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समुद्र बिना जीवन संभव नहीं, पर इनकी सुरक्षाकी चिंता कहां?

8 जून को विश्व महासागर दिवस

पृथ्वी के 71प्रतिशत भाग पर जल ही जल है। मीठे पानी के नदी, झील व अन्य जलाशय हैं, तो खारे जल के अथाह समुद्र हैं, बड़े -बड़े महासागर हैं। यही कारण है कि धरती को नीला ग्रह की संज्ञा से संज्ञायित किया जाता है। महासागर हमारी पृथ्वी पर न सिर्फ जीवन का प्रतीक है, अपितु पर्यावरण संतुलन में भी प्रमुख भूमिका निभाता है। पृथ्वी पर जीवन का आरंभ महासागरों से माना जाता है। महासागरीय जल में ही पहली बार जीवन का अंकुर फूटा था। आज महासागर असीम जैव विविधता का भंडार है। हमारी पृथ्वी का लगभग 70 प्रतिशत भाग महासागरों से घिरा है। महासागरों में पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का लगभग 97 प्रतिशत जल समाया हुआ है। महासागरों की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि पृथ्वी के सभी महासागरों को एक विशाल महासागर मान लिया जाए तो उसकी तुलना में पृथ्वी के सभी महाद्वीप एक छोटे द्वीप से प्रतीत होंगे। मुख्यत: पृथ्वी पर पाँच महासागर हैं – प्रशांत महासागर, हिन्द महासागर, अटलांटिक महासागर, उत्तरी ध्रुव महासागर और दक्षिणी ध्रुव महासागर। महासागरों का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्त्व मानव के लिए इन्हें अति महत्त्वपूर्ण बनाता है।

अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। महासागरों में पृथ्वी का सबसे विशालकाय जीव व्हेल से लेकर सूक्ष्म जीव भी मिलते हैं। एक अनुमान के अनुसार केवल महासागर के अंदर करीब दस लाख प्रजातियां उपस्थित हो सकती हैं। जैव विविधता से संपन्न होने के साथ ही महासागर धरती के मौसम को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। समुद्री जल की लवणता और विशिष्ट ऊष्माधारिता का गुण पृथ्वी के मौसम को प्रभावित करता है। पृथ्वी की समस्त ऊष्मा में जल की ऊष्मा का विशेष महत्त्व है। जितनी ऊष्मा एक ग्राम जल के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि करती है, उससे एक ग्राम लोहे का तापमान दस डिग्री बढ़ाया जा सकता है। अधिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण समुद्री जल दिन में सूर्य की ऊर्जा का बहुत बड़ा भाग अपने में समा लेता है। इस प्रकार अधिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण समुद्र ऊष्मा का भण्डारक बन जाता है, जिसके कारण विश्व भर में मौसम संतुलित बना रहता है, अर्थात जीवन के लिए औसत तापमान बना रहता है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि महासागरों का धरती की सतह पर ऊष्मा के चक्र का संतुलन बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका है। धरती से मानवजनित और अन्य वस्तुओं से उत्सर्जित होने वाली ऊष्मा वायुमंडल में पहुंचने के बाद वायुमंडल भी गर्म होना शुरू हो जाता है, लेकिन भारी मात्रा में ऊष्मा को महासागर अपने अंदर समेत लेता है। जिससे वायुमंडल और धरती पर ऊष्मा के दबाव में कमी आ जाती है। पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ महासागर अपने अंदर व आस-पास अनेक छोटे-छोटे नाज़ुक पारितंत्रो को पनाह देते हैं, जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव व वनस्पतियाँ पनपती हैं। पृथ्वी की असीम जैव-विविधता का एक प्रमुख कारण यह है कि महासागर में अनेक प्रकार की जलवायु मौजूद है, और जलवायु के निर्धारण में महासागरों के महत्त्वपूर्ण योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।

मनुष्य के दैनन्दिनी जीवन अर्थात रोजमर्रा की जिंदगी में महासागरों की प्रमुख भूमिका है। महासागर जीवमंडल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। महासागर हमारे ग्रह के फेफड़े हैं। जीवमंडल का महत्वपूर्ण भाग महासागर भोजन व औषधियों का प्रमुख स्त्रोत भी है। महासागर धरती के पर्यावरण की कई अहम प्रक्रियाओं और पारिस्थितिकी तंत्रों को संतुलित रखने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लेकिन वर्तमान में मानवीय क्रिया- कलापों के कारण पृथ्वी की भांति ही महासागरों पर भी जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडराने लगा है। इसलिए महासागरों का संरक्षण बहुत जरूरी है। इनकी सुरक्षा आवश्यक है। और महासागरों को इन खतरों से बचाने के लिए सख्त कदम उठाये जाने की भी नितांत आवश्यकता है।

