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कांग्रेस के करिश्मे की उम्मीद खत्म

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कांग्रेस के करिश्मे की उम्मीद खत्म
देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पास भी ऐसे नेता नहीं हैं, जो सभी पार्टियों के साथ बात करके सरकार के खिलाफ किसी आंदोलन की रूप-रेखा बना सकें या कोई राजनीतिक मोर्चा खड़ा कर सकें। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं, जिनकी उम्र और सेहत दोनों ऐसी नहीं है कि वे भागदौड़ कर सकें। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी हैं और राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे। क्या ये दोनों चेहरे देख कर या इनकी बातें सुन कर लगता है कि अखिल भारतीय राजनीति में सुई की नोक बराबर बदलाव लाने का काम इनसे हो सकता है? कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल हैं, जिनको लेकर पार्टी के नेता सबसे ज्यादा आशंकित रहते हैं। संगठन महासचिव बनने से पहले उन्होंने कभी भी केरल से बाहर की राजनीति नहीं की थी। इने चेहरों की तुलना भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के चेहरों से करें तो फर्क साफ दिखेगा। Congress party political crisis Read also 24 में गैर-भाजपावाद? अभी कांग्रेस की वास्तविक कमान राहुल गांधी के हाथ में है लेकिन उससे कांग्रेस का क्या बन रहा है? मध्य प्रदेश के नेता कमलनाथ ने कहा है कि कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के समूह जी-23 के नेताओं की सभी बातें मान ली गई हैं और अब कांग्रेस में कोई असंतुष्ट नहीं है। सोचें, जी-23 नेताओं की बात मान लिए जाने का क्या मतलब है? उन्होंने चिट्ठी लिख कर कहा था कि कांग्रेस में अध्यक्ष सहित सभी पदों के लिए चुनाव होना चाहिए। उन्होंने कार्य समिति से लेकर चुनाव समिति तक हर जगह चुनाव की बात कही थी। उसके बाद उन्होंने सामूहिक और समावेशी नेतृत्व की बात कही थी। क्या ये दोनों बातें मान ली गई हैं? क्या अब हर पद के लिए चुनाव होगा और हर फैसला कार्य समिति के सभी सदस्यों की सहमति से होगा? ऐसा कांग्रेस में कतई नहीं होने वाला है। फिर सवाल है कि जी-23 की कौन सी बात मान ली गई? जाहिर है नेताओं की निजी मांगें मान ली गईं। उनको कहीं कहीं से राज्यसभा में भेजा जाएगा। Congress party political crisis Read also पवार, ममता और केजरीवाल की सीमाएं सोचें, इस तरह से दबाव बना कर अगर नेता अपनी बात मनवा रहे हैं तो ऐसे नेतृत्व से आगे क्या बनेगा? एक तरफ तो राहुल गांधी अपनी दबंग छवि बनाते हैं और केंद्र सरकार के खिलाफ जिस तरह उन्होंने स्टैंड लिया है उससे दबंग छवि बनती भी है लेकिन दूसरी ओर इस तरह के समझौते कर रहे हैं। कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या यहीं है कि उसके नेता यह मानने लगे हैं कि शीर्ष नेतृत्व का करिश्मा खत्म हो गया है। कांग्रेस के नेताओं को अब गांधी परिवार के करिश्मे में भरोसा नहीं रह गया है। इसलिए या तो वे दूसरी पार्टियों में अपने लिए संभावना तलाश रहे हैं या अगर दूसरी पार्टी में नहीं जा सकते हैं तो कांग्रेस में ही दबाव बना कर कुछ पद हासिल करने की राजनीति कर रहे हैं। इससे कांग्रेस पार्टी का भला नहीं होने वाला है। उलटे इससे असंतोष बढ़ेगा क्योंकि सबको उम्मीद होगी कि वे भी दबाव बना कर कुछ हासिल कर सकते हैं।
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