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केजरीवाल का भगवा साल

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केजरीवाल का भगवा साल
साल की शुरुआत अरविंद केजरीवाल की लगातार दूसरी बड़ी जीत से हुई। दिल्ली में जनवरी-फरवरी में विधानसभा के चुनाव हुए, जिसमें केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने पांच साल पहले वाली अपनी जीत दोहरा दी। दिल्ली की 70 में से 62 सीटों पर जीत मिली। पूरी ताकत लगा कर भी भाजपा अपनी सीटें तीन से बढ़ा कर आठ ही कर पाई और कांग्रेस पिछली बार की तरह शून्य पर रही। ( arvind-kejriwal) also read : शशि थरूर, ममता बनर्जी ने केंद्रीय बजट 2022-23 पर दी प्रतिक्रिया, कहा- आश्चर्यजनक रूप से निराशाजनक चुनाव नतीजे के बाद केजरीवाल ने जितनी तेजी से रंग बदला उसकी मिसाल मुश्किल है। दूसरी बार पूर्ण बहुमत से दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद केजरीवाल की दबी हुई पुरानी महत्वाकांक्षा फिर जग गई। परंतु इस बार उन्होंने भाजपा से लड़ने की नहीं, बल्कि भाजपा की तरह ही लड़ने की रणनीति अपनाई। उन्होंने तत्काल अपने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह हिंदुत्व के रंग में रंगना शुरू कर दिया। हनुमान मंदिर में दर्शन करने से लेकर हनुमान चालीसा के पाठ तक होने लगे। पार्टी के इक्का-दुक्का मुस्लिम विधायकों को किनारे कर दिया और आम आदमी पार्टी को कम से कम सैद्धांतिक तौर पर भगवा भाजपा की बी टीम बना दिया गया। केजरीवाल ने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा में इस तरह से रंग बदला है। उनको पता है कि अगर वे भाजपा विरोध की पारंपरिक राजनीति करते रहे तो उसमें उनके लिए स्पेस नहीं होगा क्योंकि उस स्पेस में कांग्रेस सहित सपा, बसपा, एनसीपी, तृणमूल, राजद, जेएमएम, डीएमके जैसी कई पार्टियां पहले से सक्रिय हैं। कांग्रेस की तरह राजनीति करके, कांग्रेस का वोट हथिया कर देश में कितनी पार्टियां फल-फूल गईं। लेकिन भाजपा की तरह हिंदुत्व की राजनीति करने वाली दूसरी पार्टी इस समय देश में नहीं है। भाजपा की तरह हिंदुत्व की राजनीति करने वाली पार्टी शिव सेना थी पर वह भी अब कांग्रेस-एनसीपी के साथ चली गई है। सो, भाजपा की राजनीति के लिए स्पेस खाली है। उनको पता है कि सारे हिंदुओं की अकेली पार्टी भाजपा नहीं हो सकती है। उसे तो 20-22 करोड़ वोट ही मिलते हैं। बाकी हिंदुओं के वोट नरम हिंदुत्व की राजनीति के जरिए हासिल किया जा सकता है। केजरीवाल को उम्मीद है कि यह राजनीति उनको पंजाब में सफलता दिला सकती है। तभी संशोधित नागरिकता कानून पर दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शनों से लेकर दिल्ली में हुए दंगों और जामिया यूनिवर्सिटी में छात्रों पर हुई कार्रवाई तक केजरीवाल ने या तो चुप्पी साधे रखी या वहीं लाइन पकड़ी जो भाजपा की रही है। वे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा से लेकर देश भर में यह मैसेज देना चाहते हैं कि वे भी भाजपा की तरह हैं। यानी हिंदुओं के बारे में सोचने वाले हैं, राष्ट्र के बारे में सोचने वाले हैं और मुस्लिमपरस्त नहीं हैं। याद करें वे पहले भी भारत माता की जय के नारे लगाते थे। अब वे फिर उसी रास्ते पर आ गए हैं। वैसे राष्ट्रीय राजनीति करने की उनकी महत्वाकांक्षा पहले भी रही है पर तब वे अति उत्साह में बनारस सीट पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने चले गए थे और पूरे देश में उम्मीदवार उतार दिए थे। अब वे फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं। दिल्ली के बाद पंजाब उनका लक्ष्य है, जहां डेढ़ साल बाद चुनाव हैं। किसान आंदोलन और इस वजह से भाजपा-अकाली दल का गठबंधन टूटने से उनको मौका मिला है। पंजाब का चुनाव उनकी महत्वाकांक्षा का अगला पड़ाव है और नरम हिंदुत्व व राष्ट्रवाद की राजनीति की परीक्षा भी है। अगर उसमें केजरीवाल सफल होते हैं तो इस राजनीति को वे पूरे देश में ले जाएंगे। ( arvind-kejriwal)
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