अदानी समूह की मौजूदा सरकार से नजदीकी को लेकर कई मिसालें सामने आ रही हैं। राहुल गांधी ने कई सवाल उठाए, जिनकी जांच की जरूरत है। लेकिन कई आरोप तो ऐसे हैं, जो सरकार के अपने दस्तावेजों से सही प्रमाणित होते हैं। अदानी समूह को मिले छह हवाईअड्डों के मामले में सरकार के अपने विभागों ने आपत्ति जताई थी। बावजूद इसके इन्हें दरकिनार करके सारे हवाईअड्डे अदानी समूह को दिए गए। मुंबई हवाईअड्डा अदानी समूह को कैसे मिला उसकी क्रोनोलॉजी से भी संदेह पैदा होते हैं। इस मामले की यदि पारदर्शिता से जांच कराई जाए तो उसमें भी दूध का दूध और पानी का पानी होगा।
अदानी को दिए छह हवाईअड्डों पर विचार करें। इन पर उठे सवालों का जवाब देते समय लोकसभा में भाजपा के एक सांसद ने कहा कि कांग्रेस ने जीएमआर और जीवीके को दिल्ली और मुंबई के हवाईअड्डा दिए। लेकिन दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। 2018 में जब छह हवाईअड्डों- जयपुर, अहमदाबाद, गुवाहाटी, लखनऊ, मेंगलुरू और तिरूवनंतपुरम के निजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई तब टेंडर आमंत्रित करने की प्रक्रिया से ठीक पहले 10 दिसंबर 2018 को वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स यानी डीईए ने केंद्र सरकार की पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप एपरेजल कमेटी के पास एक नोट भेजा था। इसमें कहा गया था कि ये सभी छह हवाईअड्डे बहुत बिजी और ज्यादा कमाई वाले हैं। इसलिए किसी भी कंपनी को दो से ज्यादा हवाईअड्डे देना ठीक नहीं होगा। यानी डीईए का मानना था कि छह हवाईअड्डों का संचालन कम से कम तीन अलग अलग कंपनियों को दिया जाना चाहिए।
अपनी बात के समर्थन में डीईए ने दिल्ली और मुंबई हवाईअड्डे की मिसाल दी। उसने बताया था कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के कार्यकाल में इन दोनों हवाईअड्डों के टेंडर जीएमआर ने जीता था। लेकिन दोनों देश के सबसे बड़े, बिजी और सर्वाधिक राजस्व वाले हवाईअड्डे हैं इसलिए इन दोनों का संचालन एक कंपनी को नहीं दिया गया। बीड जीतने के बाद भी जीएमआर को सिर्फ दिल्ली हवाईअड्डा मिला। जबकि मुंबई का हवाईअड्डा जीवीके को दिया गया। यह बात वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने दिसंबर 2018 में केंद्र की कमेटी के आगे रखा था। लेकिन उसकी आपत्तियों और पूर्व उदाहरणों को दरकिनार करके सभी छह हवाईअड्डे अदानी समूह को देने का फैसला हुआ। इतना ही नहीं जीएमआर और जीवीके को दिल्ली, मुंबई का हवाईअड्डा 30 साल के लिए मिला था लेकिन अदानी समूह को छह हवाईअड्डे 50 साल की लीज पर दिए गए। इसी तरह हवाईअड्डे के संचालन का पूर्व अनुभव होने की शर्त भी इनके टेंडर में नहीं लगाई गई। बाद में और भी छूट दी गई, जिनमें एक छूट कोरोना के नाम पर टेकओवर की सीमा बढ़ा कर दी गई थी।
इसी तरह मुंबई का हवाईअड्डा अदानी समूह को मिलने की क्रोनोलॉजी भी दिलचस्प है। अदानी समूह मुंबई के छत्रपति शिवाजी हवाईअड्डा और नवी मुंबई में बनने वाले ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट को हासिल करने का प्रयास काफी समय से कर रहा था। दूसरी ओर उससे बचने के लिए जीवीके समूह जगह जगह से निवेश के जुगाड़ में लगा था। इसके लिए कंपनी ने इंडिया के सॉवरन फंड सहित कंपनी के निवेशकों के साथ अक्टूबर 2019 में एक नया करार किया था। उसका भी मकसद अपने एयरपोर्ट को अदानी से बचाना था। लेकिन अचानक ऐसा हुआ कि 27 जून 2020 में सीबीआई ने जीवीके समूह के प्रमोटर जीवीके रेड्डी और उनके बेटे संजय रेड्डी के ऊपर मुकदमा किया और छापेमारी की। उसके बाद सात जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने मुकदमा किया और रेड्डी पिता-पुत्र के ऊपर लगे कथित धन शोधन के मामले की जांच शुरू हुई। इसके अगले महीने 31 अगस्त को जीवीके समूह ने हवाईअड्डा अदानी समूह को सौंप दिया। सो, यह समझना कोई बड़ा रहस्योद्घाटन नहीं है कि कैसे अपने हवाईअड्डे को बचाने में लगे जीवीके समूह ने हवाईअड्डा अदानी समूह को सौंपा। उसके बाद पिछले करीब तीन साल में रेड्डी पिता-पुत्र के मुकदमों का क्या हुआ, यह किसी को पता नहीं है।