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केरल के मॉडल, पढ़े-लिखों को सलाम!

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केरल के मॉडल, पढ़े-लिखों को सलाम!
छह साल पहले देश में लोकसभा का चुनाव गुजरात मॉडल पर लड़ा गया था। लोग चाह रहे थे कि देश में गुजरात मॉडल लागू हो। पर अब जब देश के सामने सदी का सबसे बड़ा संकट आया है तो केरल मॉडल की चर्चा हो रही है। हर जगह यह सवाल है कि आखिर कैसे केरल ने अपने यहां कोरोना वायरस पर काबू पा लिया। वायरस के संक्रमण के लिहाज से सबसे आदर्श स्थितियों में होने के बावजूद केरल में सिर्फ 691 मामले आए और उसमें से 510 लोग ठीक होकर घर जा चुके हैं। सिर्फ चार लोगों की मौत हुई और 177 लोगों का अस्पताल में इलाज चल रहा है। ये 177 मामले भी पिछले एक हफ्ते में आए हैं, जब दुनिया के दूसरे देशों से लोगों को वंदे भारत मिशन के तहत हवाई जहाज से भारत लाया गया। केरल में लोकल केस अब एक भी नहीं है। आखिर केरल ने यह चमत्कार कैसे किया? इसका एक ही जवाब है कि केरल ने पिछले 70 साल में सोशल सेक्टर में निवेश किया। शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता बनाया। अस्पताल खोले, मेडिकल और नर्सिंग कॉलेज खोले गए। अब आंकड़े बताने की जरूरत नहीं है, यह सब जानते हैं कि देश में प्रति व्यक्ति डॉक्टर, नर्स, अस्पतालों के बेड आदि की उपलब्धता वाले सबसे बेहतर राज्यों में से एक केरल है। दूसरे वहां सिर्फ साक्षरता की दर सौ फीसदी नहीं है, बल्कि लोग भी जागरूक हैं, जिसकी वजह से सरकारें जिम्मेदार हैं। संकट के समय केरल के लोगों का आचरण भेड़ियाधसान वाला नहीं है। वे भेड़चाल की बजाय वैज्ञानिक दृष्टि के साथ काम कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि वहां की सरकारों ने नागरिकों का भरोसा हासिल किया है। लोगों को विश्वास है कि सरकार जो कर रही है उनके भले के लिए कर रही है और पिनराई विजयन की सरकार ने किया भी। याद करें कितने राज्यों ने अपने यहां आर्थिक पैकेज की घोषणा की है? केरल के मुख्यमंत्री ने सबसे पहले 20 हजार करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान किया। केरल पहला राज्य था, जिसने एंटीबॉडी टेस्ट की मंजूरी हासिल की, उसने प्लाज्मा तकनीक से इलाज की भी मंजूरी शुरुआत में ही हासिल की, केरल पहला राज्य है, जिसने डाक घरों के जरिए लोगों के हाथ में नकदी पहुंचाने का प्रयोग किया। यानी किसी भी सभ्य समाज में किसी महामारी से लड़ने और लोगों को राहत देने के जितने काम हो सकते हैं, वह सब काम केरल ने किया। तभी लोग घरों में बैठे और सरकार को ईमानदारी से काम करते देखते रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि केरल ने कमाल किया और सारी दुनिया में इसकी चर्चा हो रही है। मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन के साथ साथ एक सलाम कॉमरेड केके शैलजा को भी बनता है। वे केरल की स्वास्थ्य मंत्री हैं और संभवतः इस देश की इकलौती नेता हैं, जिनके ऊपर दुनिया भर की निगाह है। अभी ब्रिटेन की प्रतिष्ठित पत्रिका द गार्डियन ने उनके ऊपर एक बड़ी स्टोर की, जिसका शीर्षक ‘द कोरोना वायरस स्लायर! हाऊ केरल्स रॉकस्टार हेल्थ मिनिस्टर हेल्प्ड सेव इट फ्रॉम कोविड-19’ है। केरल