Air pollution: भूल जाए कि भारत निकट भविष्य में विकसित देश बनेगा। लंबे समय तक भारत मध्य आय वाला देश रहेगा क्योंकि पूरी अर्थव्यवस्था उसी के चक्र में फंस गई है।
भारत में आम लोगों के जीवन की गुणवत्ता में कोई बदलाव नहीं आना है। आम लोगों का जीवन जैसे चल रहा है वैसे ही चलता रहेगा। नरेंद्र मोदी की सरकार रहे या किसी और की सरकार आ जाए, आगे किसी की हिम्मत नहीं होगी जो पांच किलो मुफ्त अनाज बांटने की योजना बंद कर दें।
यह भी भूल जाए कि दिल्ली शंघाई बनने जा रही है या काशी कभी क्योटो बनेगा। यह कोई निराशाजनक आकलन नहीं है, बल्कि वस्तुनिष्ठ आकलन है कि सब कुछ जैसा है वैसा ही रहना है।
देश के बुनियादी ढांचे में या आम आदमी के जीवन में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं आएगा।
also read: eggs Benefits: सर्दियों में अंडे खाने वाले सावधान, अंडे ही खा रहे है या…
सरकार बुनियादी चीजें तो ठीक करें (Air pollution)
इसलिए क्योंकि एक भी सरकार लोगों के जीवन स्तर में सुधार करने के काम नहीं कर रही है। तभी सवाल है कि अगर कोई बड़ा बदलाव नहीं कर सकते है तो सरकार कुछ बुनियादी चीजें तो ठीक कर दे!
शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था में बुनियादी सुधार ही कर दे क्योंकि बड़ा सुधार तो संभव नहीं है! विशेषज्ञता वाली न तो शिक्षा संभव है और न स्वास्थ्य सेवा।
लेकिन बुनियादी शिक्षा और बुनियादी स्वास्थ्य सेवा तो उपलब्ध कराई जा सकती है। भारत की भेड़ बकरियों को इतनी सुविधा तो दी जा सकती है कि वे ऑक्सीजन की कमी से तड़प कर न मरें या अस्पताल में बेड नहीं मिलने की वजह से अस्पताल की लॉबी में ऑटो के अंदर दम न तोड़ें या अस्पताल की पार्किंग में या सड़कों पर महिलाओं का प्रसव संपन्न हो या किसी को कंधे पर रख कर शव घर नहीं ले जाना पड़े।
केंद्र हो या राज्यों की सरकारें हों इतनी सुविधा तो दी ही जा सकती है कि बच्चों को जमीन पर बैठ कर या पेड़ के नीचे बैठ कर पढ़ाई नहीं करनी पड़े।
यमुना सफाई पर 10 हजार करोड़ रुपए खर्च
शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ साफ हवा और पीने के साफ पानी की समस्या देश की सबसे बड़ी समस्या है। 10 साल पहले 2014 में नमामि गंगे परियोजना शुरू हुई थी, जिसके तहत साढ़े चार सौ से ज्यादा परियोजनाएं चलीं और 38 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए लेकिन कहीं भी पानी पीने या आचमन करने की तो छोड़िए नहाने के लायक भी नहीं है।
इसी तरह यमुना की सफाई पर भी केंद्र सरकार और चार राज्यों की सरकारों ने मिल कर पिछले 10 साल में 10 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं। लेकिन यमुना के पानी और नाले के पानी में फर्क नहीं है।
देश भर में नल जल योजना चल रही है लेकिन उसके लिए जरूरी जलशोधन प्लांट नहीं लग पा रहे हैं, जिसका नतीजा है कि देश भर में हर जगह नल लग गए हैं, लेकिन उनमें पानी नहीं आता है।
आज भी गर्मियों में आधे देश में लोग पानी के लिए त्राहिमाम करते हैं। हवा की क्या स्थिति है यह इस आंकड़े से पता चलता है कि दुनिया के सबसे प्रदूषित 10 शहरों में हर साल छह से सात भारत के होते हैं।