बेबाक विचार

तो आया वक्त वैक्सीन भगदड़ का!

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तो आया वक्त वैक्सीन भगदड़ का!
ब्रिटेन में कोविड-19 रोधक टीके लगने शुरू हो गए हैं। वहां पूरी आबादी को चरणबद्ध ढंग से मुफ्त में टीके लगेंगे। ब्रिटेन का टीकाकरण अभियान फाइजर और मार्डेना कंपनी की नई तकनीक की वैक्सीन से शुरू हुआ है और आगे अपने ऑक्सफोर्ड में विकसित टीके का भी उपयोग होगा। फुर्ती, कायदे, इंफ्रास्ट्रक्चर, रोडमैप के साथ ब्रिटेन में शुरू टीकाकरण अभियान अमीर देशों के तौर-तरीकों और पैटर्न की बानगी है। इसलिए तय मानें कि गर्मी आते-आते याकि छह महीने में ब्रिटेन वायरस सुरक्षित होगा (यदि वैक्सीन ही फेल हो तो बात अलग है)। ऐसे ही यूरोपीय संघ के देश, अमेरिका, जापान, न्यूजीलैंड, कनाडा, स्वीट्जरलैंड याकि अमीर देश जुलाई-अगस्त 2021 तक वायरस की चिंता से मुक्त सामान्य स्थिति में लौट आएंगे। यह गारंटीशुदा संभावना इसलिए है क्योंकि इन सब देशों ने एडवांस पैसा दे कर न केवल वैक्सीन खरीद ली है, बल्कि माइनस 70 डिग्री नीचे का तापमान रखने वाले गोदाम, सीरिंज, मैनपॉवर, प्लानिंग, रोडमैप सब बना लिया है। ब्रिटेन ने चार दिनों में अपने टीकाकरण अमल का जो व्यवस्थित सिस्टम दिखलाया है वह बाकी अमीर देशों याकि जर्मनी, फ्रांस से लेकर ऑस्ट्रेलिया से सिंगापुर, दक्षिण कोरिया जैसे देशों के सिस्टम का भी प्रतीक है। तभी जुलाई-अगस्त तक दुनिया दो हिस्सों में बंटी होगी। एक तरफ वायरस को नियंत्रित कर चुके देश होंगे और दूसरी तरह वे गरीब-कंगले-विकासशील देश होंगे, जहां अधकचरी, आधे-अधूरे टीकाकरण प्रोग्रामों से दुनिया का अछूत बनने का खतरा होगा। भारत इस जमात का नंबर एक देश होगा। कोई माने या न माने, पिछले दस महीनों में वायरस को लेकर मोदी सरकार की जो रीति-नीति रही है उस हकीकत में सन् 2021-22 के दो साल भारत के लिए भगदड़, बरबादी वाले होने हैं। भारत वैसे ही झूठ के नैरेटिव में जनता को और दुनिया का भरमाते होगा कि सब ठीक है। टीके लग गए हैं और भारत में वायरस का खतरा खत्म है। मगर दुनिया के विकसित देश इसे नहीं मानेंगे। विदेशी टूरिस्ट भारत घूमने नहीं आएंगे और भारतीय यदि लंदन, पेरिस, वाशिंगटन घूमने जाएंगे तो हवाईअड्डे पर भारतीयों के वायरस जांच-पड़ताल, टेस्ट, सर्टिफिकेट की अलग लाइन लगी हुई होगी। सचमुच सन् 2020-21 का वैश्विक सिनेरियो वायरस मुक्त और वायरस केंद्रित देशों के दो खेमों का बनता लगता है। भारत क्योंकि दुनिया में सर्वाधिक बीमार संक्रमित लोग लिए हुए होगा तो दुनिया में भारत को ले कर क्या नजरिया होगा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। भारत बनाम ब्रिटेन का याकि गरीब बनाम अमीर देशों का फर्क यह होगा कि वे जहां अगस्त तक पूरी आबादी या बहुसंख्यक आबादी (80-90 प्रतिशत आबादी) को टीका लगा चुके होंगे वहीं भारत में यह काम 2024 तक नहीं हो सकेगा। कहने को मोदी सरकार कह रही है