की रॉकस्टार स्वास्थ्य मंत्री ने कैसे कोरोन वायरस का शिकार कर डाला, यह दुनिया के कौतुक का विषय है। महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए केके शैलजा से बात की और उनसे जानना चाहा कि उन्होंने कैसे कोरोना को काबू में किया। केके शैलजा स्वास्थ्य मंत्री हैं पर केरल में उनको शैलजा टीचर के नाम से जाना जाता है क्योंकि वे पहले शिक्षक थीं। द गार्डियन की स्टोरी के मुताबिक शैलजा ने 20 जनवरी को अपने एक मेडिकल क्षेत्र के प्रशिक्षित सहायक को फोन किया और कहा कि उन्होंने अभी कोरोना वायरस को लेकर ऑनलाइन एक रिपोर्ट पढ़ी है। उन्होंने दो टूक अंदाज में पूछा- क्या यह हमारे यहां भी आ सकता है? उनके सहायक ने जवाब दिया- हां मैडम। और इसके बाद केके शैलजा ने कोरोना से लड़ने की तैयारी शुरू कर दी। सोचें, 20 जनवरी को जब चीन के वुहान यानी ग्राउंड जीरो में भी लॉकडाउन नहीं हुआ था तब केरल की स्वास्थ्य मंत्री ने कोरोना से लड़ने की तैयारी शुरू कर दी। इसके तीन दिन के भीतर शैलजा ने रैपिड रिस्पांस टीम बना दी और इसके साथ पहली मीटिंग भी कर ली। उसी दिन केरल के सभी 13 जिलों में इसी तरह की मेडिकल टीम बनाई गई और 27 जनवरी को जिस दिन वुहान से हवाई जहाज से पहला संक्रमित मरीज केरल पहुंचा उस दिन तक उस राज्य ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी किए गए प्रोटोकॉल को अपना लिया था। उसने टेस्ट, ट्रेस, आइसोलेट एंड सपोर्ट का मॉडल अपनाया था। जो लोग चीन से आए उस जहाज में थे उनमें से तीन को बुखार था, उन्हें इलाज के लिए भेजा गया और बाकी सभी लोगों को क्वरैंटाइन में डाला गया। इसके बाद की कहानी इतिहास है, जिसे आज सारी दुनिया पढ़ रही है। साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले केरल में सिर्फ चार लोगों की कोरोना वायरस से मौत हुई। इसके उलट उस समय देश में क्या हो रहा था? 27 जनवरी को भारत गणतंत्र दिवस की परेड की खुमार में था। उसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के स्वागत की तैयारियां शुरू हो गईं। 24-25 फरवरी के उनके कार्यक्रम के बाद भारत उससे निकला तो उसके बाद राज्यसभा के चुनाव, गुजरात में विधायकों की खरीद-फरोख्त, मध्य प्रदेश में सरकार बदल, संसद सत्र, बजट पास कराना आदि में सरकार बिजी रही। 20 जनवरी को जिस दिन केके शैलजा ने कोरोना के बारे में पढ़ कर रैपिड रिस्पांस टीम बनाई थी उससे ठीक दो महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिन के जनता कर्फ्यू की अपील की और कहा कि 22 मार्च को लोग जनता कर्फ्यू लगाएं और घरों के बाहर खड़े होकर घंटी बजाएं। इसके दो दिन के बाद देश में लॉकडाउन लागू हो गया। किसी को पता नहीं है कि उससे पहले कोई रैपिड रिस्पांस टीम बनी या नहीं, मेडिकल टास्क फोर्स का गठन हुआ या नहीं, मेडिकल की क्या तैयारी हुई इसका भी किसी को पता नहीं है। जैसे केरल ने हर जिले को निर्देश दिया वैसा केंद्र ने राज्यों को निर्देश देना जरूरी नहीं समझा, राज्यों से लॉकडाउन के बारे में बात भी नहीं की गई और न कैबिनेट की बैठक करके इस बारे में कोई फैसला किए जाने की खबर है। सीधे पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया गया।
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