
केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस के लॉकडाउन के दौरान आपदा को अवसर बनाते हुए आवश्यक वस्तु कानून में बदलाव कर दिया। अध्यादेश के जरिए यह बदलाव किया गया, जिसकी इस सत्र में संसद से मंजूरी ली जा रही है। जाहिर है कि सरकार को अति अनिवार्यता दिखी होगी तभी उसने अध्यादेश के जरिए यह कानून लागू किया। इसके बारे में प्रधानमंत्री से लेकर केंद्र सरकार के सभी मंत्रियों और भाजपा के नेताओं ने भाषण दिया है। उनका कहना है कि इससे किसानों को कहीं भी ले जाकर अपनी फसल बेचने की आजादी मिलेगी। इसके जरिए सारी सीमाएं टूट जाएंगी और किसान मुक्त हो जाएगा। हालांकि इसका फायदा कितने किसानों को होगा, यह नहीं कहा जा सकता है क्योंकि भारत में ज्यादातर छोटे किसान हैं और वे एक जिले से दूसरे जिले में या एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर सामान नहीं बेच सकते हैं।
पर हैरानी की बात यह है कि आवश्यक वस्तु कानून में बदलाव करने के तीन-चार महीने बाद ही 14 सितंबर को केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगा दी। सवाल है कि जब किसान अपनी फसल कहीं भी बेच सकता है तो फिर निर्यात पर पाबंदी की जरूरत क्यों पड़ी? इसी से जुड़ा दूसरा सवाल यह भी है कि क्या आवश्यक वस्तु कानून में बदलाव करके किसानों को मुक्ति देने के बाद भी सरकार चाहे तो घरेलू बाजार में भी उनकी फसल की बिक्री को नियंत्रित कर सकती है? अगर निर्यात और घरेलू बाजार दोनों में बिक्री को नियंत्रित किया जा सकता है तो फिर इस कानून में बदलाव की क्या जरूरत है?
बहरहाल, केंद्र सरकार ने 14 सितंबर को अचानक फैसला किया कि प्याज का निर्यात नहीं होगा। इस फैसले से अफरातफरी मची है। ऐसा नहीं है कि निर्यात रोक देने से घरेलू बाजार में प्याज की कीमतें कम हो गई हैं। महाराष्ट्र के लासलगांव के थोक बाजार में प्याज की कीमत 30 रुपए प्रति किलो पहुंच गई, जिसका नतीजा है कि दिल्ली सहित देश के ज्यादातर इलाकों में प्याज की खुदरा कीमत 60 रुपए किलो तक पहुंच गई। प्याज की कीमतों में इस साल जून से ही बढ़ोतरी हो रही थी और सबको अंदाजा था कि सितंबर में प्याज की कीमत ऊंचाई पर पहुंचेगी और अक्टूबर में उसमें कमी आएगी। एक रिपोर्ट के मुताबिक लासलगांव और नासिक दोनों की मंडियों में पिछले चार महीने में प्याज की थोक कीमतों में सौ फीसदी का इजाफा हुआ है।
सो, सवाल है कि जब यह बढ़ोतरी हो रही थी और अनुमान जताया जा रहा था कि कीमतें सितंबर में बहुत बढ़ी होंगी, साथ ही अगस्त में अनुमान या औसत से ज्यादा बारिश हो रही थी और लग रहा था कि फसल को नुकसान हो रहा है तभी सरकार ने इसके लिए बंदोबस्त क्यों नहीं किया? जब पिछले हफ्ते थोक मूल्य सूचकांक पर मुद्रास्फीति की दर बढ़ी हुई आई तो अचानक सरकार ने प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगा दी। पहले से बंदोबस्त नहीं करने का नतीजा यह हुआ है कि प्याज के किसानों के साथ साथ आम लोगों पर बड़ा बोझ पड़ा है। सरकार के अपने आंकड़ों के मुताबिक प्रति व्यक्ति औसत आय में भारी कमी आई है। लोगों की खरीद की क्षमता घटी है। ऐसे में प्याज का 60 रुपए और टमाटर का 80 रुपए पहुंचना आम लोगों की रसोई पर बड़ा असर डाल रहा है।
दूसरी ओर इससे प्याज के किसानों, निर्यातकों और पड़ोसी देशों को अलग समस्या हो रही है। इस सरकार ने अचानक फैसला करने और सबको चौंका देने के अंदाज में फैसला करने की अपनी परपंरा के चलते निर्यात पर पाबंदी का फैसला भी अचानक किया। इसकी वजह से बांग्लादेश की सीमा पर प्याज से भरे सैकड़े ट्रक खड़े हो गए। निर्यातकों और कारोबारियों को इसका बड़ा नुकसान हुआ है। तभी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फड़नवीस ने भी तत्काल निर्यात पर से पाबंदी हटाने को कहा तो एनसीपी के नेता शरद पवार ने भी यहीं मांग की। दूसरी ओर भारत के निर्यात रोकने से बांग्लादेश में अलग हाहाकार मचा हुआ है। वहां प्याज की कीमतें आसामान छू रही हैं। बांग्लादेश ने बिना किसी सूचना के अचानक निर्यात रोक देने पर नाराजगी जाहिर की है। लगता है कि सरकार ने बिना किसी से विचार किए और अचानक फैसला करने को अपनी राजकाज की पद्धति बना ली है।