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ऑस्ट्रेलिया यात्रा से क्या हासिल?

ऑस्ट्रेलिया यात्रा से क्या हासिल?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर क्यों गए, यह यक्ष प्रश्न है। उनको चार देशों के समूह क्वाड की बैठक में हिस्सा लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना था। लेकिन अमेरिकी कर्ज संकट की वजह से राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऑस्ट्रेलिया जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। यह तय हुआ कि क्वाड सम्मेलन जापान के हिरोशिमा में ही होगा, जहां जी-सात देशों की बैठक होने वाली थी। जब ऑस्ट्रेलिया में होने वाला क्वाड सम्मेलन स्थगित हो गया तो कायदे से प्रधानमंत्री की यात्रा भी स्थगित हो जानी चाहिए थी लेकिन क्वाड सम्मेलन के बहाने ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर के छोटे छोटे द्वीपीय देशों के जो कार्यक्रम बने थे उनकी तैयारी हो चुकी थी, इसलिए मोदी ऑस्ट्रेलिया, पापुआ न्यूगिनी, फिजी आदि के दौरे पर गए।

सवाल है कि इससे क्या हासिल हुआ? सोशल मीडिया में यह चर्चा जरूर हुई कि कर्नाटक में भाजपा की हार के बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं, नेताओं और सामान्य समर्थकों का जो मनोबल गिरा था उसे ऊंचा करने के लिए ऐसे किसी बड़े कार्यक्रम की जरूरत थी। वह ऑस्ट्रेलिया, पापुआ न्यूगिनी और फिजी में हुआ। वहां पापुआ न्यूगिनी के राष्ट्रपति ने मोदी के पांव छुए तो फिजी में भी अनेक लोगों ने उनके पैर छुए, जिनकी तस्वीरें और वीडियो भारत में वायरल हुए। इससे भाजपा और समर्थकों को यह नैरेटिव बनाने में आसानी हुई कि देखो, दुनिया में मोदी की क्या इज्जत है। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया का कार्यक्रम हुआ, जहां कई शहरों से बसों व विशेष विमानों से लोग जुटाए गए थे। उन्होंने मोदी का जबरदस्त स्वागत हुआ। लोगों ने सड़कों पर मोदी मोदी के नारे लगाए। सिडनी में जब प्रवासी भारतीयों का कार्यक्रम हुआ तो लोगों के नारे सुन कर और उत्साह देख कर ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने कहा कि उन्होंने ऐसा स्वागत किसी प्रधानमंत्री का नहीं देखा है। इसके आगे उन्होंने कहा कि मोदी बॉस हैं।

इसके बाद मेक इट लार्ज के सिद्धांत के आधार पर मोदी जब ऑस्ट्रेलिया से लौटे तो रात के तीन बजे हजारों की संख्या में लोग हवाईअड्डे पर मौजूद थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा की दिल्ली ईकाई के तमाम नेताओं को इस काम में लगाया गया था। उन्होंने लोगों को जुटाया। पालम हवाईअड्डे पर भी मोदी का शक्ति प्रदर्शन हुआ। वे थोड़ी दूर तक हाथ हिलाते हुए पैदल चले और लोगों ने मोदी मोदी के नारे लगाए। ऐसा लगा, जैसे वे कोई बड़ी जंग जीत कर लौटे हों।

मोदी के ऑस्ट्रेलिया से लौटते ही खबर आई कि ऑस्ट्रेलिया के सरकार भारत के पांच राज्यों के छात्रों को वीजा नहीं देगी क्योंकि वे छात्र वीजा पर जाते हैं और नौकरी करने लगते हैं। पंजाब, हरियाणा और जम्मू कश्मीर के अलावा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के छात्रों को भी ऑस्ट्रेलिया ने वीजा जारी करने से इनकार कर दिया। सोचें, जिस प्रधानमंत्री ने मोदी को बॉस कहा, उसके प्रशासन ने ऐसा फैसला किया! इसके बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया से इस फैसले पर विचार करने का अनुरोध किया। ऑस्ट्रेलिया में इससे पहले भी मंदिरों पर हमले और भारतीय वाणिज्य दूतावासों पर हमले की खबरें आती रही हैं।

इतना ही नहीं, जिस समय मोदी ऑस्ट्रेलिया में ही थी उसी समय वहां की संसद में नरेंद्र मोदी पर बनी बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री, ‘इंडियाःद मोदी क्वेश्चन’ दिखाई गई। सोचें, भारत ने जिस डॉक्यूमेंट्री पर पाबंदी लगाई है उसे ऑस्ट्रेलिया की संसद में दिखाया गया। इसकी स्क्रीनिंग के दौरान वहां की द ग्रीन्स पार्टी के सांसद जॉर्डन स्टील जॉन ने कहा कि प्रधानमंत्री अल्बनीज ने मोदी से मानवाधिकार के मसले पर बात नहीं की। बहरहाल, इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग वहां की विपक्षी पार्टियों के साथ मिल कर कई संगठनों ने किया था, जिसमें प्रवासी भारतीयों का संगठन भी शामिल था। वी द डायोस्पोरा इसका मुख्य प्रायोजक था। इसके अलावा केयर, हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स, एमनेस्टी इंटरनेशनल, द ह्यूमनिज्म प्रोजेक्ट, पेरियार-अंबेडकर थॉट्स सर्कल-ऑस्ट्रेलिया आदि संगठन भी इसमें शामिल थे।

Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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