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एक कारोबारी कितने देशों में बदनाम

Adani businessImage Source: ANI

Adani business: भारत के कारोबारी आमतौर पर दुनिया के दूसरे देशों में कारोबार करने नहीं जाते हैं। उनको पता है कि भारत जैसा क्रोनी कैपिटलिज्म दुनिया के ज्यादातर देशों में नहीं है।

वहां सरकार से उस तरह का लाभ नहीं मिल सकता है, जैसा भारत में मिलता है। दूसरे, भारत की कंपनियां किसी भी कारोबार में प्रतिस्पर्धा से बचती हैं।

उनको सरकारी ठेके, पट्टे का काम करने में ज्यादा फायदा दिखता है क्योंकि भारतीय नागरिक ऐसी बेचारी गाय हैं, जिनका दोहन सरकारें भी करती हैं और सरकारों के क्रोनी भी करते हैं।

दुनिया के दूसरे सभ्य और लोकतांत्रिक देशों में उपभोक्ता सचमुच किंग होते हैं और कंपनियों को उनका ध्यान रखना होता है। बहरहाल, भारतीय कारोबारियों की इस लीक को छोड़ कर गौतम अडानी ने दुनिया के दूसरे देशों में कारोबार फैलाने का प्रयास किया।

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मोदी ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति पर दबाव डाला

अडानी के विदेशी वेंचर्स को लेकर कई किस्म के सवाल उठे। यह आरोप भी लगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीधे तौर पर दुनिया के कई देशों अडानी को कारोबार स्थापित करने में मदद की।

श्रीलंका में तो एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति पर दबाव डाला एक बिजली परियोजना अडानी समूह को देने के लिए। बहरहाल, श्रीलंका में अडानी समूह का कारोबार विवादों में फंसा।

एक दूसरे पड़ोसी म्यांमार में अडानी के प्रोजेक्ट को लेकर सवाल उठा कि उनकी कंपनी वहां के मिलिट्री जुंटा यानी सैन्य तानाशाही से जुड़े लोगों के साथ मिल कर कारोबार कर रही है।

अडानी की कंपनी को ऑस्ट्रेलिया में कोयला खदान मिला तो वहां के अनेक गैर सरकारी संगठन इसके विरोध में सड़क पर उतरे और इस वजह से प्रोजेक्ट को कर्ज मिलना मुश्किल हुआ था।

केन्या में बिजली और एयरपोर्ट सेक्टर अडानी के प्रोजेक्ट को लेकर काफी समय से विवाद चल रहा था और अंततः वहां की सरकार दोनों प्रोजेक्ट रद्द कर दिए।

अब अमेरिका में लोगों से फ्रॉड करने और भारत में घूस देने के मामले में कंपनी फंसी है। सोचें, भारत में तो अडानी समूह की परियोजनाओं को लेकर विवाद चल ही रहे हैं लेकिन भारत से बाहर कंपनी जहां भी गई वहां विवाद हुआ। श्रीलंका, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, केन्या और अमेरिका में कंपनी को लेकर विवाद चल रहे हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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