप्त कर ली। वर्तमान समय में जहां 10-15 हजार के बीच कोरोना मामले सामने आ रहे है, तो उसमें मृतकों की संख्या बहुत कम है। बीते आठ माह में अस्पतालों में संक्रमितों के भर्ती होने और मृत्युदर में भारी कमी आई है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि देश में (15 आयुवर्ष से अधिक) लगभग 102 करोड़ लोगों को वैक्सीन की पहली खुराक, तो 92 करोड़ से अधिक लोगों को दोनों खुराक, जबकि साढ़े पांच करोड़ लोगों तीसरी खुराक लगाई जा चुकी है। भारतीय टीकाकरण की सफलता का एक और कारण वैक्सीन की मामूली कीमत भी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में विदेशी कोरोना टीके की एक खुराक औसतन 20 अमेरिकी डॉलर- अर्थात् 1600 रुपये में उपलब्ध है, जबकि भारत सरकार ने देश में इसका मूल्य प्रति खुराक 225 रुपये निर्धारित किया है। मुफ्त कोरोना वैक्सीनेशन पर मोदी सरकार फरवरी 2022 तक 27,945 करोड़ रुपये व्यय कर चुकी थी, जोकि वित्तवर्ष 2021-22 के कुल बजट का एक प्रतिशत भी नहीं था। सोचिए, यदि भारत टीका नहीं बनाता, तो वह उसे विदेश से खरीदता और ऐसा होने पर सरकारी खजाने पर अकूत दुष्प्रभाव पड़ता। सच तो यह है कि भारत ने कोरोना के खिलाफ वैश्विक लड़ाई का नेतृत्व किया है। अमेरिका के ह्यूस्टन स्थित 'बायलोर कॉलेज ऑफ मेडिसिन' में 'नेशनल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन' के डीन डॉ.पीटर होटेज के अनुसार, "..भारतीय वैक्सीन ने विश्व को बचाया है और वह दुनिया को भारत का उपहार है..।" दो सौ करोड़ से अधिक टीकाकरण में एक ऐसा बिंदु भी है, जो भविष्य को गहरी चुनौती दे रहा है और वह है- जनसंख्या वद्धि। एक अनुमान के अनुमान, जनसंख्या के मामले में भारत अगले वर्ष चीन से आगे निकल जाएगा। बढ़ती आबादी का सीधा अर्थ खाद्य-वस्तुओं, दवाइयों, रोजगार, स्वास्थ्य, यातायात, आवासीय सुविधाओं के साथ बिजली-पानी आदि संसाधनों पर अत्याधिक दबाव और गरीबी बढ़ने से है। यह ठीक है कि एक हालिया वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में गरीबों की संख्या घटकर 10 प्रतिशत हो गई है, जोकि एक बड़ी उपलब्धि है- फिर भी देश में 14 करोड़ लोगों का गरीब होना चिंताजनक है। इसके अतिरिक्त, भारत की बहुलतावादी वैदिक संस्कृति-परंपरा, जहां अनादिकाल से मतभिन्नता स्वीकार्य है- उसपर एकेश्वरवाद का संकीर्ण चिंतन का खतरा अक्षत है। भारतीय उपमहाद्वीप में इस विषैले मानस के प्रभाव से 12वीं शताब्दी में अफगानिस्तान, 1947 में पाकिस्तान और 1990 के दशक में कश्मीर घाटी- अपने मूल समावेशी और समस्त ब्रह्मांड-कल्याण को अपने भीतर समेटे वैदिक दर्शन से भूगौलिक या फिर भावनात्मक रूप से कट चुका है। खंडित भारत में यह चिंतन आज भी छद्म-'सेकुलरवाद' के बल पर न केवल जीवित है, अपितु वामपंथियों और कई विदेशी वित्तपोषित एनजीओ के समर्थन से सक्रिय भी है। हाल ही में इस्लामी संगठन पीएफआई द्वारा वर्ष 2047 तक खंडित भारत के इस्लामीकरण की योजना, कथित 'ईशनिंदा' के नाम पर जिहादियों द्वारा निरपराधों का 'सर तन से जुदा' करना, हिजाब प्रकरण आदि इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस वर्ष हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर रहे है। देश में भाषा, क्षेत्र, मजहब और अन्य विविधताओं के होते हुए भी हम एक जीवंत लोकतंत्र और सही अर्थों में पंथनिरपेक्ष है, जिसका श्रेय केवल यहां की मूल बहुलतावादी सनातन संस्कृति को जाता है। यदि वैश्विक महामारी कोविड-19 पर भारतीय नेतृत्व की सफलता के अतिरिक्त मैं अन्य तीन बड़ी सफलताओं का उल्लेख करूं, तो उसमें 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में अमेरिकी धौंस को नजरअंदाज करते हुए भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान को परास्त करना, 1998 में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की धमकियों के आगे न झुकते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दिशा-निर्देशों पर सफल पोखरण-2 परमाणु परीक्षण करना और हालिया वर्षों में वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत का मान-सम्मान बढ़ना- शामिल है। ऐसे में जनसंख्या वृद्धि, गरीबी और मजहबी कट्टरवाद के बढ़ते खतरे जैसे संकटों के बीच ऐसी कई सफलताएं है, जिनपर हम गर्व कर सकते है।
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