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आंदोलन को बदनाम करने का प्रयास

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आंदोलन को बदनाम करने का प्रयास
क्या भारत की सर्वशक्तिमान सरकार और उसके मुखिया किसान आंदोलन के सामने मजबूर हो गए हैं? यह सवाल इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उनके सारे मंत्री और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर दुनिया की इस सबसे बड़ी पार्टी के सारे नेता कह रहे हैं कि किसानों को गुमराह किया जा रहा है, उनको भड़काया जा रहा है। सोचें, जिस सरकार के पास प्रचार के सारे साधन हैं, जिस सरकार का मुखिया महीने के तीसों दिन किसी न किसी माध्यम से या किसी न किसी तरीके देश के लोगों को संबोधित करता है, देश का मीडिया जिस सरकार के समर्थन में खबरें दिखाना अपना परम कर्तव्य समझता है वह सरकार कह रही है कि किसान उसकी बात नहीं समझ रहे हैं! उलटे भाजपा के मुताबिक जिस विपक्ष को देश ने खारिज कर दिया है वह किसानों को गुमराह कर दे रहा है और सरकार अपनी बात नहीं समझा पा रही है! किसानों को गुमराह किए जाने, उन्हें भ्रमित करने, उनको उकसाने आदि की जितनी बातें सरकार और भाजपा के लोग कर रहे हैं उससे अंततः सरकार की मजबूरी जाहिर हो रही है। इस मजबूरी का ही दूसरा पहलू यह है कि किसी न किसी तरीके से किसान आंदोलन को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है। इसका ताजा प्रयास केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किया है। उन्होंने किसानों के नाम एक खुला पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि 1962 की लड़ाई के समय देश की विचारधारा का विरोध करने वाले लोग किसानों को गुमराह कर रहे हैं। उनका इशारा कम्युनिस्ट पार्टियों की ओर है, जिन्होंने अपनी वामपंथी विचारधारा की वजह से भारत-चीन युद्ध के समय या तो चुप्पी साधे रखी थी या चीन का साथ दिया था। हालांकि किसी ने पूछा नहीं कि 1962 की लड़ाई से 20 साल पहले हुई 1942 की लड़ाई के समय जो लोग देश की विचारधारा के खिलाफ थे, वे आज कहां हैं? बहरहाल, किसानो के साथ बात करने की जिम्मेदारी निभा रहे केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल दोनों यह बात कह चुके कि किसान आंदोलन के पीछे माओवादियों और नक्सलियों का हाथ है। पीयूष गोयल ने कहा कि किसान इनके असर से निकलेंगे तो उनको समझ में आएगा कि कृषि बिल उनके लिए फायदेमंद है। अब तोमर 1962 की लड़ाई का जिक्र कर देशभक्ति और देशद्रोह के नैरेटिव को भी खींच कर ले आए हैं। इससे पहले भी किसान आंदोलन को देश विरोधियों का आंदोलन बताने का प्रयास हुआ है। भाजपा के अनेक नेताओं ने कहा है कि यह शाहीन बाग पार्टू टू है या इसके पीछे टुकड़े टुकड़े गैंग का हाथ है या इस आंदोलन के पीछे खालिस्तान की मांग करने वाले कट्टरपंथियों का हाथ है। केंद्र सरकार के एक मंत्री राव साहेब दानवे ने यहां तक कहा कि इस आंदोलन के पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है। इस बयान के लिए न तो उन्होंने खेद जताया और न सरकार या भाजपा की ओर से इसका खंडन किया गया। किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए एक तरफ प्रदर्शनकारी किसानों को देश विरोधी, टुकड़े टुकड़े गैंग का सदस्य, खालिस्तान समर्थक, नक्सली समर्थक बताया जा रहा है ताकि मध्य वर्ग में किसानों के प्रति समर्थन नहीं पैदा होने दिया जाए। इसका दूसरा मकसद किसानों के उठाए सवालों से भी ध्यान भटकाना है। सरकार को पता है कि कृषि कानून सिर्फ किसानों के लिए डेथ वारंट नहीं हैं, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी डेथ वारंट हैं। तभी देश विरोध और देशप्रेम इस सरकार और सत्तारूढ पार्टी का प्रिय नैरेटिव इसमें शामिल किया गया है ताकि मध्य वर्ग का ध्यान इन कानूनों के दूसरे खतरों की तरफ न जाए। इस आंदोलन को हिंदू-मुस्लिम का रूप देना मुश्किल है क्योंकि प्रदर्शन कर रहे किसानों में ज्यादा सिख हैं। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जिन लोगों को अयोध्या में राम मंदिर बनना बरदाश्त नहीं हो रहा है वे ही आंदोलन कर रहे हैं। सोचें, अपने फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य और बड़े कारपोरेट से अपनी जमीन की रक्षा के लिए आंदोलन कर रहे किसानों को सरकार के लोगों और सोशल मीडिया में उनके भक्त लंगूरों ने क्या क्या बना रखा है। उनको आतंकवादी, नक्सली, मंदिर विरोधी, देश विरोधी सब बना दिया गया है, जबकि हकीकत यह है कि वे सिर्फ एमएसपी पर खरीद और अपनी जमीन की रक्षा की गारंटी मांग रहे किसान हैं, जो अपनी खेती-किसानी और अपनी जान जोखिम में डाल कर प्रदर्शन कर रहे हैं।
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