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धर्म की अर्थव्यवस्था भी स्वाहा

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धर्म की अर्थव्यवस्था भी स्वाहा
देश के सबसे धनी मंदिर तिरूपति को लेकर पिछले दिनों खबर आई थी कि मंदिर प्रशासन के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे नहीं हैं। हालांकि यह अलग बात है कि मंदिर के पास 14 हजार करोड़ रुपए की एफडी है और कई टन सोना है पर जो नकदी थी वह खत्म हो गई और रोजोना का चढ़ावा बंद हो गया। सो, मंदिर के सामने पैसे का संकट है। यह देश के सबसे धनी मंदिर की कहानी है तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाकी मंदिरों की क्या स्थिति होगी? सोचें, यह माना जाता था कि चाहे जिस अर्थव्यवस्था में मंदी आ जाए पर धर्म की अर्थव्यवस्थ में कभी मंदी नहीं आ सकती है। वह हमेशा फलते-फूलते रहने वाली अर्थव्यवस्था है पर कोरोना वायरस की वजह से वहां भी मंदी आई है। धर्मस्थलों की अर्थव्यवस्था में आई मंदी भी ठीक वैसी ही है, जैसे अर्थव्यवस्था के बाकी हिस्सों में आई मंदी है। जिस तरह फैक्टरी बंद होने या कंपनी बंद होने से लोग बेरोजगार हुए हैं और उनका जीवन दूभर हुआ है उसी तरह धर्मस्थलों में मंदी आने से भी हुआ है। असल में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों से जुड़ी एक पूरी अर्थव्यवस्था चलती है, लाखों लोग इस पर निर्भर होते हैं। और ये ऐसे लोग होते हैं, जो समाज की सबसे निचली पंक्ति और उससे ठीक ऊपर वाली कतार के लोग होते हैं। यानी सबसे ज्यादा मुश्किल स्थितियों में जीने वाले लोग इस पर निर्भर होते हैं। पिछले करीब ढाई महीने से मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे आदि बंद हैं। सो, इनके सहारे चलने वाले तमाम कारोबार भी बंद हैं। मंदिर बंद है तो उसके सामने फूल, प्रसाद, अगरबत्ती बेचने वालों की दुकानें भी बंद हैं। मंदिरों के बाहर बंटने वाले प्रसाद और लोगों के दान के सहारे जीवन काटने वाले हजारों, लाखों भिखारी या विकलांग लोगों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। वे रोज के मंदिर के चढ़ावे पर जीवन चलाने वाले होते हैं। सो, ऐसा नहीं है कि मंदिर बंद है तो सिर्फ पुजारी या पंडे की कमाई स्वाहा हुई है। असली संकट उस पर पलने वाले छोटे छोटे दुकानदार, भिखारी और विकलांग लोगों का जीवन स्वाहा हुआ है। हजारों लोग मंदिरों में होने वाले भंडारे, चढ़ावे या दान पर जीते हैं। उनके जीवन का यह सहारा भी स्वाहा हो गया है। यहीं हाल गिरिजाघरों के सामने मोमबत्ती बेचने वालों का भी हुआ होगा। हर रविवार होने वाला मास बंद है तो उस पर पलने वाले हजारों लोगों का जीवन भी खतरे में हैं। गुरुद्वारों में चलने वाले लंगर से कितने लोगों का जीवन चलता है इसक अंदाजा लगाना मुश्किल है। दिल्ली जैसे महानगर में एक बड़ी आबादी, जिसमें रिक्शा चलाने वालों से लेकर भीख मांगने वाले और दिहाड़ी के मजदूर भी शामिल हैं, वे गुरुद्वारों के लंगर के भरोसे जीवन काटते हैं। उनके जीवन की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। भारत में पर्यटन के नाम पर लोग तीर्थाटन करते हैं। घूमने निकलने वाले लोगों में सबसे बड़ा हिस्सा धार्मिक जगहों पर जाने वालों का होता है और उनसे वहां की पूरी अर्थव्यवस्था चलती है। कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन का सबसे शिकार पर्यटन उद्योग है। पर्यटन उद्योग बंद है इसका मतलब है कि तीर्थटन बंद है। सब कुछ खोल देने के बाद भी यह सब जानते हैं कि लोग इतनी जल्दी घूमने के लिए नहीं निकलने वाले हैं। इसलिए यह अर्थव्यवस्था कब तक बैठी रहेगी, कहा नहीं जा सकता है।
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