इसीलिए मानव जीवन में महासागरों की महत्वपूर्ण भूमिका को चिह्नित करने और इनके संरक्षण के लिए संसार भर के लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से सम्पूर्ण विश्व में प्रतिवर्ष आठ जून को विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है। विश्व महासागर दिवस मनाने का उद्देश्य विश्व में महासागरों के महत्त्व और उनके कारण भविष्य में आने वाली चुनौतियों के बारे में विश्व में जागरूकता पैदा करना है। साथ ही महासागर से जुड़े पहलूओं, जैसे- खाद्य सुरक्षा, जैव-विविधता, पारिस्थितिक संतुलन, सामुद्रिक संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग, जलवायु परिवर्तन आदि पर प्रकाश डालना है। प्रति वर्ष विश्व महासागर दिवस पर पूरे विश्व में महासागर से जुड़े विषयों में विभिन्न प्रकार के आयोजन किए जाते हैं, जो महासागर के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के प्रति जागरूकता पैदा करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

विश्व महासागर दिवस का प्रस्ताव पहली बार 8 जून 1992 को रियो डी जनेरियो में ग्लोबल फोरम में रखा गया था। और इस दिवस की शुरुआत वर्ष 1992 में ही की गई थी। लेकिन महासागरों पर मानवीय कार्यों के प्रभाव को लेकर लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से 2008 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा आधिकारिक मान्यता प्रदान किए जाने के बाद वर्ष 2009 से आठ जून को प्रतिवर्ष विश्व महासागर दिवस मनाया जाने लगा है। ताकि महासागरों के स्थायी प्रबंधन के लिए एक परियोजना पर संसार के लोगों को एकजुट करने के लिए नागरिकों के एक विश्वव्यापी आंदोलन को विकसित किया जा सके।

वर्ष 2009 में पहली बार विश्व महासागर दिवस -हमारे महासागर, हमारी जिम्मेदारी- थीम के साथ मनाया गया। तब से ही द ओशन प्रोजेक्ट तथा वर्ल्ड ओशन नेटवर्क की मदद से संसार भर में प्रतिवर्ष 8 जून को विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है। इसके लिए प्रतिवर्ष एक थीम अर्थात विषय निर्धारित किया जाता है। विश्व महासागर दिवस 2023 के लिए विषय अर्थात थीम रखा गया है – ग्रह महासागर- ज्वार बदल रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि महासागर हमारा जीवन स्रोत है, जो मानवता और पृथ्वी पर हर दूसरे जीव के पोषण का समर्थन करता है। महासागर हमारे इस ग्रह के कम से कम 50% ऑक्सीजन का उत्पादन करता है। यह पृथ्वी की अधिकांश जैव विविधता का आवास है। और दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोगों के लिए प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। महासागर हमारी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। ऐसा अनुमान है कि 2030 तक 40 मिलियन लोगों को महासागर आधारित उद्योगों द्वारा नियोजित किया जा सकेगा। इसके बावजूद महासागर को अब सहारे की आवश्यकता आन पड़ीं है, क्योंकि पहले की अपेक्षा आज 90% बड़ी मछलियों की आबादी कम हो गई है, और 50% प्रवाल भित्तियाँ नष्ट हो गई हैं। मौसम के संतुलन में समुद्री जल की लवणता जीवन के लिए एक वरदान है। पृथ्वी पर जलवायु के बदलने की घटना और समुद्री जल का खारापन आपस में अन्तःसंबंधित हैं। ठंडा जल, गर्म जल की तुलना में अधिक घनत्व वाला होता है। समुद्र में किसी स्थान पर सूर्य के ताप के कारण जल के वाष्पित होने से उस क्षेत्र के जल के तापमान में परिवर्तन होने के साथ वहां के समुद्री जल की लवणता और आसपास के क्षेत्र की लवणता में अंतर उत्पन्न हो जाता है, जिसके कारण गर्म जल की धाराएं ठंडे क्षेत्रों की ओर चल देती हैं और ठंडा जल उष्ण और कम उष्ण प्रदेशों में आता है।

समुद्र में ये धाराएं केवल समुद्र का जल खारा होने के कारण उत्पन्न होती हैं, मीठे जल में यह सम्भव नहीं। इसलिए महासागर के साथ एक नया संतुलन बनाने के लिए एक साथ काम करने की सख्त आवश्यकता है। इसकी जीवंतता को बहाल करने के लिए इसे नया जीवन देना ही होगा। समुद्र के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए सबको मिलकर काम करना ही होगा। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र नीति निर्माताओं, स्वदेशी नेताओं, वैज्ञानिकों, निजी क्षेत्र के अधिकारियों, नागरिक समाज, मशहूर हस्तियों और युवा कार्यकर्ताओं को समुद्र की रक्षा के लिए सामने आना ही होगा।

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By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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