कि जुलाई-अगस्त तक 40-50 करोड़ डोजेज लगा दिए जाएंगे। चिकित्साकर्मियों व 65 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीका लगा देंगे। मतलब बुजुर्ग-पहले से बीमार कोई 27 करोड़ लोगों को अगस्त तक टीका लग जाएगा। जैसे चुनाव होते है वैसे लोगों को लाइन में लगा कर टीका लगा देंगे। यह एप्रोच भगदड़ मचवाने वाली है। सरकार पहले से ही बतला दे रही है कि पूरी आबादी को टीका प्राथमिकता नहीं है। हिसाब से यदि हर्ड इम्युनिटी में सोचें तो 80-90 करोड़ लोगों के निश्चित अवधि में टीकाकरण का प्रोग्राम बनना चाहिए। ब्रिटेन ने जैसे पूरी आबादी का आकंड़ा ध्यान रख वैक्सीन डोजेज का ऑर्डर दिया है और एक निश्चित अवधि में सबको टीका लगा कर युद्ध स्तरीय मिशन में वी-डे कैंपेन शुरू किया है वैसा सभी विकसित देशों में भी होना है। वायरस से लड़ाई युद्ध है और युद्ध पूरी ताकत से, सब कुछ झोंक, एक साथ मुहिम से, तैयारियों से निश्चित अवधि में जीतने की प्लानिंग में होता है लेकिन वैसे भारत में नहीं होगा। क्या कहीं लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके अफसर ब्रिटेन जैसी तैयारी करते हुए हैं? पहली बात भारत ने अभी तक इतनी बडी संख्या में वैक्सीन का ऑर्डर ही नहीं दिया है। एक अनुमान अनुसार अगले साल के कुल संभावी वैक्सीन (नामी कंपनियों की) उत्पादन क्षमता का 90 प्रतिशत हिस्सा विकसित देश बुक करा चुके हैं। पहले उन्हें ही सप्लाई होगी। सिर्फ दस प्रतिशत उत्पादन गरीब, विकासशील, भारत जैसे देशों को मिल सकता है। फिर भारत यदि आबादी अनुसार विशाल ऑर्डर दे भी दे तो वैक्सीन रखने के कोल्ड स्टोरेज नहीं है। हां, अधिकांश प्रभावी वैक्सीन को माइनस 70 डिग्री तापमान के स्टोरेज में रखना जरूरी है। पूरे देश में उनकी आवाजाही के लिए एयरकंडीशन ट्रक-कंटेनर चाहिए। पहले विदेश से मंगाना, फिर कोल्ड स्टोरेज ट्रक से उन्हें जिलों में याकि टीका केंद्र तक पहुंचाना और फिर उन्हें वहां सामान्य तापमान में गला दो से आठ डिग्री तापमान वाले फ्रिजर में रख उनका पांच दिन के भीतर ही उपयोग सामान्य इंफास्ट्रक्चर की बात नहीं है। मैन पॉवर, सीरिंज आदि का पूरा काम भारत के सरकारी अस्पतालों के पुराने टीकाकरण ढर्रे में कैसे होगा इसकी तैयारी के फिलहाल जमीनी स्तर पर तो कोई संकेत नहीं हैं। हां, भारत की नंबर एक समस्या वैक्सीन रखने के गोदाम, कोल्ड स्टोरेज ट्रंक और जिला लेवल व उससे नीचे के टीका केंद्र में फ्रीजर इंफ्रास्ट्रक्चर, प्रशिक्षित मैन पॉवर की है। आधार कार्ड से लोगों की लाइन लगवाई जा सकती है लेकिन पर्याप्त संख्या में सुरक्षित वैक्सीन पहुंचवा कर टीका लगवा दिया जाए, इसका काम वैसे ही होगा जैसे संक्रमित लोगों के इलाज का पिछले दस महीनों में हुआ है। सब रामभरोसे, अपने-अपने जुगाड़ से या सत्य को छुपा कर, झूठी टेस्टिंग और झूठे दांवों से जैसे हुआ है वैसे ही आगे होगा।
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