बेबाक विचार

शाह सफल हैं फेल नहीं!

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शाह सफल हैं फेल नहीं!
कौन समझाए कांग्रेस को, सेकुलर बौद्धिकों को! सब पिल पड़े हैं अमित शाह को फेल करार देने में! उनका इस्तीफा मांग रहे हैं। थ्योरी बेच रहे हैं कि नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को दरकिनार कर अजित डोवाल को हालात संभलवाने के लिए दिल्ली की सड़कों पर उतारा। डोवाल सफल और अमित शाह फेल। यह कयास भी है कि नरेंद्र मोदी अपनी इमेज की चिंता में हैं। राष्ट्रपति ट्रंप की यात्रा के वक्त बदनामी से आहत हैं। नरेंद्र मोदी नोबेल शांति पुरस्कार वाली राजनीति चाहते हैं, जबकि अमित शाह हिंदू बनाम मुस्लिम राजनीति पर अड़े हुए हैं। ये तमाम बातें फालतू हैं। न अमित शाह फेल हैं और न नरेंद्र मोदी बनाम अमित शाह की एप्रोच में फर्क है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। नरेंद्र मोदी मार्गदर्शक हैं, राजा हैं तो अमित शाह उस अनुसार अमलकर्ता, सेनापति हैं। मोदी रामजी हैं और शाह हनुमानजी! अजित डोवाल को सुग्रीव, बाली भले मान लिया जाए लेकिन हनुमान नहीं। रामजी एक हैं, हनुमानजी एक हैं बाकी डोवाल, कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, गिरिराज सिंह, प्रवेश वर्मा आदि की वानर सेना का मतलब उतना ही है, जितना अपनी रामायण में वानर सेना का था। मैं मोदी-शाह के रोडमैप को लेकर कई बार विचार करता रहता हूं। इस सप्ताह मुझे बनारस में एक हिंदू जन से खांटी जवाब मिला। दिल्ली में जब हिंसा हो रही थी तब मैं बनारस में था। हिंसा की खबर और राजधानी दिल्ली, ट्रंप की यात्रा के वक्त हिंसा होने की व्याकुलता के बीच शादी के एक स्वागत समारोह में जब चर्चा शुरू हुई तो एक व्यक्ति ने आम राय वाला वाक्य बोला- इन लोगों की ठुकाई जरूरी है। अच्छा हो रहा है जो पुलिस आउट है। ये कहते थे न कि पुलिस हटा लें फिर हम लोगों की ताकत देखना! तभी अमित शाह ठीक कर दे रहे हैं, जो हिंसा की जगह पुलिस गायब है। मालूम हो जाएगा कि किसमें कितना दम है! उफ! ऐसे भी सोचा जाता है। हिंदुओं के लंगूरी भक्तों का दिमाग किस उर्वरता से काम कर रहा है! रत्ती भर ख्याल नहीं कि घर अपना है, अपने ही घर में पूंछ पर आग लगा कर घर को जलाना समझदारी नहीं, बल्कि हर साख पर उल्लू बैठ आग लगाना है। उसकी जगह यह आइडिया पनपा है कि पुलिस की जरूरत नहीं है, फायर ब्रिगेड की जरूरत नहीं है, शांति अपील की जरूरत नहीं है, एफआईआर की जरूरत नहीं है, कोर्ट की जरूरत नहीं है, संविधान की जरूरत नहीं है क्योंकि मूल काम उनको ठोक कर औकात बतानी है और अहसास कराते हुए दिमाग दुरूस्त कराना है कि इस देश में जीना है तो शासक की मनोवृत्ति में नहीं, बल्कि शासित के अंदाज में जीना होगा। पहले दर्जे का नहीं दूसरे दर्जे का नागरिक हो कर रहना होगा! जूनियर ओवैसी, वारिस पठान सबको मुगालता, घमंड छोड़ना होगा कि हम बीस करोड़ लोग सौ करोड़ हिंदुओं को घरों में दुबका सकते हैं। मतलब साबित कर दो कि अभी तक पुलिस, अदालत, मीडिया, संस्थाओं, संविधान