बेबाक विचार

हकीकत अलग ही है

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हकीकत अलग ही है
कोरोना वायरस को लेकर फैले मिथक और अंधविश्वासों से अलग इसकी हकीकत बहुत भयावह है। इस वायरस के फैलने की क्षमता और उसे रोक पाने में दुनिया के देशों की अक्षमता को देख कर इसकी भयावहता का पता चलता है। जिस समय दुनिया यह समझ रही थी कि मानवता अब बीमारियों, संक्रमण आदि से होने वाली मौतों को रोकने में सक्षम हो गई है उसी समय इस वायरस का संक्रमण शुरू हुआ है। पिछले दिनों युवाल नोआ हरीर की बेहद चर्चित तीन किताबों की एक सीरिज आई, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘प्लेग, भूखमरी और युद्ध’ ये तीन चीजें, जो पिछली सहस्त्राब्दी में मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा थीं उनसे मुक्ति पा ली गई है। हालांकि उन्होंने खुद ही आगे लिखा है कि अब चिकित्सा विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि प्लेग जैसी महामारी के फैलने से पहले उसकी पहचान हो जाती है और उसे रोकने के उपाय हो जाते हैं। जैसे एचआईवी से लेकर इबोला तक अगर पिछली सदी के शुरू में आए होते तो इनसे मरने वालों का आंकड़ा लाखों में होता। बहरहाल, यह आकलन कुछ हद तक ठीक है। अगर सौ साल पहले कोरोना जैसा वायरस आ जाता तो मरने वालों की संख्या लाखों में होती। पर यह भी अधूरा अंदाजा है। यह दुनिया के लिए भी अच्छा हुआ जो इसकी शुरुआत चीन में हुई, जहां उसने एक करोड़ से ज्यादा आबादी वाले एक शहर को लॉकडाउन करके इसे फैलने से रोक दिया। दुनिया के कई विद्वान इस अंदेशे से थर्राए हुए हैं कि अगर इसकी शुरुआत भारत से हुई होती तो क्या होता। सचमुच सोचें, अगर भारत से या एशिया के किसी दूसरे देश जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफ्रीका के किसी देश में इसकी शुरुआत हुई होती तो इससे मरने वालों की संख्या कितनी होती? चीन ने अपने ऊपर आरोप लगाने वालों को जवाब देते हुए कहा है कि यह वायरस प्राकृतिक है। यानी प्रकृति अपनी तरह से वैसे ही काम कर रही है, जैसे पहले करती थी। फर्क यह है कि पहले पता नहीं चलता था, अब पता चल जा रहा है और इसलिए बचाव के उपाय हो जा रहे हैं। बहरहाल, यह कल्पना सिहरा देने वाली है कि अगर इस वायरस का संक्रमण भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे किसी देश में या अफ्रीका के किसी देश में हुआ होता तो क्या होता! जिस तरह से दुनिया के विकसित और आधुनिक देश इसकी चपेट में आए हैं उससे भी इसकी भयावहता का अंदाजा लगता है। अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देशों में मरने वालों का आंकड़ा दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। सौ-दो सौ साल पहले जब लोग प्लेग जैसी महामारी से मरते थे, उसके बाद ध्यान नहीं आता है कि कभी किसी संक्रमण से इतने कम समय में इतने ज्यादा लोगों की मौत हुई हो। दुनिया भर में इससे मरने वालों का आंकड़ा दस हजार पहुंच गया है। यह आंकड़ा पिछले तीन महीने का है। अब भी इससे संक्रमितों की संख्या लाखों में हैं और इस वायरस का फुटप्रिंट पूरी दुनिया में है। अब शायद ही कोई देश बचा है, जहां इसका संक्रमण नहीं पहुंचा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी तुलना विश्व युद्ध से की और सही कहा कि उसमें भी इतने देश शामिल नहीं हुए थे या इतने देश प्रभावित नहीं हुए थे। इसका मतलब साफ है कि यह विश्व युद्ध से बड़ी त्रासदी है। इससे दुनिया के लगभग सारे देश प्रभावित हैं। दुनिया की करीब आठ सौ करोड़ की आबादी सीधे इससे प्रभावित हो रही है, इसकी चपेट में है। किसी को अगर यह वायरस नहीं लगा है तो इसका यह मतलब नहीं है कि वह सुरक्षित है। चूंकि इसके बारे में वास्तविकता का पता किसी को नहीं है इसलिए यह ज्यादा भयावह है। दुनिया के विकसित देश भी इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं। अभी तक न तो इसे रोकने की कोई वैक्सिन बन पाई है और न संक्रमित व्यक्ति का पक्का इलाज पता चला है। हालांकि इससे लोग ठीक भी हो रहे हैं। चीन ने ही अपने यहां करीब 70 हजार संक्रमित लोगों को ठीक कर दिया। पर इनमें से लगभग सभी लोग युवा उम्र के थे और उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा काम आई। इसके लक्षण सामान्य सर्दी-जुकाम वाले हैं पर यह नहीं पता चल पा रहा है कि किसी दूसरी बीमारी से ग्रस्त या उम्रदराज लोगों को संक्रमण लगने पर ऐसा क्या हो रहा है कि उसके लिए यह बीमारी घातक हो जा रही है। एक तरफ यह हकीकत है कि इससे मरने की दर काफी कम है और दूसरी और हजारों लोगों के मरने की हकीकत भी है। इसका मतलब है कि अभी इसके बारे में शोध कर रहे वैज्ञानिक भी पूरे दावे से नहीं कह सकते हैं कि यह कैसे फैल रहा है और इसे कैसे रोक जा सकता है। तभी यह विश्व युद्ध से ज्यादा भयावह है और सदी-दो सदी पहले फैलने वाले प्लेग आदि महामारी की तरह है। जैसे उस समय के लोग उन बीमारियों के बारे में नहीं जानते थे और अंधेरे में तीर चलाते थे, उसी तरह इस समय विज्ञान की तमाम तरक्की के बावजूद लोग इस वायरस के बारे में नहीं जानते हैं और अंधेरे में तीर चला रहे हैं। यहीं कारण है कि यह वायरस भी पहले जितना ही खतरनाक है।
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