
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार बड़े गर्व से बताया था कि वे गुजराती हैं और उनकी नस नस में बिजनेस है। सो, अब देश में हर चीज बिजनेस है। हर चीज को खरीद-फरोख्त के नजरिए से देखा जा रहा है। हर चीज की एक कीमत है। लोकतंत्र एक मंडी बना हैं, जहां हर चीज बिकने के लिए उपलब्ध है। किसी की कीमत कम है किसी की ज्यादा है। किसी ने सही कहा है कि लालची के गांव में ठग भूखे नहीं मरते। इस देश के लोगों की लालच बेमिसाल है। जो अधिकारी 35-40 साल तक सरकारी नौकरी करता है, ठसके से राज करता है उसे भी एक-दो साल अतिरिक्त नौकरी चाहिए होती है। इस एक-दो अतिरिक्त साल के लालच में वह सारे धतकरम करता है। नौकरी में रहते हुए वह अपने आका के सामने सिर झुकाए रखता है और आंख मूंद कर हर आदेश मानता है ताकि उसे रिटायर होने के बाद साल-दो साल और नौकरी में बने रहने का मौका मिल जाए।
नौकरी से मन भर गया है और राजनीति में जाकर ‘सेवा’ करनी है तो उसके लिए भी दरवाजे खुले हैं। नौकरी में रहते आका को खुश करो और फिर टिकट लेकर चुनाव में उतर जाओ। सोचें, उत्तर प्रदेश में ऐसे कितने ‘लोक सेवक’ नौकरी छोड़ कर जनता की सेवा के लिए चुनाव मैदान में उतरें हैं। उन्होंने नौकरी में रहते कितने ‘पुण्य कर्म’ किए होंगे, जो इतना बड़ा मौका मिला! आप आईपीएस अधिकारी हैं और दलितों में उस जाति से आते हैं, जिस जाति से मायावती आती हैं तब तो आपके लिए सोने पर सुहागा मौका है। आप प्रदेश के मुखिया की जाति से आते हैं तब भी आपके लिए बहुत मौका है और अगर आप देश के प्रधान के प्रदेश में सेवा दे चुके हैं तब तो आपके लिए मौका है ही। सोचें, कितनी छोटी कीमत है?
नेताओं की कीमत तो और दो कौड़ी की हो गई है। उनकी तो पूरी मंडी सजी हुई है और देश की सत्तारूढ़ पार्टी और उसके खरीदे हुए चैनल शान से बताते हैं कि जीते कोई सरकार तो भाजपा की ही बनेगी। अभी जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहा है उन्हीं में से दो राज्यों में पिछले चुनाव में कांग्रेस जीती थी लेकिन सरकार भाजपा की बनी थी। गोवा में 21 सीट से घट कर भाजपा 12 सीट पर आ गई थी और कांग्रेस ने 17 सीटें जीती थीं लेकिन सरकार भाजपा ने बनाई। बाद में कांग्रेस के 17 में से 15 विधायक भाजपा में चले गए। कैसे चले गए, उसे मास्टरस्ट्रोक बताने के नैरेटिव से अलग हट कर सोचेंगे तब पता चलेगा कि भारतीय राजनीति का कैसा पतन हुआ है। कांग्रेस और दूसरी पार्टियां छोड़ने वालों में से दो-चार को ही मंत्री पद मिला, बाकी किस लालच में गए यह कहने की जरूरत नहीं है। इसी तरह मणिपुर में कांग्रेस 28 सीटों पर जीती थी और भाजपा 21 सीट पर लेकिन सरकार भाजपा ने बनाई और कांग्रेस के अनेक विधायक भाजपा में चले गए।
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जीते कोई सरकार तो भाजपा की बनेगी, इस जुमले की कथा अनंत है। कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों को अपने साथ मिला कर भाजपा ने सरकार बनाई। कांग्रेस और जेडीएस छोड़ने वाले सारे विधायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश सेवा की प्रेरणा से भाजपा में गए। इसी प्रेरणा से मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस के करीब दो दर्जन विधायक भाजपा में चले गए और सरकार भाजपा की बन गई। सोचें, बदले में किसको क्या मिला? यह इस बात की मिसाल है कि कितनी कम कीमत चुका कर कितना कुछ हासिल किया जा सकता है। एक राज्यसभा की सीट और एक मंत्री पद, राज्य में सरकार बनवा सकता है।
लोकतंत्र की मंडी में सिर्फ अधिकारी और नेता ही सज-संवर कर नहीं बैठे हैं कि उनकी कीमत लगाई जाए। मीडिया भी है। आज मीडिया की स्थिति ऐसी है कि कोई नेता किसी पत्रकार को ईमानदार कह देता है तो वह भड़क जा रहा है। किसी को निष्पक्ष बता देता है तो वह इसे अपने लिए अपमानजनक मानता है। चोर की दाढ़ी में तिनका पहले सुना जाता था, अब चैनलों पर दिख रहा है। अखिलेश यादव ने एक पत्रकार को ईमानदार कह दिया तो वह पत्रकार ऐसे भड़की जैसे उसका इससे बड़ा अपमान नहीं हो सकता। ‘मोर लॉयल दैन द किंग’ का मुहावरा भी पहले सुना था लेकिन अब चैनलों में दिख रहा है। चैनल और उनके पत्रकार भाजपा नेताओं से ज्यादा समर्पित हो गए हैं। इसकी क्या कीमत चुकाई गई होगी? थोड़े से विज्ञापन और केंद्रीय एजेंसियों से राहत!