भारतीय जनता पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। उसका दावा है कि उसके कार्यकर्ताओं की संख्या 11 करोड़ है। लोकसभा में उसके 303 सांसद हैं और राज्यसभा सदस्यों की संख्या भी 90 से ऊपर हो गई है। देश भर में भाजपा के विधायकों की संख्या डेढ़ हजार के करीब है। इसके अलावा हजारों की संख्या में स्थानीय निकायों के चुने हुए प्रतिनिधि हैं। लेकिन क्या मानवता के इस सबसे बड़े संकट के समय कहीं ये नेता, कार्यकर्ता या जन प्रतिनिधि दिखाई दे रहे हैं? देश ने भाजपा के ज्यादातर नेताओं को पिछले करीब दो महीने तक चुनाव प्रचार करते देखा था। सबसे बड़ी रैलियां भाजपा के नेताओं ने की। प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री हजारों-लाखों की भीड़ जुटा कर रैलियां कर रहे थे और भीड़ देख कर गदगद हो रहे थे। पार्टी के तमाम छोटे-बड़े नेताओं की चुनाव वाले राज्यों में ड्यूटी लगी थी। सब रैली, जनसभा, नुक्कड़ सभा, रोड शो या पदयात्रा कर रहे थे। किसी छुटभैया नेता की फेसबुक और ट्विटर के पेज पर जाकर देखें तो प्रचार की सैकड़ों तस्वीरें मिल जाएंगी। लेकिन कहीं भी आम लोगों के लिए काम करते, कोरोना से लड़ाई में योगदान करते या लोगों की मदद करते भाजपा के नेता नहीं दिख रहे हैं।
हो सकता है कि कुछ नेता अपवाद हों और कहीं काम कर रहे हों पर इतनी बड़ी संगठित और अनुशासित पार्टी एक संगठन के तौर पर कोरोना वायरस से लड़ाई में शामिल नहीं है। अगर भाजपा के सांसद, विधायक या संगठन के नेता चाहते तो कोरोना पीड़ितों की सच में मदद कर सकते थे। भाजपा के अनेक नेता बड़े कारोबारी हैं, पैसे वाले हैं, साधन संपन्न हैं, उन्हें लोगों की मदद करने के लिए साधन जुटाने की जरूरत नहीं है। लेकिन अफसोस की बात है कि ऐसा कोई नेता आगे आकर लोगों की मदद करता नहीं दिख रहा है। उनके मुकाबले कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के अपेक्षाकृत साधनहीन नेता ज्यादा मदद कर रहे हैं। क्या संकट के समय अपनी खोल में दुबक जाना और अपनी जान बचाने को ही सबसे बड़ा धर्म मानना भी हिंदुत्व की राजनीतिक प्रयोगशाला में सिखाया गया है?
यूथ कांग्रेस के नेता श्रीनिवास बीवी को इस समय सारा देश काम करते देख रहा है। उन्होंने एक हजार से ज्यादा वालंटियर्स का नेटवर्क बनाया है और उनके जरिए मरीजों को बेड दिलाना, ऑक्सीजन पहुंचाना, जरूरी दवाओं के लिए अस्पताल के साथ कनेक्ट करना, प्लाज्मा दिलवाना जैसे अनेक ऐसे काम कर रहे हैं, जिसकी इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है। दिल्ली के आम आदमी पार्टी के विधायक दिलीप पांडेय यही काम दिल्ली में कर रहे हैं। उन्होंने अपना नंबर सार्वजनिक किया हुआ है कि लोग उन्हें सीधे मैसेज करें या ट्विटर पर उन्हें टैग करें और जहां तक संभव हो रहा है वे लोगों की मदद कर रहे हैं। तहसीन पूनावाला ने अपना फाउंडेशन बना कर अपनी पत्नी के साथ ऑक्सीजन सिलिंडर भरवाने और लोगों तक पहुंचाने का काम शुरू किया है। उनका फाउंडेशन लोगों को खाना भी खिला रहा है।
कोरोना का संक्रमण शुरू होने से पहले नागपुर के प्यारे खान का नाम देश के लोगों को तो छोड़िए नागपुर में लोगों का नहीं पता था। रेलवे स्टेशन पर संतरा बेचने से शुरू करके आज ट्रांसपोर्ट का बड़ा बिजनेस करने वाले प्यारे खान ने अपनी कमाई के 85 लाख रुपए खर्च करके शहर के अस्पतालों में चार सौ मीट्रिक टन ऑक्सीजन पहुंचाया। जब स्थानीय प्रशासन ने उन्हें पैसे देने का प्रयास किया तो उन्होंने कहा कि पवित्र रमजान के महीने में निकाली गई जकात की रकम है, जिसे वे खर्च कर रहे हैं।
उन्होंने सिर्फ पैसे खर्च नहीं किए, बल्कि अपने काम धंधे से समय निकाल कर बेल्लारी, राउरकेला, भिलाई जैसे शहरों से महंगी कीमत पर ऑक्सीजन टैंकर मंगा कर शहर के अस्पतालों में पहुंचाना शुरू किया। इसी तरह मुंबई के शाहनवाज शेख ने अपनी फोर्ड एंडेवर गाड़ी 22 लाख रुपए में बेच दी और उससे 160 सिलिंडर खरीदे, जिन्हें भरवा कर वे लोगों को उपलब्ध करा रहे हैं। पिछले साल ऑक्सीजन की कमी से उनकी पत्नी का निधन हुआ था और उसके बाद से ही वे यह काम कर रहे हैं। इस साल जब उनके पैसे खत्म हो गए थो उन्होंने गाड़ी बेच दी। इसी तरह पटना के गौरव राय हैं, जिन्हें ऑक्सीजन मैन कहा जा रहा है। हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट बनाने वाली कंपनी में काम करने वाले गौरव ने मिसाल कायम की है। उन्होंने अपने और अपने रिश्तेदारों, दोस्तों की मदद से इतने ऑक्सीजन सिलिंडर जुटाए हैं, जिनसे वे पटना और आसपास के हजारों लोगों की अब तक मदद कर चुके हैं। खुद कोरोना से जंग जीत चुके गौरव ने 80 बार से ज्यादा रक्तदान किया है और इस महामारी के बीच खुद सिलिंडर भरवाते हैं और किसी भी तरह से जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं।