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ब्लू स्टारः कालजयी घाव!

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ब्लू स्टारः कालजयी घाव!
Blue Star Operation Indira Gandhi : तीन जून से सात जून 1984 का ब्लू स्टार ऑपरेशन आजाद भारत का वह घाव है, जिसकी समाज रिश्तों की दरार कभी नहीं भरेगी। अयोध्या और हिंदू-मुस्लिम का मामला इतिहासजन्य है लेकिन हिंदू बनाम सिख का भेद बनवाने वाला विभाजक माइलस्टोन, टर्निंग प्वाइंट अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुआ सेना का ब्लू स्टार ऑपरेशन है। इस घटना के पीछे-आगे की पचास-सौ साल की बैकग्राउंड अपनी जगह है लेकिन रिश्तों में अखिल-भारतीय, वैश्विक खटास का घाव ब्लू स्टार ऑपरेशन है। मैं हिंदू-सिख दोनों को सनातन धर्म की ब्रांच मानता हूं। मैंने वे हिंदू परिवार (हां, भारद्वाज, गोयल परिवारों में भी) देखें हैं, जिनमें बड़े बेटे को केश-कड़ा धारण करवा कर सिख बनाया जाता था। मंदिर और गुरूद्वारा दोनों जगह सिख और हिंदू समभाव पूजा करते थे। सनातन धर्म के भीतर समाज सुधार, विधर्मियों से रक्षा के लिए गुरू नानक ने जीवन जीने की सिख पद्धति बनाई। तभी हिंदू परिवारों में सबसे बड़ा बेटा (पहला बेटा शक्ति-श्रेष्ठता का पर्याय था। उसी को पगड़ी, गद्दी ट्रांसफर का रिवाज था) सिख बनता था।

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blue star इस सत्य के अर्थ गहरे थे। उतनी ही गहराई हिंदू-सिख के साझे, दो शरीर एक प्राण, एक सनातनी जीवन में थी। लेकिन 19वीं सदी के मध्य में पहले आर्यसमाज और अकाली ने भेद बनाना शुरू किया और आजादी के बाद राजनीति ने वह सब किया, जिससे भाषा के आधार पर प्रदेश बांटने की ऐसी गलती हुई कि हरियाणा ने हिंदी के बाद खुन्नस में दूसरी भाषा पंजाबी नहीं, बल्कि तमिल बनाई थी, जिसे बाद में सुधारा गया। मतलब टुच्चे-छोटे झगड़ों से सिख बनाम हिंदू का भेद बनवाया गया। जनसंघ, इंदिरा कांग्रेस सबने हरियाणा, हिमाचल के हिंदुओं-हिंदी की वोट ताकत में दुराव बनवाया तो अकालियों को भी मौका दिया कि वे अपने हिसाब से सिख राजनीति सुलगाएं। छोटी-छोटी चिंगारियों से समाज, देश को और खुद नेता को कैसी कीमत चुकानी पड़ती है उसकी आजाद भारत की दो मिसाल गजब है। इंदिरा गांधी ने सिख और राजीव गांधी ने श्रीलंका में तमिल ईलम की उग्र राजनीति की सवारी की और अंत में दोनों इसी से मारे गए। ब्लू स्टार ऑपरेशन में सेना को स्वर्ण मंदिर में भेजना और श्रीलंका में भारतीय शांति सेना तैनात करने के दोनों फैसले प्रधानमंत्री स्तर की विवेकहीनता, दिल्ली के रायसीना सचिवालयों में बैठे हिंदू नेताओं, अफसरों का वह दिवालियापन था, जिसमें फैसले तात्कालिकता, याकि आज की सत्ता, चुनाव-वोट के टुच्चे स्वार्थों में हुए। प्रधानमंत्री ने ध्यान नहीं रखा कि लम्हों की खता से कौम को सदियों नतीजे भुगतने होंगे। सन् 1984, और सन् 1987 के सेना के फैसले से पहले भिंडरावाले और प्रभाकरण दोनों को भारत के प्रधानमंत्रियों ने चुपचाप शेर बनाया और फिर वे ही जानलेवा भस्सासुर साबित हुए।

