सवाल है कि देशभक्ति, हनुमान चालीसा, गद्दार को गोली मारना, शाहीन बाग, अनुच्छेद 370, तीन तलाक आदि क्यों दिल्ली में चुनाव का मुद्दा हैं? पूरी दिल्ली में भाजपा के जो होर्डिंग्स लगे हैं उनमें इन्हीं मुद्दों का जिक्र है। कहीं कहीं पानी, अनियमित कॉलोनियों को नियमित करने आदि का भी जिक्र है पर ज्यादा जगहों पर तीन तलाक, 370 और नागरिकता कानून का जिक्र है। नेताओं के भाषणों में तो आमतौर पर इन्हीं मुद्दों का जिक्र है। तभी सवाल है कि क्या बाकी सारे मुद्दे, एजेंडे फेल हो गए हैं?
दुनिया के कई जानकारों ने बहुत पहले कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहला प्रयास पाकिस्तान से दोस्ती करके कश्मीर और दूसरे मसले सुलझाने का था। इसके साथ ही आर्थिक एजेंडे के सहारे मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप, स्टैंड अप, डिजिटल इंडिया आदि बनाने का है पर अगर वे इसमें विफल हुए तो पूरे देश में हिंदू-मुस्लिम का नैरेटिव बनेगा और देश भर में गृह युद्ध के हालात बनेंगे। दिल्ली के चुनाव को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान के साथ शांति और देश के विकास के एजेंडे में कामयाबी नहीं मिली है और इसलिए अब हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे का ही सहारा है। दिल्ली में एक तरफ कामकाज और विकास का एक मॉडल है, जिसमें बिल्कुल निचले तबके के लोगों का जीवन बेहतर बनाने के लिए किए गए कुछ प्रयास हैं तो दूसरी ओर देशभक्त बनाम गद्दार का विमर्श है। इसकी सफलता और विफलता दोनों चिंता का कारण हैं। अगर यह फार्मूला सफल हो गया तो इसे दूसरी जगहों पर आजमाए जाने की संभावना बढ़ जाएगी। और अगर यह फार्मूला सफल नहीं हुआ तो ज्यादा खतरा है क्योंकि फिर इससे भी ज्यादा विभाजनकारी एजेंडा लाया जा सकता है। हालांकि इसमें उम्मीद की एक एक किरण यह है कि अगर यह एजेंडा अगर विफल होता है, जिसकी ज्यादा संभावना है तो ऐसा एजेंडा सफल होगा, जो बिल्कुल आम लोगों के जीवन को बेहतर बनाने वाला है। उसमें विकास के मान्य सिद्धांत नहीं हैं। उसमें सड़क, फ्लाईओवर, ऊंची इमारतें आदि बनाने का काम नहीं है, बल्कि मामूली लोगों के घरों में साफ व मुफ्त पानी, सस्ती और निर्बाध बिजली पहुंचाने का है, महिलाओं के लिए मुफ्त यातायात के बंदोबस्त का है, सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में अच्छी और बिल्कुल मुफ्त सेवा प्रदान करने का है। इन मुद्दों की सफलता अंततः दूसरी पार्टियों को मजबूर कर सकती है कि वे इस रास्ते पर चलें।क्या बाकी एजेंडे फेल हो गए?
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