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डब्लुएचओ की पोल कई तरह से खुली हुई है!

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डब्लुएचओ की पोल कई तरह से खुली हुई है!
दुनिया के हर देश का नागरिक मन की मन चीन के प्रति गांठ बांध रहा है। सबको लग रहा है कि चीन ने उसका जीवन खतरे में डाला है। पर यह अकेले चीन का किया धरा नहीं है। यह अभी जांच और छानबीन का विषय है कि नोवेल कोरोना वायरस चीन के हुनान शहर के सी फूड बाजार से सहज रूप से वैसे ही बाहर निकला, जैसे जीव-जंतुओं से फैलने वाले बाकी दूसरे वायरस फैलते हैं या उसने इसे लैबोरेटरी में तैयार कराया। इस जांच के कई आयाम हैं। चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस मामले में मिलीभगत की जांच अमेरिका कर रहा है। पर इस जांच के बगैर ही इस बात के पक्के सबूत हैं कि दिसंबर में डब्लुएचओ को इसकी जानकारी हो गई थी। फिर भी उसने इसे वैश्विक महामारी घोषित करने में एक महीने से ज्यादा का समय लिया। सबसे पहले चीन से अलग हुए ताइवान ने डब्लुएचओ को इसकी जानकारी दी थी। ताइवान ने विधिवत रूप से ईमेल लिख कर डब्लुएचओ को बताया था कि चीन में सार्स के लक्षण वाली बीमारी फैल रही है और कम से कम सात लोग इससे संक्रमित पाए गए हैं। डब्लुएचओ की पोल खोलने के लिए ताइवान ने 31 दिसंबर को लिखी गई ईमेल सार्वजनिक कर दी है। इसमें उसने साफ तौर पर लिखा है कि उसे वुहान में सात लोगों के सार्स जैसी बीमारी से संक्रमित होने की सूचना मिली है और यह बीमारी फैल सकती है। ताइवान ने इस बारे में डब्लुएचओ से और सूचना मांगी थी। हैरानी की बात है कि डब्लुएचओ ने बाद में अपने को बचाने के लिए कहना शुरू कर दिया कि ताइवान ने उसे कोई ऐसी ईमेल नहीं भेजी है, जिसमें महामारी फैलने का अंदेशा जताया गया हो। उसका कहना है कि ताइवान ने सिर्फ एक मेल भेजी थी, जिसमें कहा था कि इस तरह की बीमारी फैल रही है। तो सवाल है कि क्या उसके बाद डब्लुएचओ को उसकी जांच नहीं करानी थी? बहरहाल, तीन दिन पहले ताइवान ने ईमेल जारी कर दी और उसके स्वास्थ्य मंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि मेल में लिखा गया था कि मरीजों को आइसोलेशन में रखा जा रहा है। इससे बड़ा संकेत क्या हो सकता है महामारी के अंदेशे का? इस आधार पर ताइवान ने दो टूक अंदाज में कहा है कि या तो चीन ने आंकड़ा और जानकारी दोनों डब्लुएचओ से छिपाया या डब्लुएचओ ने जानकारी होने के बावजूद दुनिया को अंधेरे में रखा। अब जरा इस घटनाक्रम पर नजर डालें, इससे स्थिति और स्पष्ट होगी। ताइवान ने 31 दिसंबर को डब्लुएचओ को चिट्ठी लिखी, उसे जानकारी दी और आगे की सूचना मांगी। जब डब्लुएचओ से कोई सूचना नहीं मिली तो ताइवान ने अपनी जानकारी के आधार पर ही दो दिन बाद दो जनवरी को अपने यहां इमरजेंसी प्रोटोकॉल घोषित कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि पूरे देश में सिर्फ 393 केसेज आए और सिर्फ छह लोगों की मौत हुई। दूसरी ओर डब्लुएचओ 12 जनवरी तक कहता रहा कि वायरस के फैलने का कोई स्पष्ट सबूत नहीं है। चीन ने पहली बार 20 जनवरी को कन्फर्म किया कि लोगों के बीच वायरस का ट्रांसमिशन हो रहा है। इसके भी दस दिन के बाद 30 जनवरी को डब्लुएचओ ने इसे वैश्विक आपदा घोषित किया। सोचें, ताइवान ने अपनी सूचना के हिसाब से काम किया और इसके संक्रमण को रोक लिया। दूसरी ओर ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय देश डब्लुएचओ के निर्देशों को फॉलो करते रहे तो आज उनकी क्या स्थिति हो गई है। क्या इसके लिए डब्लुएचओ को कठघरे में नहीं खड़ा करना चाहिए?
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