क्या रायपुर से कांग्रेस को 2024 का चुनावी रोडमेप मिलेगा?

क्या रायपुर से कांग्रेस को 2024  का चुनावी रोडमेप मिलेगा?

इस समय बाल राहुल के बैट के बीचोंबीच आ रही है। बैटसमेन को समझना चाहिए यह। इस देसी भाषा में कहते हैं भलाई आई है। मतलब फार्म। शाट में गति के साथ साउंड आ रहा है। ठक की यह आवाज बैटसमेन को बहुत अच्छी लगती है। स्कोर बढ़ाते रहने का उत्साह बढ़ता जाता है।विपक्षी खेमा तो घबराया हुआ है। मगर कांग्रेस नहीं समझ रही।खड़गेजी को ही रायपुर से यह मैसेज देना होगा कि पार्टी का 2024 तक रोडमेप क्या है। कांग्रेस शिकायत करती है कि उसे प्रचार करना नहीं आया। दस साल यूपीए सरकार ने बहुत अच्छा काम किया।

छापों से कांग्रेस का क्या बिगड़ेगा? अंग्रेजों ने भी ऐसे छापे मारे थे। क्या हुआ? 1942 में भी कांग्रेस का प्लेनरी (महाधिवेशन)मुबंई में था। अंग्रेज सरकार ने भी तब छापे मारे। महात्मा गांधी कोगिरफ्तार कर लिया। मगर भारत छोड़ो सफल रहा। कांग्रेस के इसी महाधिवेशनमें 8 अगस्त 1942 को “ अंग्रेजों भारत छोड़ो“ प्रस्ताव पारित हुआ था।

अब रायपुर में महाधिवेशन है। 24-25-26 फरवरी को। मगर उससे पहले वहांकांग्रेस नेताओं के यहां छापे मारे जा रहे हैं। भाजपा कहती है 70 साल मेंक्या किया? और क्या किया यह तो कांग्रेस बताए। मगर एक पत्रकार यह जरूरबता सकता है कि इन 70 सालों में कभी भाजपा के किसी अधिवेशन, कार्यक्रम सेपहले छापे नहीं मारे गए।

भाजपा सरकार इस तरह रिएक्ट क्यों कर रही है पता नहीं। मगर यह रिएक्शनजैसा लगता है, असुरक्षा की भावना से उपजा हुआ है। कैसी असुरक्षा? कांग्रेसने तो ऐसा कोई पहाड़ तोड़ा नहीं है। एक यात्रा जरूर की और वह बहुत सफलभी रही। मगर खुद कांग्रेस ही यह बार बार कहकर कि यात्रा राजनीतिक नहीं थीउसका कोई असर होने नहीं दे रही है। यात्रा विपक्षी एकता के लिए नहीं थी।यात्रा चुनाव जीतने के लिए नहीं थीं। यात्रा इसके लिए नहीं थी, उसके लिएनहीं थी। रोज कुछ ना कुछ कहती रहती है। जब खुद कांग्रेस अपनी यात्रा को लेकर कन्फ्यूज है तो भाजपा को चिंता क्यों?

यह राहुल, कांग्रेस, जनता सबके लिए खतरनाक बात है। लोकतंत्र में कुछ भीराजनीति से इतर नहीं होता है। लोकतंत्र का मतलब ही होता है जनता की भलाईका शासन। और उसे देने के लिए चुनाव जीतना पड़ते हैं। लेकिन कांग्रेस कोएक नई बीमारी लग गई है गुड़ खाएं गुलगुलों से परहेज। राजनीतिक दल हैं।उसके नेताओं, कार्यकर्ताओं ने ही जनता के समर्थन से यात्रा सफल की। मगरएक आदर्श छवि बनाने के लिए कहा जा रहा है कि इसका राजनीति से चुनाव सेमतलब नहीं। अगर यही बात सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कहतींजो वे अपनी मर्जी के खिलाफ बनीं थी तो क्या 2004 में वाजपेयी जैसेशक्तिशाली नेता को हरा सकती थी?। उन्होंने चुनाव जीता और वह क्रान्तिकारीकाम किए जो भारत के 75 साल के इतिहास के दस बारह प्रमुख कामों में शामिल हैं।

महिला रिजर्वेशन बिल राज्यसभा में पास करवाना, मनरेगा लाकर गांवों मेंआर्थिक खुशहाली लाना, किसानों की कर्ज माफी से उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी कीकर्ज दासता से मुक्ति दिलाने की राह खोलना। फैसले और भी हैं। आरटीआई, फूडसिक्योरटी। मगर उन सबको बताना उद्देश्य नहीं है बल्कि यह बताना है कि आपअपने विचारों को तब ही मूर्त रूप दे पाते हैं लागू कर पाते हैं जब आपकेपास सत्ता होती है।

