भारत में पिछले कुछ बरसों से परिवहन व्यवस्था पर अडानी समूह का एकाधिकार बन रहा है। देश के तमाम बंदरगाह और हवाईअड्डे अडानी समूह के नियंत्रण में जा रहे हैं। गुजरात के जिस मुंद्रा बंदरगाह पर करीब 21 हजार करोड़ रुपए की तीन हजार किलो हेरोइन बरामद हुई वह पहले से अडानी समूह के पास है। लेकिन उसके बाद आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम से लेकर केरल के विंजिम पोर्ट तक कई बंदरगाह अडानी समूह के नियंत्रण में चले गए हैं। श्रीलंका से लेकर म्यांमार तक दूसरे देशों में भी सरकारी संरक्षण के चलते अडानी समूह को बंदरगाह का काम मिला हुआ है। उत्तर को छोड़ कर बाकी तीनों दिशाओं में समुद्र के किनारे अडानी समूह का वर्चस्व है। इस तरह का एकाधिकार कारोबार के लिहाज से भी नुकसानदेह है तो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बहुत ही खतरनाक है। मुंद्रा पोर्ट पर नशीले पदार्थों की बड़ी खेप की बरामदगी से इस खतरे का एक छोटा सा संकेत मिला है, जिसे देश की सरकार को तत्काल समझना चाहिए। Adani Group monopoly transport
लेकिन अफसोस की बात है कि जानते बूझते देश की परिवहन व्यवस्था और लॉजिस्टिक्स के कारोबार पर एक कंपनी का एकाधिकार बनने दिया जा रहा है। बंदरगाह के अलावा अडानी समूह का नियंत्रण देश के हवाईअड्डों पर भी बढ़ रहा है। पिछले दिनों मुंबई हवाईअड्डा भी जीवीके समूह के हाथ से निकल कर अडानी समूह के हाथ में पहुंच गया। जीवीके समूह पिछले कुछ समय से मुंबई हवाईअड्डे में अपनी कुछ हिस्सेदारी बेचने का प्रयास कर रहा था, जबकि अडानी समूह पूरा हवाईअड्डे लेना चाहता था। इसी बीच रहस्यमय तरीके से जीवीके समूह के ऊपर केंद्रीय एजेंसियों ने छापेमारी की और समूह के मालिकों पर मुकदमे दर्ज हुए और उतने ही रहस्यमय तरीके से मालिकों ने मुंबई हवाईअड्डा अडानी समूह को बेच दिया। उसके बाद कंपनी के मालिकों पर हुए मुकदमों का क्या हुआ वह किसी को पता नहीं है।
केंद्र सरकार ने नीलामी के रास्ते पहले ही छह हवाईअड्डे अडानी समूह को दिए थे। पहले चरण की नीलामी में केंद्र सरकार ने अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ, गुवाहाटी, मेंगलुरू और तिरूवनंतपुरम के हवाईअड्डे अडानी समूह को दिए गए। समूह ने इन पर अपना नियंत्रण लेकर संचालन शुरू कर दिया है। सरकार ने 50 साल के लिए ये हवाईअड्डे अडानी समूह को दिए हैं। पिछले दिनों मेंगलुरू हवाईअड्डे का नाम बदल कर बाहर अडानी हवाईअड्डा रखने का स्थानीय स्तर पर काफी विरोध हुआ था और लोगों ने तोड़फोड़ भी थी। उससे पहले कंपनी ने मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज हवाईअड्डे के बाहर भी अडानी हवाईअड्डा का बोर्ड लगा दिया था, जिस पर शिवसैनिकों ने बड़ी तोड़फोड़ की थी। एयरपोर्ट की लीज दिए जाने के करार में कहीं भी हवाईअड्डे का नाम बदलने की इजाजत नहीं है। पर कंपनी इसका प्रयास करने से बाज नहीं आ रही है।
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बहरहाल, हवाईअड्डों के दूसरे चरण की नीलामी में केंद्र सरकार दो कदम और आगे बढ़ गई है। अब सरकार ने एक हवाईअड्डे के साथ दूसरा मुफ्त में देने का इरादा बनाया है। सरकार छह और एयरपोर्ट नीलाम करने जा रही है, जिसके साथ छह छोटे एयरपोर्ट मुफ्त में मैनेज करने के लिए दिए जाएंगे। दूसरे चरण में सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी का एयरपोर्ट भी नीलाम कर रही है। इसके अलावा इंदौर, रायपुर, भुवनेश्वर, अमृतसर और त्रिच्ची हवाईअड्डा नीलाम होगा। सरकार की योजना के मुताबिक वाराणसी के साथ कुशीनगर एयरपोर्ट मुफ्त मिलेगा। इसी तरह भुवनेश्वर के साथ तिरुपति और रायपुर के साथ औरंगाबाद हवाईअड्डा मिलेगा। त्रिच्ची के साथ हुबली और इंदौर के साथ जबलपुर की नीलामी होगी। अमृतसर के साथ कांगड़ा हवाईअड्डा दिया जाएगा। ये सारे हवाईअड्डे या तो बड़े राज्यों की राजधानी के हैं या तीर्थाटन व पर्यटन के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण हैं। अगर पुराने ट्रेंड के हिसाब से देखें तो ये सारे हवाईअड्डे एक ही कंपनी के हाथ में जा सकते हैं। परिवहन पर इस तरह का एकाधिकार कई खतरे पैदा कर सकता है।