बेबाक विचार

शी व टेड्रोस पर चले वैश्विक नरसंहार का मुकदमा!

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शी व टेड्रोस पर चले वैश्विक नरसंहार का मुकदमा!
भला क्यों? इसलिए कि चीन और डब्ल्यूएचओ के इन दो मालिकों की लापरवाहीव असलियत को छुपाने का परिणाम है मानवता की जान-माल में बरबादी। लाखों-करोड़ों लोग बीमार होंगे, मरेंगे और यदि महामारी दो-तीन साल चली तो जितने वायरस से लोग मरेंगे उससे ज्यादा शायद भूखमरी से मरें। तभी क्या ये दोनों एकाउंटेबल, नरसंहार के जवाबदेह नहीं बनते? जब दुनिया भूमंडलीकरण में विश्व संस्थाएं, विश्व अदालत लिए हुए हैं तो मानवता क्यों न जाने कि चीन ने, उसके राष्ट्रपति ने, विश्व स्वास्थ्य संगठन और उसके महानिदेशक ने वायरस को कितना लापरवाही में लिया? क्यों न इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में सुनवाई हो कर उससे दुनिया यह जाने किसूचना दबाकर मानवता के खिलाफ अपराध कितना जघन्य है?यदि कोई देश व वैश्विक संगठन जानबूझकर व लापरवाह व्यवहार में जान-माल की भयावह क्षति (crime of willful or negligent behavior against humanity) करता है तो मानवता के खिलाफ इस अपराध की क्या सजा होगी? तभी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सलाम जो उन्होंने दुनिया को बार-बार बताया कि यह वायरस चीन से आया हैऔर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन के एजेंट के रूप में काम किया।तभी वायरस पर दुनिया तब तक अज्ञान में रही जब तक आग पूरी दुनिया में फैल नहीं गई थी या फैला नहीं दी गई थी। अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ का पैसा बंद कर अच्छा काम किया है। हिसाब से इससे ज्यादा सही और जरूरी यह है कि अमेरिका, यूरोपीय देशों व विश्व समुदाय के तमाम देश विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ टेड्रोस ऐडनॉम घैब्रियेसस और उनकी उस कोर टीम को तुरंत बरखास्त करवाएं, जिसने जनवरी में चीन जा कर राष्ट्रपति शी जिनफिंग से मुलाकात करके उनके पीआरओ की तरह दुनिया के आगे कोरोना के जहर की हकीकत को दबाया। फालतू तर्क है कि संकट की इस घड़ी में डब्ल्यूएचओ को काम करने देना चाहिए औरडॉ टेड्रोस और उनके साथी डायरेक्टर तीसरी दुनिया- गरीब देशों, तमाम देशों को मदद, सहयोग देते हुए कोविड-19 से लड़ाई में तालमेल बना रहे हैं। यह पूरी तरह बेकार बात है। यह काम जिनेवा में संगठन का मुख्यालय और वहां की नौकरशाही बखूबी कर सकती है। यदिविश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ टेड्रोस और उनकी कोर टीम को बरखास्त नहीं किया गया और यहीं कर्ताधर्ता बने रहे तो दुनिया में महामारी और फैलेगी। कैसे? इसलिए कि डॉ टेड्रोस और उनकी टीम अभी भी वैसे ही काम कर रही है, जैसे जनवरी में कर रही थी। वह सरकारों को हड़का नहीं रही है, उनकी आलोचना नहीं कर रही है, देशों में लापरवाही होने दे रही है।चीन से सही मेडिकल सामान दुनिया के बाकी देशों में पहुंचे इसकी वह व्यवस्था, जिम्मेवारी, कोऑर्डिनेशन जैसा काम संगठन नहीं कर रहा है। महानिदेशक डॉ टेड्रोस रोज मीडिया के आगे आ कर भाषण करते हुए टेस्ट, टेस्ट करो का राग अलापते हैं लेकिन टेस्ट हो रहे हैं या नहीं, टेस्ट सही हो रहे हैं या नहीं इसको ले कर भीवे ईमानदारी-बेबाकी से दुनिया को जानकारी देने, देशों की जनता को सावधान करने का काम नहीं कर रहे हैं। सवाल है डब्ल्यूएचओ इंसान के लिए है या सरकारों के लिए? हकीकत है कि इथियोपिया के डॉ. टेड्रोस चीन की पैरोकारी से ही डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर-जनरल बने। ध्यान रहे अमेरिका के बाद इस संगठन को चीन सबसे ज्यादा पैसा देता है। अभी ट्रंप ने पैसा बंद किया तो चीन ने भरोसा दे दिया। डॉ. टैड्रोस ने चीन के अहसान में ही आठदिसंबरको कोरोना के पहले पुष्ट केस के बावजूद अज्ञानता बनाए रखी। विशेषज्ञों का मानना है कि दिसंबर आखिर में यदि डब्ल्यूएचओ अलार्म बना देता तो इतनीमौतें नहीं होती। पर डब्ल्यूएचओ ने नौजनवरी को भी चीन की वाहवाही की तो 20 जनवरी को इंसान से इंसान संक्रमण की चीन के सूचना देने व 20-21 जनवरी को वुहान में डब्ल्यूएचओ टीम की पड़ताल के टाइमपास पर ताइवान की आलोचना हुई तो डब्ल्यूएचओ ने उलटे नसीहत दी कि संवेदनशील मसले में कई बार खुला-बेबाक विचार जरूरी होता है। (hold frank and open discussions on sometimes sensitive issues) मतलब राष्ट्रपति शी और डॉ. टेड्रोस ने चाहे-अनचाहे साझा तौर वायरस को छुपाया, असलियत बताने में देरी की। लोगों को वुहान से उड़ने दे कर दुनिया में वायरस पहुंचने दिया और यहीं नहीं काफी दिनों तक वायरस स्ट्रेन की अहम जेनेटिक जानकारी भी चीन ने वैश्विक वैज्ञानिकों से शेयर नहीं की। (crucial genetic information about the virus strain) क्या यह सब मानवता के खिलाफ आपराधिक कृत्य नहीं है? जान लें इस सप्ताह अमेरिका, यूरोप में तथ्यों के हवाले यह और जाहिर हुआ है कि चीन ने छह दिनजानबूझकर देरी की। चीन व डब्ल्यूएचओ छह दिन पहले भी दुनिया को चेता देते व ईमानदारी-बेबाकी से कोरोना से मानव से मानव संक्रमण की बात जाहिर कर देते तो महामारी का वैश्विक फैलाव काफी रूक सकता था। वायरस से लड़ाई में कोर इश्यू, प्राथमिक जरूरत जानकारी व उस पर तुरंत एक्शन की है। राष्ट्रपति शी जिनफिंग और विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ टेड्रोस दोनों ने इस पहलू में आपराधिक गलती की। यह गलती जानबूझकर थी या किसी और कारण, इसे तभी जाना जा सकता है जब वैश्विक जांच आयोग या अंतरराष्ट्रीय अदालत में सुनवाई हो। और यह काम अमेरिका और यूरोपीय देशों को कराना चाहिए। भारत भी इस बहाने चीन को घेर सकता है। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भारत के एक न्यायमूर्ति भी हैं। मगर मोदी सरकार हिम्मत शायद ही जुटा पाए। अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में तमाम तथ्य रख उससे यह सलाहकारी राय ली जानी चाहिए कि राष्ट्रपति शी और विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस ने जो किया है वह मानवता के खिलाफ अपराध है या नहीं? उसके बाद सदस्य देश याकि चीन के खिलाफ बाकी देशों को न्यायिक प्रक्रिया शुरू करानी चाहिए।
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