के कारण बच रहे हो न कि पानीपत के खुले मैदान की खुली लड़ाई में लड़ने की ताकत से! ऐसी सोच बनारस में औसत भक्त के आइडिया का लब्बोलुआब है। मुझे सचमुच भक्त हिंदुओं में कोई दिल्ली की हिंसा से विचलित नहीं दिखा। हां, दिल्ली में जरूर पार्क में घूमते हुए एक भक्त ने कहा मोदी नोबेल पुरस्कार के चक्कर में हैं वरना तुरंत सख्ती दिखाते हुए हिंसा रोक देनी थी, दुनिया में बदनामी हो रही थी जबकि वे ट्रंप की लल्लोचपों में लगे थे। पर जनाब की सख्ती की दलील भी पुलिस के जरिए ‘उन्हे’ ठोक कर घरों में दुबकवाने के लिए थी। पहला तर्क तो यहीं था कि इन लोगों को शाहीन बाग में इतने दिन क्यों बैठे रहने दिया? सो, अमित शाह भले दुनिया के लिए, सेकुलरों, लेफ्ट जमात, कांग्रेस आदि की निगाह में फेल हों मगर उन हिंदू वोटों की निगाहों में वे सरदार पटेल से भी अधिक सच्चे हिंदू पटेल हैं, जिन्होंने राजधानी दिल्ली की सड़कों से प्रमाणित किया है कि इस देश में रहना है तो हिंदुओं के रहमोकरम से रहना होगा। जाहिर है दिल्ली की हिंसा अब मोदी-शाह की वैसी ही पूंजी है, जैसे गुजरात में गोधरा कांड के बाद गुजरात की हिंसा स्थायी सत्ता आधार बनवाने वाली पूंजी थी। मोदी-शाह की छप्पन इंची छाती में रंच मात्र रंज, खेद, हार, असफलता का भाव नहीं है। मोदी-शाह बम-बम हैं। क्या आपने ट्रंप के साथ खड़े मोदी के चेहरे पर चिंता देखी? क्या केजरीवाल के साथ बैठे अमित शाह का चेहरा उतरा देखा? क्या सीएए कानून पर पुनर्विचार या बिहार विधानसभा के प्रस्ताव पर मोदी-शाह-भाजपा को परेशान देखा? उलटे नोट रखें इस बात को कि आजाद भारत के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ जो हाई कोर्ट में देश के सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने भड़काऊ भाषण के टेप पर जज को ज्ञान दिया कि आप एफआईआर के फैसले की जुर्रत न करें! और दस घंटे के भीतर आंख दिखाने वाले जज को मार्च आर्डर थमा दिया गया। अगले दिन उसी हाई कोर्ट से सरकार को छूट मिली की एफआईआर का जब फैसला करना हो करें। ऐसी निर्लज्जता आजाद भारत के इतिहास में पहले कब दिखाई दी? पर मैं भले इसे निर्लज्जता मानूं पर औसत हिंदू तो ‘उन्हें’ ठीक करने में व्यवस्था में सुधार होता मानेगा। तभी कपिल मिश्रा के साथ खड़ा पुलिस डीसीपी हीरो, भड़काऊ भाषण छप्पन इंची गौरव, हाई कोर्ट-जज-चीफ जस्टिस-मीडिया आदि तमाम संस्थाओं का पानीपत की लड़ाई में लाइन हाजिर रहना हिंदूशाही की उपलब्धि है और यह राजाधिराज नरेंद्र मोदी और उनके सेनापति अमित शाह के अश्वमेध की नई मंजिल है न कि अमित शाह का फेल होना है! हां, दिल्ली की हिंसा अमित शाह का तमगा है। इससे मोटे तौर पर देश का तीस-पैंतीस प्रतिशत हिंदू मन ही मन सोचने लगा होगा कि देश का अगला राजा कैसा हो, अमित शाह जैसा हो! और इस बात को चुपचाप जिस एक विपक्षी नेता ने समझा है उसका नाम है अरविंद केजरीवाल! क्या आप ऐसा नहीं मानते? अभी भी आप मानते हैं अमित शाह फेल हैं!
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