कांग्रेस के पूर्व अधिवेशनों के बारे में बताने को बहुत कुछ है। मगरकिसको? कांग्रेसियों को? उन्हें तो सब पता होना चाहिए। खैर यात्रा की बातकर रहे थे तो उसके बारे में दोनों के अलग अलग विचार हैं। भाजपा को यह यात्रा खतरा दिख रही है। कांग्रेस में इसको लेकर कोई उत्साह नहीं दिखरहा। अगर है भी तो वह उसे चुनाव में, विपक्षी एकता में कन्वर्ट करने कीकोई कोशिश नहीं कर रही है। होइहि सोइ जो राम रचि राखा!  राम की बात भाजपाबहुत करती है। मगर मानती कांग्रेस है!

इसलिए उसकी यात्रा भी हो गई। महाधिवेशन भी हो जाएगा। मतलब सारे अनुष्ठानपूर्ण। अब? लोग कहते हैं आप कांग्रेस को मत बताओ क्या करना है! ! सही कहते हैं। हम क्याकोई भी कांग्रेस को नहीं बता सकता। खुद सोनिया गांधी जब कांग्रेस अध्यक्षथीतो वे नहीं बता पाईं। कहती रोज थी। जनता के पास जाओ। कार्यकर्ताओं सेमिलो। मगर यूपीए में मंत्री बना कोई कांग्रेसी नहीं सुनता था। न संगठनमें बैठा कोई नेता। ये तो जनता की भी नहीं सुन रहे। पांच महीने, चार हजारकिलोमीटर की यात्रा में जनता ने क्या कहा? जो हमने सुना वह तो यही सुनाकि नफरत को हटाओ। बेरोजगारी, महंगाई के जाल से निकालो।

कांग्रेस ने भी यह सुना। मगर चूंकि यात्रा राजनीतिक नहीं थी तो वह क्याकरे? वह यह नहीं कह सकती कि हां देशवासियों ने हमने तुम्हारी आवाज सुनीहै। हम वह सब करना चाहते है जिससे देश फिर से आगे बढ़े। समाज से नफरत औरविभाजन खत्म हो। तुम्हें नौकरी, रोजगार मिले। इसके लिए हमें सत्ता मेंलाओ। वोट दो। मगर पता नहीं उससे किसने कह दिया है कि सत्ता तो इतनी खराबचीज है कि उसे चिमटे से भी नहीं छूना चाहिए। वह चुनाव की बात ही नहींकरती। त्रिपुरा में मतदान हो गया। खडगे, राहुल, प्रियंका कोई नहीं गया।अब एक जगह नागालेंड में खडगे और दूसरी जगह मेघालय में राहुल जा रहे हैं।

हर चीज की एक सीमा होती है। राहुल हिमाचल नहीं गए। गुजरात में एक दौराकिया। पंजाब और उत्तराखंड अपने हाथों से हारे। यह सब क्यों?

इस समय बाल राहुल के बैट के बीचोंबीच आ रही है। बैटसमेन को समझना चाहिएयह। इस देसी भाषा में कहते हैं भलाई आई है। मतलब फार्म। शाट में गति केसाथ साउंड आ रहा है। ठक की यह आवाज बैटसमेन को बहुत अच्छी लगती है। स्कोरबढ़ाते रहने का उत्साह बढ़ता जाता है।

विपक्षी खेमा तो घबराया हुआ है। मगर कांग्रेस नहीं समझ रही।

रायपुर में कांग्रेस को रेनसां ( नवजागरण, पुनर्उद्धार) के बारे मेंसोचना चाहिए। अतीत के बारे में बहुत सारे लोग बाते करते हैं। मगरकांग्रेस का जैसा गौरवशाली इतिहास है वैसा किसी का नहीं। इतने हमलेइसीलिए होते हैं। नेहरू शर्मिन्दगी का तो सवाल ही नहीं पूरी दुनिया मेंसम्मान के साथ लिया जाने वाला नाम है। अमेरिका के राष्ट्रपति कैनेडी नेअमेरिका में उनका स्वागत करते हुए उन्हें “ग्रेट वर्ल्ड लीडर” कहा था। आजअपने मुंह से हम विश्व गुरु बन जाएं। मगर कोई हमें विश्व गुरु नहीं कहताहम ही अमेरिका में जाकर अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा लगाते हैं।

