बेबाक विचार

सांप्रदायिक एजेंडे पर विभाजित देश

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सांप्रदायिक एजेंडे पर विभाजित देश
यह संयोग है कि पांच राज्यों के चुनावों से पहले ऐसे मुद्दे आ गए हैं, जिनको सांप्रदायिक रंग देना बहुत आसान हो गया है। यह भी हो सकता है कि जान बूझकर ऐसे मुद्दे बनाए जा रहे हों, जिनसे सांप्रदायिक विभाजन कराया जा सके। जैसे मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की तुलना तालिबान से कर दी। यह बड़े सांप्रदायिक विभाजन का मुद्दा बन गया। कांग्रेस की सहयोगी और महाराष्ट्र में सरकार चला रही शिव सेना ने भी इसके लिए जावेद अख्तर की आलोचना की और कहा कि आरएसएस की तुलना तालिबान से नहीं हो सकती है। उस बीच महाराष्ट्र भाजपा के नेताओं ने यह मुद्दा पकड़ लिया और आंदोलन शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि जब तक जावेद अख्तर हाथ जोड़ कर माफी नहीं मांगते हैं, तब तक आंदोलन चलेगा और उनकी कोई भी फिल्म थिएटर में रिलीज नहीं होने दी जाएगी। हकीकत यह है कि जावेद अख्तर ने अभी कोई फिल्म नहीं लिखी है और न निकट भविष्य में उनकी कोई फिल्म रिलीज होने जा रही है। फिर भी फिल्म रिलीज नहीं होने देने का आंदोलन चल रहा है। जावेद अख्तर भी मुफ्त की पब्लिसिटी के मजे ले रहे हैं और भाजपा उसका राजनीतिक लाभ लेने के हर उपाय कर रही है। उधर कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की पुरानी सहयोगी महबूब मुफ्ती ने तालिबान को शरिया के हिसाब से सरकार चलाने की सलाह दे डाली। हालांकि अब वे कह रही हैं कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। लेकिन जैसे भी पेश किया गया हो, उनका बयान सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के काम आ गया। उनको तालिबान का समर्थक बता दिया गया। हालांकि इस क्रम में कहीं नहीं बताया जाता है कि वे भाजपा की सहयोगी रही हैं। भाजपा ने उनके पिता और उनको बारी बारी से मुख्यमंत्री बनवाया था। लेकिन शरिया के हिसाब से सरकार चलाने का उनका बयान तालिबान के साथ साथ इस्लाम को भी डेमोनाइज करने के काम आ रहा है। देश भर में यह बताया जा रहा है कि यही असली रूप है इस्लाम का और हर मुसलमान तालिबान के साथ है। उधर झारखंड में अभी कांग्रेस के साथ सरकार चला रही भाजपा की पुरानी सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने विधानसभा भवन में नमाज पढ़ने के लिए एक रूम आवंटित कर दिया है। दो साल सरकार चलाने के बाद अचानक जेएमएम सरकार को पता नहीं कैसे यह इलहाम हुआ, जो उसने नमाज के लिए अलग कमरे की व्यवस्था कर दी। इसे लेकर देश के कई राज्यों में भाजपा ने आंदोलन शुरू कर दिया है। झारखंड में तो भाजपा के नेता विधानसभा में बैठ कर हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे हैं और विधानसभा परिसर में मंदिर बनाने की मांग कर रहे हैं, उधर बिहार में भी भाजपा के विधायक विधानसभा भवन में हनुमान मंदिर बनाने और हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए अलग कमरे की व्यवस्था करने की मांग करने लगे हैं। भाजपा को मुस्लिम तुष्टिकरण का एक मुद्दा मिल गया है, जिसे पूरे देश में इस्तेमाल करने की तैयारी चल रही है। इस बीच हर चुनाव में परोक्ष रूप से भाजपा के मददगार साबित होने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने उत्तर प्रदेश का दौरा शुरू कर दिया है। उन्होंने अयोध्या जाकर जिले का नाम फिर से फैजाबाद करने की मांग की, जिसके बाद राज्य में अपने आप सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का माहौल बनने लगा। उन्होंने तीन दिन तक सभाएं और रैलियां कीं, जिनमें भाजपा और नरेंद्र मोदी से ज्यादा हमला अखिलेश यादव के ऊपर था। साफ दिख रहा है कि वे अपना काम कर रहे हैं। एक तरफ वे भड़काऊ भाषणों से सांप्रदायिक विभाजन करा रहे हैं तो दूसरी ओर अखिलेश यादव को निशाना बना कर अल्पसंख्यक वोट में कंफ्यूजन बना रहे हैं। उनका मकसद साफ है और उनके तरीके भी स्पष्ट हैं। वे सौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे। बहरहाल, उधर मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के जीवन से जुड़ी बातें पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने की खबर है। एक तरफ आरएसएस की तुलना तालिबान से हो रही है तो दूसरी ओर आरएसएस के संस्थापक की जीवनी पढ़ाए जाने की खबर है। इस बीच संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हमलावरों के साथ ही इस्लाम के भारत आने की बात करके अलग विवाद खड़ा किया है। विद्वान लोग बताने में लगे हैं कि पहला मुस्लिम हमलावर मीर कासिल 711 ईस्वी में भारत आया था, जबकि उससे 80-90 साल पहले ही केरल के त्रिशूर में पहली मस्जिद बनी थी। जो हो ये सारे मुद्दे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने वाले हैं।
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