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चालीस दिन की बंदी में सब कंगाल

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चालीस दिन की बंदी में सब कंगाल
कहां तो भारत के प्रधानमंत्री, उनके मंत्री, भाजपा के नेता और सोशल मीडिया में सरकार के समर्थक इस बात के लिए सीना ठोक रहे थे कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और अगले चार साल में पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने वाला है और कहां 40 दिन की बंदी ने देश में कंगाली ला दी। सौ बार लोगों ने सरकार के मंत्रियों को यह कहते सुना होगा कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद बहुत मजबूत है। तो कहां है वह बुनियाद? जब अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है और देश 2024 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने वाला है तो फिर 40 दिन की बंदी में ही ऐसी कंगाली कैसे आ गई कि अपने कर्मचारियों का वेतन-भत्ता काटना पड़ गया? अभी तो कोरोना से लड़ाई में भी भारत का बहुत मामूली खर्च हुआ है फिर सारी दुनिया से कर्ज लेने या भीख स्वीकार करने की नौबत क्यों आ गई? दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले कोरोना से लड़ाई में भारत का खर्च बहुत मामूली है। भारत ने सौ-डेढ़ सौ करोड़ रुपए कोरोना की टेस्टिंग पर खर्च किए हैं, जबकि अमेरिका ने साढ़े सात हजार करोड़ रुपए सिर्फ टेस्टिंग के लिए जारी किए और यह सुनिश्चित किया कि हर व्यक्ति की मुफ्त में जांच हो। सोचें, वहां के नागरिक जांच अफोर्ड कर सकते हैं पर चिकित्सा महामारी में अपनी जिम्मेदारी समझते हुए अमेरिका ने सभी नागरिकों की फ्री जांच की व्यवस्था की। बहरहाल, इस तुलना का मकसद सिर्फ यह बताना है कि भारत सरकार ने अभी तक कोरोना से लड़ाई में कोई खास खर्च नहीं किया है। एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए का जो प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का पैकेज जारी हुआ वह भी कई पहले से चल रह योजनाओं की रिपैकेजिंग है। असल में उसमें एक लाख करोड़ रुपए का ही पैकेज कोरोना के नाम का है। इसी तरह मेडिकल सुविधा के लिए सरकार ने 15 हजार करोड़ रुपए जारी किए, जिसे अगले चार साल में पूरे देश में खर्च किया जाना है। सोचें, दो सौ लाख करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था वाले देश में एक-सवा लाख करोड़ रुपए का खर्च इस वैश्विक महामारी के नाम पर हुआ है और उसी में सरकार कंगाल हो गई। सरकार दुनिया भर से चंदा मांग रही है, उधार मांग रही है और अपने कर्मचारियों का वेतन-भत्ता काट रही है। भारत सरकार ने एशियाई विकास बैंक, एडीबी से साढ़े 11 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया ताकि कोरोना वायरस के संकट से लड़ाई हो सके। इसके अलावा यह भी खबर है कि सरकार टैक्स फ्री बांड जारी करने जा रही है, जिसके जरिए दस हजार करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। यह काम किश्तों में होगा। 2004-05 की सुनामी के समय तब की मनमोहन सिंह सरकार ने तय किया था कि भारत किसी भी आपदा की स्थिति में दूसरे देशों से मदद नहीं स्वीकार करेगा। इसी नियम के कारण पिछले दिनों केरल में आई बाढ़ के समय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब की मदद ठुकरा दी थी। लेकिन कोरोना का संकट आते ही सरकार ने दुनिया के सामने हाथ फैला दिए। प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से अलग पीएम-केयर्स नाम से एक फंड बनाया और तय किया कि इसमें घरेलू और विदेशी सब तरह का चंदा लिया जाएगा। सोचें, आपने कैसे समय में विदेश से चंदा लेने के लिए हाथ फैलाया? जिस समय दुनिया देने की स्थिति में थी तब भारत ने चंदा लेने से मना किया और जब दुनिया खुद संकट में है, सारे देश अपने-अपने खर्च का हिसाब लगा रहे हैं तब हम इस बात के लिए तैयार हो गए कि हम चंदा लेंगे! ध्यान रहे दुनिया के देशों के साथ साथ दुनिया भर में फैले तीन करोड़ के करीब भारतीय प्रवासी भी इस समय कुछ चंदा देने की स्थिति में नहीं हैं। वैसे घरेलू कारोबारियों और आम लोगों की मदद से ही पीएम-केयर्स फंड में हजारों करोड़ रुपए का चंदा आ गया है। सरकार ने इसे सीएसआर मान लिया है इसलिए कंपनियों को इसमें पैसा देने में कोई दिक्कत नहीं हुई है। तभी यह सवाल है कि आखिर छह साल तक सरकार ने क्या किया, जो 40 दिन की बंदी में कंगाली हो गई है और भीख मांगने की नौबत आ गई? सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां बेची, अंतरराष्ट्रीय बाजार से सस्ता कच्चा तेल खरीद कर उसे महंगे दाम में बेचा और उस पर उत्पाद शुल्क कई गुना बढ़ कर पैसा जुटाया, इससे लाखों करोड़ रुपए की अतिरिक्त आमदनी हुई है, भारतीय रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष से एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए लिए हैं, वस्तु व सेवा कर, जीएसटी से अप्रत्यक्ष कर में चमत्कारिक वसूली का दावा है, प्रत्यक्ष कर यानी आय कर में भी भारी भरकम बढ़ोतरी का दावा किया गया, घोटाले सारे रोक ही दिए गए हैं, सरकारी योजनाओं के पैसे में से लीकेज को आधार के जरिए रोक देने का दावा किया गया है, जिससे सरकार की मानें तो हजारों करोड़ रुपए बच रहे हैं, कोयला-स्पेक्ट्रम आदि की पहले कथित लूट होती थी वह रोक दी गई है और उससे पैसा सरकारी खजाने में जा रहा है, हर दिन विदेशी मुद्रा भंडार के रिकार्ड ऊंचाई पर जाने की खबर आती है इस सबके बावजूद 40 दिन की बंदी में सरकार कंगाल हो गई! अब या तो अर्थव्यवस्था को लेकर किए गए सारे दावे झूठ हैं या अभी कंगाली वाली बात झूठी है, दोनों सही नहीं हो सकते। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत महान की सरकार या राज्यों की सरकारें कंगाल हुई हैं। देश के सबसे बड़े धन्नासेठ भी कंगाल हो गए हैं। देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक ने कहा है कि एक साल का वेतन नहीं लेंगे और इसी के बहाने अपने कर्मचारियों के वेतन में दस से 50 फीसदी तक की कटौती का ऐलान कर दिया। उन्होंने यह ऐलान उस दिन किया, जिस दिन उनकी फ्लैगशिप कंपनी जियो का मुनाफा चौथी तिमाही में तीन गुना बढ़ने की खबर आई और साथ ही रिलायंस रिटेल का मुनाफा भी तीन गुना बढ़ने की खबर आई। सरकार की तरह या तो रिलायंस का मुनाफा झूठा है या कंगाली झूठी है।
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