नेहरू गौरव की बात है। अभी रूस और युक्रेन के युद्ध में भारतीय राजनयिकोंने नेहरू की निर्गुट नीति को ही आगे बढ़ाया। विश्व डिप्लोमेसी में आज भीसबसे ज्यादा नेहरू की नान एलायंस नीति प्रासंगिक है। छोटे बड़े हर देश केडिप्लोमेट्स गुट निरपेक्ष आंदोलन के बारे पढ़ते हैं। और नेहरू कीअन्तरराष्ट्रीय भूमिका के बारे में। मगर कांग्रेस ने देश में इसके बारेमें ज्यादा नहीं पढ़ाया बताया। अभी प्रधानमंत्री ने तो नेहरू पर सवालउठाए ही, बाकी नेता भी उनका चरित्र हनन करते रहते हैं। जितना पैसा राहुलकी छवि खराब करने में लगाया हजारों करोड़ रुपया उतना ही नेहरू के लिए समयलगाया। 75 साल से यह सिलसिला चल रहा है। कांग्रेस को इसका जवाब देनाचाहिए।

अभी कांग्रेस के मीडिया डिपार्टमेंट के चेयरमेन पवन खेड़ा ने एकशब्द बोला भाजपा और मीडिया ने हंगामा कर दिया। कांग्रेस के लोग भी इसमेंसुर मिलाने लगे। यह अजीब दोहरा रवैया है। भारत के पहले प्रधानमंत्री अभी ऊपर जैसा लिखा भारत छोड़ो के प्रस्ताव के बारे में उसे पेश करने वाले, औरफिर उस पर अमल करते हुए अंग्रेजों को भगाने वाले, पाकिस्तान के दो टुकड़ेकरने वाली इन्दिरा गांधी के पिता उन पर कुछ भी कह दीजिए कोई सवाल उठानेवाला नहीं है? मोदी जी ने कहा कि मेरा अपमान हुआ है तो कांग्रेस नेमणिशंकर अय्यर को सस्पेंड कर दिया था। यह दो नियम दो पैमाने कैसे चलेंगे?

खड़गे जी नए अध्यक्ष बने हैं। उन्हें रायपुर से ही यह मैसेज देना होगा किपार्टी का 2024 तक रोडमेप क्या है। कांग्रेस शिकायत करती है कि उसेप्रचार करना नहीं आया। दस साल यूपीए सरकार ने बहुत अच्छा काम किया। ठीकहै। लेकिन अगर नहीं आता तो सीखिए। नेहरु के बारे में दोनों तरीकों सेबताइए। प्रिंट में बुकलेट छपवाइए। गांव गांव बंटवाइए। हाथ से हाथ जोड़ोअभियान में। अभी खड़गे जी यहां रायपुर आने से पहले एक दो जगह गए इसकार्यक्रम में। क्या लेकर गए। बेकार के नेता जितने गाड़ियों में भरकरजाते हैं उनमें उतनी ही प्रचार सामग्री जाना चाहिए। हर विषय पर अलग अलग।

राहुल की यात्रा पर अभी तक क्या निकाला पता नहीं। यह यात्रा तो ऐसी थी किइस पर पचासों पुस्तिकाएं बन जाएं। उन्हें लिखवाइए, छपवाइए और बंटवाइए।मगर किसी योग्य और राजनीतिक रूप से समझदार नेता, व्यक्ति की देखरेख में।नहीं तो कांग्रेस ने कई नेताओं पर हजारों की तादाद में मोटी मोटी किताबेंछपवाईं हैं। लेखकों को लाखों रुपया दिया गया। मगर किताबों में क्या है।सिर्फ कंपाइलेशन। यहां वहां से सामग्री उठाकर डाल दी और तीन चार सौ पेजकी मोटी किताब छपवा ली। किसने पढ़ीं? और उनमें था क्या पढ़ने को ? वे सब कांग्रेस मुख्यालय में डंप पड़ी हुई हैं।

अभी बांग्ला देश विजय की पचासवीं सालगिरह पर इन्दिरा का नाम ही नहीं था।खूब प्रचार किया गया कि इन्दिरा का कोई योगदान नहीं था। इसे कौन बताएगा?कांग्रेस की जिम्मेदारी है। छोटी छोटी पुस्तिकाओं में बिंदुवार जानकारीदेना होगी। इसी तरह विषयों का निर्धारण करके सोशल मीडिया पर चलाना होगा।गूगल यूट्यूब पर पहुंचाना होगा। अभी मध्य प्रदेश में एक बच्चे ने महात्मागांधी के खिलाफ कविता पढ़ी। राज्य सरकार के मंत्री वहां थे। हंस रहे थे।बाद में परिवार ने बताया कि बच्चे ने यू ट्यूब से कविता सीखी थी।

कांग्रेस के साथ पूरे देश की आशा अपेक्षाएं लगी हुई हैं। यह आजादी केआंदोलन का नेतृत्व करने वाली पार्टी है। और अब लोकतंत्र को बचाने कीजिम्मेदारी भी प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते इसकी है। यात्रा ने इसे फिर से एक नया जीवन दिया है। कांग्रेस को इसे समझना चाहिए।

Published by शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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