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मुस्लिम पार्टियों की परीक्षा

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मुस्लिम पार्टियों की परीक्षा
इस बार का चुनाव कांग्रेस और भाजपा या क्षेत्रीय पार्टियों के लिए ही परीक्षा का सबब नहीं है, बल्कि कई मुस्लिम पार्टियों के लिए भी यह बहुत अहम चुनाव है। तीन राज्यों में तीन मुस्लिम पार्टियों की राजनीति दांव पर लगी है। असम में बदरूद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, एआईयूडीएफ अब तक बहुत सफल राजनीति करती रही है। पिछले हर चुनाव में उनको लगभग एक समान सफलता मिली है। इस बार भाजपा ने अजमल को मुद्दा बनाया है। उनके कई फर्जी वीडियो वायरल कराए गए हैं, जिनके आधार पर उनको घुसपैठियों का समर्थक या भारत विरोधी या मुस्लिमपरस्त ठहराने का प्रयास हुआ है। इसलिए इस बार का चुनाव अजमल के लिए बड़ी परीक्षा की तरह है। कांग्रेस और बीपीएफ के साथ अजमल का तालमेल है। अगर इन दोनों पार्टियों का कुछ भी वोट उनको ट्रांसफर होता है तो उनका प्रदर्शन इस बार भी अच्छा ही होगा। पश्चिम बंगाल में इस बार पहली बार एक मुस्लिम पार्टी चुनाव मैदान में है। हुगली के फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने पार्टी बनाई है इंडियन सेकुलर फ्रंट यानी आईएसएफ। इसके साथ कांग्रेस और लेफ्ट मोर्चे का तालमेल है। चुनाव से ठीक पहले असदुद्दीन ओवैसी ने पीरजादा अब्बास सिद्दीकी से तालमेल की बात की थी, लेकिन बाद में उन्होंने पार्टी बना कर लेफ्ट फ्रंट के साथ तालमेल कर लिया। माना जा रहा है कि आईएसएफ जितनी ताकत से लड़ेगा या उसे जितना वोट मिलेगा, ममता बनर्जी की पार्टी को उतना नुकसान होगा और भाजपा की जीत की संभावना उतनी बढ़ेगी। अगर आईएसएफ को मुस्लिम बहुल इलाकों में सफलता मिलती है तो दो पड़ोसी राज्यों- असम और बंगाल में मुस्लिम राजनीति की दो धाराएं स्थापित होंगी। अब तक कांग्रेस, लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस को ही मुस्लिम मतदाताओं की पार्टी माना जाता था लेकिन इसके बाद आईएसएफ भी उनके वोट की दावेदार होगी और इससे इस पूरे क्षेत्र की राजनीति हमेशा के लिए बदल जाएगी। अगर मुस्लिम पहले से स्थापित पार्टियों को छोड़ते हैं तो इस सीमावर्ती राज्य में बड़ा राजनीतिक बदलाव होगा। कोई माने या न माने पर पिछली सदी के शुरुआती दिनों की राजनीति की याद दिलाने वाले बदलाव होंगे। उधर केरल में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का मजबूत असर है। जम्मू कश्मीर, असम और पश्चिम बंगाल के बाद सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी केरल में है। करीब 27 फीसदी मुस्लिम केरल में हैं, जिनकी प्रतिनिधि पार्टी आईयूएमएल है। हालांकि कांग्रेस और लेफ्ट को भी मुस्लिम वोट मिलते हैं पर उनका प्रतिनिधित्व आईयूएमएल करता है। इसी को आधार बना कर भाजपा ने केरल में बेहद आक्रामक राजनीति की है। अगर इस बार लेफ्ट फ्रंट सत्ता में वापसी करता है तो इसका मतलब होगा कि मुस्लिम उसे ज्यादा संख्या में वोट देंगे। यह आईयूएमएल के लिए एक बड़ा झटका होगा। तभी यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार मुस्लिम लीग को कितनी सीटें और कितना वोट मिलता है। इससे पता चलेगा कि मुस्लिम समाज अलग और अपनी जमात के नेता के नेतृत्व में राजनीति करने के लिए कितना तैयार हुआ है। इसी बात को ध्यान में रख कर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने इस बार खुद को असम, बंगाल और केरल की राजनीति से दूर रखा है। वे बाकी मुस्लिम पार्टियों की हैसियत देखना चाहते हैं।
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