नरेंद्र मोदी, अमित शाह और भाजपा की चुनावी रणनीति को एक नया संकट है। उसके हिंदू वोट काटने की विपक्ष राजनीति गोवा, यूपी, उत्तराखंड हर जगह भाजपा का संकट है। गोवा में भाजपा के नेता यह रोना रोते हुए थे कि तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने हिंदू वोटों को डिवाइड किया। इसलिए कांग्रेस को फायदा। गोवा के ईसाइयों ने कांग्रेस को एकमुश्त वोट डाले वहीं जो हिंदू आबादी थी उसमें आप और तृणमूल कांग्रेस के हिंदू उम्मीदवारों से भाजपा के वोट कटे। मतलब विपक्ष ने सोच-समझ कर वह रणनीति बनाई, जिससे भाजपा का हिंदू वोट आधार घटे। Five state assembly election
यहीं बनारस की सीट पर ओवैसी की पार्टी का हिंदू ब्राह्मण उम्मीदवार भी क्या नहीं करेगा? हां, यूपी में कांग्रेस, बसपा और छोटी पार्टियों का उम्मीदवार यदि हजार-दो हजार, पांच हजार वोट भी ले तो वह हिंदू वोट भाजपा से ही थका, निराश, गुस्साई जात वाला वोट होगा। बसपा, कांग्रेस, ओवैसी, आप पार्टी ने यदि ब्राह्मण, राजपूत उम्मीदवार, महिला उम्मीदवार खड़े किए हैं तो ये अखिलेश एलांयस के समीकरण के वोट लेते हुए नहीं हैं, बल्कि भाजपा के वोट काटते हुए हैं।
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ऐसे ही उत्तराखंड में भी आप पार्टी का रोल है। भाजपा के बाद मध्य-शहरी वर्ग के वोट में जिनका मोहभंग हुआ है उनका आप पार्टी के भौकाल में बहना बताया जाता है। यूपी में कांग्रेस और आप दोनों पार्टियों ने शहरवार ऐसे उम्मीदवार खड़े किए हैं जो भाजपा का कुछ न कुछ वोट खाते हुए हैं।
उत्तर प्रदेश में इसी के चलते भाजपा के सन् 2017 के 39.7 प्रतिशत वोट आधार में यदि दो-तीन प्रतिशत भी बिखरे तो आमने-सामने के मुकाबले में उलटफेर बनेगी। किसी शहर में कांग्रेस की महिला उम्मीदवार भाजपा का ब्राह्मण वोट काटते हुए तो कहीं गुर्जर या कुर्मी वोट काटते हुए। ऐसा तानाबाना भाजपा ने भी बनाया। मतलब यादव बेल्ट में सपा से बिदके यादव उम्मीदवार व बसपा के मुसलमान उम्मीदवार सपा एलायंस के लिए वोटकटवा हो सकते हैं। पर इसका अधिक असर नहीं होगा क्योंकि यादव और मुसलमान वोट निश्चय के साथ सपा को एकमुश्त जाता हुआ लगता है। यादव और मुस्लिम वोटों के निश्चय का प्रमाण है कि पहली बार चुनाव हल्ले में माई समीकरण की चर्चा नहीं है। अखिलेश यादव ने होशियारी दिखाई जो यादव पट्टी में यादव कम व मुस्लिम बहुसंख्या के इलाके में मुस्लिम उम्मीदवार कम खड़े किए और भाजपा के वोटों व उसके जात समीकरण को छिन्न-भिन्न किया है।
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तभी यूपी में लड़ाई योगी बनाम अखिलेश में आमने-सामने की है। योगी के खिलाफ जनता अखिलेश को लड़ाते हुए है। भाजपा की मुश्किल है जो योगी जहां वोट दिलवाने (मुस्लिम-माफिया-बहू-बेटियों की सुरक्षा जैसी बातों) वाली पूंजी हैं वहीं जातीय समीकरण में लायबिलिटी भी। उनके चेहरे के कारण ही ब्राह्मण और पिछड़ी जातियों में सन् 2017 व 2019 वाला भाजपा मोह नहीं है। मतदान के पहले दो राउंड की चर्चाओं में ब्राह्मण परिवारों व मध्यवर्गीय शहरी परिवारों में वोट डालने का उत्साह नहीं था वहीं इनमें 30-40 प्रतिशत वोटों के खिलाफ पड़ने का भौकाल भी है।
2014 से जात निरपेक्ष यूथ जिस उत्साह से मोदी-योगी का दिवाना हुआ था वैसी जोशीली भीड़ का न होना भी वह एक कारण है, जिससे मोदी, योगी, शाह की जनसभाओं, रोड शो में सिर्फ और सिर्फ प्रायोजित भीड़ की तस्वीरें मिल रही हैं। सो, कई कारणों से हिंदू जनमानस, कई तरह की भावनाओं और हाल की सच्चाइयों से ऐसा आहत हैं कि वह बेधड़क इस बार तो अखिलेश आएगा बोलने का साहस दिखा रहा है। जैसा मैंने पिछले सप्ताह लिखा योगी राज ने यूपी में हिंदुओं को ऐसा छिन्न-भिन्न व बिखेरा है कि भाजपा की चुनावी गणित के सभी फॉर्मूले भगवान भरोसे हैं। Five state assembly election