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चीन से मुआवजा वसूलने की मांग

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चीन से मुआवजा वसूलने की मांग
ब्रिटेन के एक थिंकटैंक ने अपील की है कि जी-सात देशों को चीन के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहिए और उससे 3.2 खरब डॉलर का मुआवजा मांगना चाहिए। उधर अमेरिका में सांसद इस बात की मांग कर रहे हैं कि चीन से नुकसान की भरपाई की जाए, उससे पैसे वसूले जाएं। राष्ट्रपति ट्रंप को एक सुझाव यह दिया गया है कि कोरोना वायरस से मरने वाले हर अमेरिकी नागरिक के नाम पर दस लाख और संक्रमित होने वाले अमेरिकी के लिए एक लाख डॉलर का मुआवजा वसूला जाए। ट्रंप को यह भी सुझाव दिया गया है कि चीन के 1.2 खरब डॉलर के बिल का भुगतान अमेरिका नहीं करे। दुनिया के देश चीन को एक सभ्य देश मानने को तैयार नहीं हो रहे हैं। अमेरिकी अखबार यूएसए टुडे ने लिखा कि अगर चीन थोड़ा और ज्यादा सभ्य देश होता तो दुनिया में कोरोना वायरस से इतने लोगों की मौत नहीं होती। अगर वह एक बर्बर तानाशाह देश नहीं होता तो उसने इस संकट के बारे में खुद भी कुछ जरूरी कदम उठाए होते और दुनिया को भी आगाह किया होता और इससे चीन में या चीन के बाहर जान-माल का नुकसान कम होता। चीन का अपराध सिर्फ इतना नहीं है कि उसने वायरस के बारे में जानकारी छिपाई, दुनिया को आगाह नहीं किया। यह तो हकीकत है ही कि वह 20 जनवरी तक इनकार करता रहा। 20 जनवरी को पहली बार उसने माना कि इस वायरस का मैन टू मैन संक्रमण हो रहा है। यह भी हकीकत है कि उसे दिसंबर के पहले हफ्ते से ही इसकी जानकारी थी। उसने वर्ल्ड रिस्पांस को हफ्तों नहीं महीनों तक टलवाए रखा और इस बीच वह दुनिया भर के देशों से मेडिकल उपकरण खरीद कर उसे अपने यहां इकट्ठा करता रहा। यह हकीकत है कि इटली से अमेरिका ने दो करोड़ मास्क खरीदे। उसने ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देशों से मास्क, वेंटिलेटन, पीपीई जैसी चीजें खरीदीं और अपने यहां उनको स्टोर किया। और जब उसके यहां महामारी का संकट टला तो उसने दुनिया के देशों से खरीदी गई चीजें उन्हीं को महंगे दाम पर बेचनी शुरू कर दी। क्या यह किसी सभ्य देश का बरताव हो सकता है? दुनिया यह मान रही है कि चीन ने सारी दुनिया को संकट में डाला है। यह भी कहा जा रहा है कि चीन ने जान बूझकर सारी दुनिया में वायरस फैलाया। उसकी ऐसी सोच रही कि वह इस वायरस की वजह से परेशान हो रहा है तो दुनिया भी परेशान हो। अगर ऐसा नहीं होता तो वह अपने देश से लगातार जहाज में भर कर लोगों को दुनिया के अलग अलग हिस्सों में नहीं जाने देता। ध्यान रहे जिस दिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन या दुनिया के दूसरे देशों से अपने यहां विमानों का उतरना बंद कराया उससे एक दिन पहले तक हर दिन चीन से 20 हजार लोग अमेरिका पहुंच रहे थे। अपने लोगों को घरों में बंद करने की बजाय चीन ने उन्हें दुनिया भर में भेज कर वायरस फैलाया है। अमेरिका और यूरोप के दूसरे देशों ने वायरस पर काबू पाना शुरू कर दिया है और यह माना जा रहा है कि अगले महीने के अंत तक सब कुछ सामान्य हो जाएगा। और उसके बाद चीन के खिलाफ कुछ न कुछ कार्रवाई होगी। कार्रवाई चाहे जो हो पर यह तय है कि पश्चिमी दुनिया की नजर में अब चीन की वह स्थिति नहीं रहने वाली है, जो पहले थी। उनके बीच दूरी बढ़ेगी। अघोषित रूप से कई चीजों में चीन का बहिष्कार होगा और चीन के बुद्धिजीवियों, वैज्ञानिकों के लिए पश्चिमी देशों की संस्थाओं, लैबोरेटरी आदि में पहुंच मुश्किल हो जाएगी।
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