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बहरहाल, ब्लू स्टार ऑपरेशन पर लौटें। सवाल है स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन और उससे पहले की आंतकी घटनाओं व बाद में इंदिरा गांधी की हत्या और फिर दिल्ली में सिखों के मारे जाने के घटनाक्रम का कुल निचोड़ क्या है? तो जवाब नोट रखें कि भारत का सबसे बहादुर समुदाय दिल-दिमाग के कोने में अब वह मनोविज्ञान पाले हुए है, जो वैश्विक तौर पर एक सा है। मतलब ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में बसा सिख हो या पंजाब और देश में रह रहे सिख हों, हिंदू-सिख परिवारों में अब पगड़ी की पहले वाली अदला-बदली नहीं है। हिंदू परिवार में बड़े बेटे को सिख बनाना लगभग खत्म है तो हालिया किसान आंदोलन को लेकर जैसा प्रायोजित खालिस्तानी हल्ला हुआ है और दुनिया भर के सिखों में जो प्रतिक्रिया दिखी वह फिर घावों की गहराई बतला गई। पता नहीं इसका बीस, पच्चीस, पचास साल बाद क्या रूप बने लेकिन वक्त खराब होने पर कुछ भी होने का आधार पक्का है। दिल-दिमाग में पकता जहर राष्ट्र को जब भी चपेटे में लेगा तो नतीजे भयावह होंगे। Emergency Indira Gandhi in 1975 ब्लू स्टार क्या था? आधी बुद्धि के भिंडरावाले और आधी बुद्धि की भारत सत्ता का मूर्खतापूर्ण सशस्त्र संग्राम। जैसे नरेंद्र मोदी और अमित शाह इन दिनों देश के भीतर पानीपत की लड़ाई की तैयारियों में दिन-रात लगे हुए हैं वैसे ही एक वक्त सत्ता गंवाने के भय, हिंदू वोटों की राजनीति और क्षत्रपों की छीना-झपटी में इंदिरा गांधी ने विवेक गंवा कर पंजाब में वह राजनीति की, जिसके परिणाम में इंदिरा गाधी ने कतई नहीं सोचा था कि भविष्य में उन्हें स्वर्ण मंदिर में सेना भेजनी पड़ेगी। सिख रक्षकों के हाथों हत्या होगी। प्रतिक्रिया में फिर दिल्ली में नरसंहार व सिख मनोदशा हमेशा के लिए घायल। घाव की पृष्ठभूमि के सिलसिले, घटनाओं और बारीकियों को एक कॉलम में लिखना नामुमकिन है। मैं उन दिनों ‘जनसत्ता’ का न्यूज सेटअप संभालते हुए और प्रभाषजी की पंजाब से रागात्मकता में वहां के हालातों, ज्ञानी जैल सिंह बनाम दरबारा सिंह की कानाफूसी, बार-बार पंजाब जा कर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों से खोजखबर लिए हुए था। तथ्य है कि 1984 के वक्त ‘जनसत्ता’ अकालियों, सिख नेताओं और जनता के बीच जितना लोकप्रिय था उतना कोई दूसरा अखबार नहीं था। मेरे ‘गपशप’ कॉलम में ज्ञानीजी, इंदिरा दरबार में सिख नेताओं की राजनीति पर बहुत छपा करता था। जब ब्लू स्टार ऑपरेशन हो गया तो में उन पत्रकारों में था, जिन्हें सूचना मंत्री एचकेएल भगत ने सात या आठ जून को विशेष उड़ान से अमृतसर ले जा कर सैनिक ऑपरेशन से क्षतिग्रस्त अकाल तख्त और स्वर्ण मंदिर परिसर दिखलाया था। वहां दिन भर रहे और शाम को लौट आंखों देखी रिपोर्टिंग की थी।

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अपने लिए पहेली है कि इंदिरा गांधी की जन्मकुंडली में जून में ही क्यों इमरजेंसी की घोषणा थी और जून में ही क्यों ब्लू स्टार ऑपरेशन? इससे भी बड़ी पहेली कि गुब्बारे जैसे विपक्ष के खिलाफ उन्होंने इमरजेंसी जैसे ब्रह्मास्त्र के उपयोग की कैसी समझ दिखाई तो भिंडरावाले का खात्मा करने के लिए भारतीय सेना का उपयोग क्यों किया? सेना और सैनिक ऑपरेशन का स्वाभाविक मतलब युद्ध स्तरीय लड़ाई और ध्वंस-बरबादी। इंदिरा गांधी के सामने अर्धसैनिक बल-बीएसएफ या खुफिया एजेंसी और रॉ प्रमुख रामनाथ काव के सुझाए कमांडो ऑपरेशन का भी विकल्प था। जनवरी 1984 में रॉ ने इसकी योजना बनाई थी। बाकायदा यूपी की एयरफोर्स छावनी में कमांडों