कांग्रेस पार्टी को एक तरफ संगठन का चुनाव कराना है, नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनना है तो दूसरी ओर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव भी लड़ने हैं। इन पांचों राज्यों के चुनाव कई कारणों से बहुत अहम हैं। बिहार चुनाव के बाद विपक्ष के पास भाजपा को रोकने और अच्छा प्रदर्शन करने का असली मौका इन चुनावों में हैं। अगले साल अप्रैल-मई में जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, वे विपक्ष के मजबूत असर वाले राज्य हैं। दूसरे, कांग्रेस हर राज्य में है पर कहीं भी ऐसी स्थिति में नहीं है कि अकेले लड़ कर भाजपा को टक्कर दे सके। उसे हर राज्य में गठबंधन की जरूरत है। तीसरे, इसके बाद अगले साल यानी 2022 में जो चुनाव हैं वो सब भाजपा के मजबूत असर वाले इलाकों में होने हैं। सो, अगर विपक्ष को खास कर कांग्रेस को भाजपा के सामने अपने पैरों पर खड़ा होना है, पार्टी संगठन की ताकत दिखानी है, नए अध्यक्ष की ताकत दिखानी है तो ये चुनाव उसके लिए सबसे बड़ा मौका हो सकते हैं।
पर मुश्किल यह है कि ऐन चुनाव से पहले अहमद पटेल का निधन हो गया है, जिनके भरोसे सोनिया गांधी चुनावों की रणनीति बना सकती थीं। तालमेल की बात करने से लेकर चुनाव लड़ने के लिए संसाधन जुटाने के लिए पार्टी पूरी तरह से उनके ऊपर निर्भर थी। अब कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा सवाल यहीं है कि चुनाव लड़ने के लिए संसाधनों की जरूरत कैसे पूरी होगी। ध्यान रहे कांग्रेस की स्थिति भाजपा जैसी नहीं है। भाजपा अपेक्षाकृत गरीब नेताओं की अमीर पार्टी है, जबकि कांग्रेस अमीर नेताओं की गरीब पार्टी है। कांग्रेस में नेताओं के पास पैसे हैं, पार्टी के पास नहीं है। पार्टी के लिए हमेशा संसाधन का जुगाड़ ही करना होता है। कांग्रेस के नेता अपने पैसे से अपना निजी चुनाव तो लड़ लेते हैं पर पार्टी के लिए उनका पर्स ढीला नहीं होता है। पिछले दो दशक से पार्टी के चुनाव लड़ने और राजनीति करने का संसाधन अकेले अहमद पटेल जुटाते रहे हैं। इस बार यह काम कौन करेगा और कैसे करेगा, यह यक्ष प्रश्न है। दूसरी ओर भाजपा ने अभी से चुनाव में सारे संसाधन झोंके हैं।
आगे राज्यों के चुनाव भी अहम
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