मध्य प्रदेश

गाँधी-नेहरू की गलती को क्या मोदी ठीक करेंगे...?

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गाँधी-नेहरू की गलती को क्या मोदी ठीक करेंगे...?
भोपालI समय तो सदा से परिस्थितियों का दास रहा हे, आज से पचहत्तर साल पहले जहां भारत और प्र्रतीक्षित आजादी को हासिल करने से प्रसन्न था, वहीं उसके दिल में विभाजन की ठीस भी थी, आज पचहत्तर साल बाद आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान उसस पीड़ा को भी याद करके महात्मा गांधी व पं. जवाहरलाल नेहरू को कोसा जा रहा है, जबकि आज की इस पीढ़ी को उस समय की तत्कालीन परिस्थितियों और इन वरिष्ठ नेताओं की पीड़ा का कोई ज्ञान या एहसास नहीं है। सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि जो बात-बात पर भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाने का उलाहना देते है वही आज भारतीय विभाजन की आड़ में अपनी राजनीति को नया जीवनदान देना चाहते है? यह कितने आश्चर्य की बात है? इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे पूर्वज भाग्यविधाता इन नेताओं ने कितनी पीड़ा झेलकर मोहम्मद अली जिन्ना की जिद पूूरी की होगी। इसकी तो आज हम कल्पना भी नहीं कर सकते, क्या यह पीड़ा भारत से भगाए जाने वाले अंग्रेजों की देन थी या उस समय की परिस्थितियों ने भारत के विभाजन को जन्म दिया, यह तो एक लम्बी बहस व ‘‘गड़े मुुर्दे उखाड़ने’’ की प्रक्रिया है, इस पर अब बहसस करके पूरे भारत को उसी पीड़ा से पीड़ित करना कतई ठीक नही है, किंतु यदि आज  की सत्ता व उसकी राजनीति इसी दर्द भरी दुर्घटना की आड़ में अपनी कमियां छुपाने की कौशिश करती है तो इसे भारत का दुुर्भाग्य ही कहा जाएगा, यही नहीं आज की सत्ता की राजनीति तो यह कह रही है कि हर वर्ष आजादी के वार्षिक पर्व के पूर्व विभाजन की विभीषिका को याद करके उसकी संवत्तरी मनाई जाए। यद्यपि यह सही है कि पचहत्तर वर्ष पूर्व आजादी की खुशियों के साथ भारत को तोहफे के रूप में दी गई यह पीड़ा धर्म आधारित थी, वही घाव आज तक नासूर बनकर रिस रहा है और पूरा भारत उससे पीड़ित है। मानव निर्मित विभाजन की इस विभीषिका में लाखों परिवार तबाह हो गए थे और विभाजन के बाद हिंसा की अग्नि में समूची मानवता झुलसने लगी थी, यह भी सही है कि मानव इतिहास में इतना बड़ा रक्त रंजित विस्थापन इससे पहले कभी नहीं हुआ था लाखों की हत्या की गई थी, हजारों परिवार विस्थापित हो गए थे और अपनों से बिछुड गए थे, एक दिन पहले तक जिन घर-परिवारों में खुशियां थी, वहां उन घरों में कोई दीप जलाने वाला भी नहीं बचा था, लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार तक  नहीं कर पाए थे यह किसी देश की भौगोलिक सीमा का ही बंटवारा नही था, बल्कि यह बंटवारा था भावनाओं का, रिश्तों का व सच पूछो तो दिलों का। ....और आज यह सब याद करके हर दिल को पीड़ा अवश्य होती है, किंतु इस दुःखद इतिहास को भुलाया भी तो नहीं जा सकता और इसे याद करना व कराना इसलिए भी जरूरी है कि हमारी नई पीढ़ी इस दर्दीली दास्तान से कुछ शिक्षा गृहण करें और इसकी पुनरावृत्ति रोके। ....किंतु आज खेद इस बात का है कि उसी दर्दीली दास्तान को भारत को याद कराकर उस पर राजनीति करने के प्रयास किए जा रहे है, जो सत्ता से जुड़े लोग बात-बात पर देश में निवासरत मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाने की बात कहते है, वे ही आज विभाजन की विभीषिका को राजनीति का माध्यम बना रहे है, किंतु आज देश इन सत्ता से जुड़े लोगों से पूछना चाहता है कि यदि पचहत्तर साल पहले हमारे पूर्वज नेताओं ने भारत का विभाजन करने की जो गलती की, उसे मौजूदा प्रधानमंत्री श्रीयुत नरेन्द्र भाई मोदी जी ठीक कर सकते थे, अर्थात् क्या वे फिर से ‘अखण्ड भारत’ की भावना के तहत पाकिस्तान का भारत में संविलियन कर सकते है? और वे ऐसा करने में सफल हो जाते हैै तो भारतीय इतिहास में उनकेे नाम की चमक नेहरू-गांधी से भी अधिक प्रभावी होगी और मौजूदा राजनीतिक हालातों में जबकि हमारे प्रधानमंत्री को पूरा विश्व सम्मान और करिश्माई व्यक्तित्व के रूप में देखा रहा है, तब इस दिशा में भारात द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दिशा में भी प्रयास किये जा सकते है, किंतु दुर्भाग्य यह है कि विभाजन के तत्कालिक कारणों की बहस में ही आज की राजनीति उलझी हुई है, तो फिर इससे आगे कौन सौचे? ....और निश्चित रूप से यदि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ विभाजन की विभीषिका को कोसने के बजाए, गांधी-नेहरू की उस गलती को ठीक करने की दिशा में सक्रिय होकर पूरी तरह इस अभियान में जुट जाए तो फिर इस पुरातन भूल को आज भी सुधारा जा सकता है और मौजूदा भारत के भाग्य विधाताओं को वर्तमान इतिहास के ‘‘चमकते सितारे’’ बनाया जा सकता है, क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री जी स्वयं किसी भी कार्य को असंभव नहीं मानते...।
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