प्रैक्टिस की गपशप थी। रिटायर जनरल एसके सिन्हा का कयास था कि ऑपरेशन पर डेढ़ साल पहले विचार चालू था। पर इतनी लंबी तैयारी के साथ ऑपरेशन होने की बात इसलिए तुक वाली नहीं है क्योंकि जितने सैनिक और लोग मरे और अकाल तख्त आदि इमारतों को जो नुकसान हुआ उससे वह अचानक की तैयारी वाला ऑपरेशन समझ आया। संभव है प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से सेना प्रमुख जनरल वैद्या को तैयारी के अग्रिम निर्देश थे लेकिन तीन जून को पूरे पंजाब में कर्फ्यू और सैनिक ऑपरेशन की शुरुआत की दिखी आपाधापी से फैसला वैसे ही हुआ लगता है जैसे इमरजेंसी से पहले था। swarn mandir मतलब रामनाथ काव और रॉ पर इंदिरा गांधी का अंधविश्वास व सोवियत संघ की मैत्री में केजीबी की खुफिया रपटों से गुमराह होना। आम चर्चा थी कि भिंडरावाले के खास लोग गुपचुप कई बार पाकिस्तान गए। आंतकवाद के कारण ब्रिटेन भी नजर रखे हुए था। उससे भी रॉ को आतंकियों और पाकिस्तान की मिलीभगत की खबर मिली होगी। सो, केजीबी-ब्रितानी एजेंसी सबने रॉ के जरिए इंदिरा गांधी के दिल-दिमाग में वह डर बैठाया, ऐसा पैरानॉयड बनाया कि तुरंत सैनिक कार्रवाई हो। आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पर नरसिंह राव की लड़ाकूओं से एक जून को बातचीत फेल होने के बाद इंदिरा गांधी के इनर सर्कल में राजीव गांधी, उनके साथी अरूण सिंह, अरूण नेहरू, और रामनाथ काव व प्रणब मुखर्जी वे चेहरे थे, जिनकी सलाह फैसले में रही होगी। मुझे तारीख ध्यान नहीं है लेकिन दिल्ली में फैसले के दिन सिरी फोर्ट में कांग्रेस अधिवेशन था। उसे कवर करते हुए सीनियर पत्रकार सुभाष किरपेकर के साथ मैं भी मंच के पीछे के कक्ष में टोह लेते हुए था कि क्या हो रहा है? प्रणब मुखर्जी, आरके धवन, इंदिरा गांधी ज्यादा ही आ-जा रहे थे। बाद में देर शाम को पंजाब की खबर आई तो हलचल का कारण समझ आया। खुफिया खबरों और अफवाहों की पुष्टि नहीं हुआ करती है। इसलिए इन बातों का अर्थ क्या निकालें कि उस रात भिडंरावाले अकाल तख्त से स्वतंत्र खालिस्तान की घोषणा करने वाला था। उसे पाकिस्तान से तुंरत मान्यता देने की अंतररराष्ट्रीय साजिश थी (इसके प्रमाण सोवियत नेताओं, केजीबी ने इंदिरा गांधी के दिए बताते हैं)। मैं इन बातों को इसलिए फालतू मानता हूं क्योंकि भिंडरावाले और उसके आंतकी भारत ने भीतर से पैदा किए थे। भस्सासुर खुद भारत ने बनाया था। हमने खुद अंदरूनी लड़ाई को पानीपत की लड़ाई वाली शक्ल दे कर कुछ सौ आधी बुद्धि के कच्चे खाड़कूओं को विदेशी साजिश में रंग कर करोड़ों लोगों की भावनाओं से खेला। कसूरवार सिर्फ भारत की नेतृत्व बुद्धि थी। भारत के शासक तब भी और आज भी खुद अपने हाथों अपने लिए, देश के लिए भस्मासुर पैदा करते हैं। तभी तो भारत का खंड-खंड रहना इतिहास का सत्य है। इसलिए ब्लू स्टार के घाव कभी नहीं भरेंगे। जान लें तथ्य कि कनाडा सहित कई देशों के कई गुरूद्वारों में खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लिखे हुए हैं और भिंडरावाले का फोटो  संतजी के संबोधन के साथ टंगा हुआ है। इसलिए कल मैं भिंडरावाले की पहेली के साथ आजाद भारत के सत्य को समझने की कोशिश करूंगा। (जारी) Blue Star Operation Indira Gandhi Blue Star Operation Indira Gandhi Blue Star Operation Indira Gandhi 
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